- Home
- /
- अन्य खबरें
- /
- धर्म-अध्यात्म
- /
- मुहूर्त का एक नया अर्थ...
x
जनता से रिश्ता वेबडेस्क। प्राचीन काल में मुहूर्त शब्द का प्रयोग थोड़ी देर या दो घटिका (48 मिनट) के अर्थ में होता था। आगे चलकर इन मुहूर्तों में से कुछ शुभ व अशुभ मान लिए गए। इस तरह मुहूर्त का एक नया अर्थ सामने आया- 'वह काल, जो किसी शुभ कार्य के योग्य हो।' अथर्व ज्योतिष में प्रात:काल के सूर्य के बिम्ब को आधार मानते हुए 15 मुहूर्तों के नाम प्राप्त होते हैं। मुहूर्त में किए जाने वाले शुभाशुभ कर्मों का भी निर्धारण वैदिक काल में ही निश्चित कर दिया गया था, जो इस प्रकार है-
रौद्र : यह पहला मुहूर्त है। यह रुद्र से सम्बंधित कार्य हेतु उपयोगी है।
श्वेत : इस मुहूर्त में गृहप्रवेश, गृहनिर्माण, आदि कार्य होते हैं।
मैत्र : इस मुहूर्त में सगाई व प्रणय निवेदन आदि कार्य किए जाने चाहिए।
सारभट्ट : शत्रुनाश हेतु कार्य इस मुहूर्त में फलदायी होते हैं।
सावित्र : इसमें यज्ञ, विवाह, जनेऊ आदि देव कार्य करना चाहिए।
वैराज : इसमें शासक को पराक्रम सम्बंधी कर्म प्रारम्भ करना चाहिए।
विश्वावसु : यह मुहूर्त सभी प्रकार के उत्तम शुभ कार्यों के योग्य है।
अभिजीत : दिन के मध्य में पड़ने वाला यह मुहूर्त सभी व्यावहारिक कार्यों हेतु उत्तम है। यह मध्य दिन में ही नहीं, रात्रि के मध्य में भी होता है। स्वतंत्रता के समय यही रात्रिकालीन मुहूर्त था, जिसके कारण भारत-पाकिस्तान के बीच आज तक मनमुटाव चला आ रहा है। यदि यह दिन के अभिजीत मुहूर्त में होता, तो आज स्थितियां अलग ही होतीं।
रोहिण : कृषि कार्य हेतु यह मुहूर्त सर्वोत्तम है।
बल : इसमें शत्रुओं पर विजय, सम्पत्ति प्राप्त करने जैसे कार्य प्रशस्त होते हैं और यह मुहूर्त सफलता प्रदान करने वाला है।
विजय : इसमें मंगल कार्य, मुकदमा दायर करना उत्तम माना जाता है।
नैऋत : शत्रु राष्ट्रों पर हमला, आतंकवादियों के दमन की कार्यवाही करने से शत्रु का नाश होता है।
वरुण : इसमें जलीय खाद्य पदार्थों की बुवाई उत्तम फल देती है।
सौम्य : इस मुहूर्त में सौम्य, शुभ व मांगलिक कार्य करने चाहिए।
भग : भाग्य के देवता को भग कहते हैं, जो 'ऐश्वर्य' का सूचक माना जाता है। यह मुहूर्त सुख-सौभाग्य और ऐश्वर्यवर्द्धक होता है।
Next Story