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- अमावस्या पर बन रहा है...
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पितृपक्ष के दौरान पितरों की पूजा की जाती है और उनका आशीर्वाद लिया जाता है। वहीं पितृपक्ष की अमावस्या का विशेष महत्व होता है। पितृ पक्ष की अमावस्या श्राद्ध के दौरान की सबसे अंतिम लेकिन सबसे महत्वपूर्ण तिथि मानी जाती है। पितृपक्ष पक्ष की अमावस्या के दिन सभी पूर्वजों का श्राद्ध कर्म किया जाता है। इस दिन खासतौर से उन पूर्वजों का श्राद्ध किया जाता है जिनका निधन अमावस्या की तिथि पर हुआ था। वहीं अगर किसी कारण अवश्य पितरों की तिथि ज्ञात न हो तो उनका श्राद्ध भी अमावस्या के दिन ही किया जाता है।
बता दें कि इस बार सर्वप्रथम अमावस्या 14 अक्टूबर यानी शनिवार को पड़ रही है। कई दुर्लभ संयोगों के साथ इस वर्ष पितृपक्ष की अमावस्या आएगी। पितरों की श्रद्धा और तर्पण के लिए यह दिन बेहद अहम माना जाता है।
बता दें कि इस बार अमावस्या के दिन बेहद अच्छे सहयोग बना रहे हैं। जानकारी के मुताबिक इस अमावस्या को मोक्ष दाहिनी अमावस्या के नाम से जाना जाता है।
इस बार अमावस्या पर कई शुभ संयोग हो रहे हैं। शनिवार होने के कारण यह शनिश्चर्य अमावस्या भी है। इसी दिन वर्ष का अंतिम सूर्य ग्रहण भी लगेगा। इसके साथ ही शुभ इंद्रयोग भी बनेगा। बता दें कि अमावस्या अश्विन माह में पड़ रही है जिससे इसका महत्व अधिक बढ़ गया है। पितरों का श्राद्ध करने के लिए यह दिन बेहद खास और अहम है।
अमावस्या की तिथि को ही पितृपक्ष का समापन होता है। इस दिन सुबह स्नान करने के बाद गायत्री मंत्र का जाप करें। इसके बाद सूर्य देव को जल अर्पित करें। बता देगी पीपल में पितरों का वास माना जाता है इसलिए इस दिन पीपल के पेड़ पर जल जरूर चढ़ाना चाहिए। शादी काले तिल भी अर्पित करने चाहिए। ऐसा करने से पितरों का आशीर्वाद मिलता है।
बता दे कि जिस दिन घर में श्रद्धा हो या फिर पितृ पक्ष की अमावस्या के दिन गाय, कुत्ता, कोए, देव, चिटियों को भोजन का अंश निकाल कर जरूर देना चाहिए। इसके साथ ही पितरों से मंगल कामना करनी चाहिए। इस दिन ब्राह्मणों को या किसी गरीब को भोजन भी करवाना चाहिए। इस दिन पूरे परिवार के साथ बैठकर भोजन करना चाहिए और पितरों को धन्यवाद देना चाहिए। इसके साथ ही पितरों से अनजाने में हुई भूल के लिए माफी भी मांगनी चाहिए।
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