धर्म-अध्यात्म

Aashtha: एक ऐसा सोने का झूला जिसे चुराकर भाग रहे चोर अचानक हुए अंधे

Ritik Patel
25 Jun 2024 2:17 PM GMT
Aashtha: एक ऐसा सोने का झूला जिसे चुराकर भाग रहे चोर अचानक हुए अंधे
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Aashtha: सोने के झूले और इसकी चोरी से जुड़ी ये कहानी मध्य प्रदेश के महेश्वर शहर की है. इस झूले को महारानी अहिल्याबाई ने बनवाया था. अहिल्याबाई, भगवान और पूजा को बहुत मानती थीं. उनका अपना एक पूजाघर था. इस पूजाघर में भगवान कृष्ण के लिए उन्होंने सोने का झूला बनवाया था. झूले के पास पारद शिवलिंग भी है जो चांदी, पारे और जड़ी बूटियों से मिलकर बना है. क्या है सोने का झूला चोरी होने की कहानी- साल 1955 में महाराष्ट्र के डकैत गोकुल गिरी ने अपने साथियों के साथ अहिल्या बाई के निजी पूजा घर में रखे स्वर्ण झूले को चुराने की योजना बनाई. उस समय झूले का वजन 40 किलो था. झूला चुराने की योजना में डकैत गोकुल गिरी सफल हो गए. लेकिन, नगर की सीमा पार नहीं कर पाए उससे पहले ही उन्हें और उनके साथियों को दिखना बंद हो गया.
Historianबताते हैं कि डाकू सबसे पहले नदी किनारे आए. वहां, किले की पुश्तैनी ऊंची दीवार पर चढ़ने के लिए घोड़पड़ (गिरगिट प्रजाति के जानवर) की पूंछ में रस्सी बांधकर राजवाड़ा किले के अंदर घुस गए. फिर मंदिर में प्रवेश किया और पूजा घर में रखा स्वर्ण झूला चुरा लिया. जब वो सोने का झूला लेकर जाने लगे तो रास्ते में उन सभी की आंखों के सामने अंधेरा छा गया. उन्हें लगा कोई दिव्य शक्ति उनका पीछा कर रही है. तब चोरों ने स्वर्ण झूले को महेश्वर की सीमा पर ही जमीन में गाड़ दिया और भाग गए. फिर कुछ दिन बाद चोरों को पकड़ा गया और उनके बताने के बाद जमीन से झूले को बाहर निकाला गया. चोरी की इस घटना में झूला छतिग्रस्त हो गया था. तब क्षेत्र में ही रहने वाले नासिक के कारीगरों ने राज्य के सैनिकों की निगरानी में पुराने झूले को गलाकर नया झूला तैयार किया.
अहिल्याबाई के बारे में- इतिहासकार एवं लेखक हरीश दुबे के मुताबिक, उनका जन्म 1725 में हुआ था. महाराष्ट्र के चिंदी गांव में मल्कोजी शिंदे परिवार से वो ताल्लुक रखती थीं. खंडेराव से शादी के बाद महेश्वर आईं. उन्होंने 28 साल तक रानी बनकर कर्तव्य संभाला. अहिल्या बाई के 2 बच्चे थे, एक बेटा और एक बेटी. उनका नाम मालेराव और मुक्ताबाई था.अहिल्याबाई ने इंदौर को छोड़ महेश्वर को अपनी राजधानी बनाया था. यहीं से वह पूरे राज्य पर अपना शासन चलाती थीं. हालांकि, इंदौर राजवाड़ा आया-जाया करती थीं. लेकिन, जब भी वह इंदौर जाती तो राजवाड़ा में नहीं रुकती थी. राजवाड़ा के बाहर छत्री पर तंबू लगाकर रहती थीं. महेश्वर के राजवाड़ा परिसर के बगल में उनका पूजा घर मौजूद है, जहां आज भी चमकता हुआ कीमती झूला रखा है. उनका पूजा घर में झूले के अलावा सोने-चांदी की और भी मूर्तियां मौजूद हैं.
अभी ये पूजाघर, मंदिर नहीं- अहिल्या बाई का पूजा घर आज भी महेश्वर में है. इसे मंदिर का रूप नहीं दिया गया है. इस पूजाघर में पहले की तरह आज भी पूजा होती है. सुरक्षा के लिए यहां चौकीदार तैनात रहते हैं. इसी पूजा घर में सोने का झूला मौजूद है. अहिल्या बाई ने गोपाल के लिए इस झूले को बनवाया था.
दूर-दूर से देखने आते हैं लोग इस खास और कीमती झूले को देखने के लिए लोग दूर-दूर से आते हैं. दिन में पूजा घर खुला रहता है. सुरक्षा को देखते हुए झूले और मूर्तियों को हाथ लगाना मना है. फोटो और वीडियो बनाने पर भी प्रतिबंध लगा है. अहिल्या बाई के बाद से खासगी ट्रस्ट इस पूजा घर की देखभाल कर रहा है. पूजा घर में सुरक्षा के लिए सिक्योरिटी गार्ड, चौकीदार और पुजारी मौजूद रहते है. विशेष दिनों में अहिल्या बाई के वंशज यहां पूजा करते हैं.
रानी ने किया लोगों के लिए काम- अहिल्या बाई होलकर ने अपने राज्य में ही नहीं बल्कि 12 ज्योर्तिलिंग, चार धाम सहित पूरे देश में मंदिरो को जीर्णोद्धार करवाया. बावड़ी, मंदिर, घाट, आश्रम, अन्नक्षेत्र, बनवाए. दुनिया भर में प्रसिद्ध माहेश्वरी साड़ी की शुरुआत भी उन्होंने ही की थी. किले अंदर एक शिव मंदिर उन्हीं के नाम से जाना जाता है. इसी शिव मंदिर में वे नियमित पूजा के लिए आती थीं. महेश्वर से इंदौर बने रास्ते में पड़ने वाले विंध्यांचक पर्वत के शिखर पर बना जाम गेट भी उन्होंने ही बनवाया था.
कैसे पहुंचे- इंदौर से महेश्वर की दूरी 90 किलोमीटर है. बस या निजी वाहन से महेश्वर आसानी से पहुंच सकते हैं. जिला मुख्यालय से महेश्वर 59 किलोमीटर की दूरी पर Narmadaनदी के किनारे है.

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