धर्म-अध्यात्म

परह़ेजगारी का आस्ताना है बारहवां रोजा

Apurva Srivastav
24 April 2021 1:08 PM GMT
परह़ेजगारी का आस्ताना है बारहवां रोजा
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हिंदसों (अंकों) के जहान में 'बारह' का अपना मुक़ाम है।

हिंदसों (अंकों) के जहान में 'बारह' का अपना मुक़ाम है। इस्लामी कैलेंडर में तो माह रबीउलअव्वल की बारहवीं तारीख़ यानी मिलादुन्नबी (हज़रत मोहम्मद सल्ल. का जन्मदिन) को बहुत पाकीज़ा और बुलंद दर्जा हासिल है। मग़फ़िरत (मोक्ष) के अशरे (कालखंड) का ख़ास सरोकार है।

रमज़ान ख़ुशबुओं का ख़जाना है। इबादत, परह़ेजगारी का आस्ताना है। बारहवां रोज़ा ईमान के इत्र में मग़फ़िरत की महक है।
यानी ग्यारहवें रोज़े की फ़ज़ीलत के बयान में तफ़सील दी गई है कि अल्लाह से गिड़गिड़ाकर बंदा जब अपने गुनाहों की माफ़ी माँगता हैं और बुराइयों से बचने के लिए गुज़ारिश और दुआ करता है तो यह 'आख़िरत के एकाउंट में 'मग़फ़िरत की क्रेडिट' है।
पवित्र क़ुरआन में मग़फ़िरत के लिए जिस तक़्वा (संयम, सत्कर्म, ईश्वरीय आज्ञापालन) का बार-बार ज़िक्र किया गया है, सब्र और सदाक़त के साथ रखा गया रोज़ा उस तक़्वे का एक जुज़ (तत्व, घटक) है।
मग़फ़िरत (मोक्ष) के लिए क़ुरआने-पाक की सूरह आले-इमरान की आयत नंबर एक सौ तिरानवें (आयत नंबर-193) में ज़िक्र हैं 'ऐ परवरदिगार! हमारे गुनाह माफ़ फ़रमा! हमारी बुराइयों को हमसे दूर कर! हमको दुनिया से नेक बंदों के साथ उठा।


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