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![Know the auspicious time and importance of Vat Purnima Vrat Know the auspicious time and importance of Vat Purnima Vrat](https://jantaserishta.com/h-upload/2022/06/03/1667766--.gif)
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हर साल ज्येष्ठ माह के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि को वट पूर्णिमा का व्रत रखा जाता है।
जनता से रिश्ता वेबडेस्क। हर साल ज्येष्ठ माह के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि को वट पूर्णिमा का व्रत रखा जाता है। इसे कई जगह वट सावित्री व्रत के नाम से भी जाना जाता है। बता दें कि ज्येष्ठ अमावस्या के दिन यानी 30 मई को भी देश के कई कोने में वट सावित्री का व्रत रखा गया था। वट पूर्णिमा व्रत की बात करें तो यह 14 जून, मंगलवार को रखा जाएगा। इस दिन सुहागिन महिलाएं पति की लंबी आयु और अच्छे स्वास्थ्य के लिए भगवान विष्णु, माता लक्ष्मी के साथ-साथ बरगद के पेड़ की पूजा करती हैं। इस दिन भी ज्येष्ठ अमावस्या की तरह ही पूजा पाठ किया जाता है। जानिए वट पूर्णिमा व्रत का शुभ मुहूर्त और महत्व।
वट पूर्णिमा का व्रत महाराष्ट्र, गुजरात, दक्षिण के क्षेत्रों में महिलाएं करती हैं। यहां की सुहागिन महिलाएं ज्येष्ठ अमावस्या तिथि के 15 दिन बाद वट पूर्णिमा के दिन व्रत रखकर पूजा करती हैं।
वट पूर्णिमा पर बन रहा खास योग
वट पूर्णिमा के दिन काफी खास योग बना रहा है। इस दिन साध्य रोग के साथ शुभ योग लगा रहा है जो काफी अच्छा माना जाता है। बता दें कि
13 जून दोपहर 1 बजकर 42 मिनट से लेकर 14 जून को सुबह 9 बजकर 40 मिनट तक रहेगा। इसके साथ ही शुभ योग 14 जून सुबह 9 बजकर 40 मिनट से शुरू होकर 15 जून सुबह 5 बजकर 28 मिनट तक रहेगा।
वट पूर्णिमा व्रत का महत्व
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, इस दिन सुहागिन महिला बरगद के पेड़ की पूजा करते पति की लंबी उम्र के साथ संतान सुख की कामना करती हैं। वट वृक्ष की शाखाओं को सावित्री का रूप माना जाता है। सावित्री ने ही कठिन तपस्या करके अपने पति सत्यवान के प्राण यमराज से वापस ले आई थीं। इसके साथ ही बरगद के पेड़ को ब्रह्मा, विष्णु और महेश का रूप माना जाता है।
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