धर्म-अध्यात्म

आज शनिवार के दिन करें शनि स्तुति का पाठ, आपके जीवन से दूर होगी शनि दोष

Subhi
11 Dec 2021 2:50 AM GMT
आज शनिवार के दिन करें शनि स्तुति का पाठ, आपके जीवन से दूर होगी शनि दोष
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सनातन धर्म की मान्यताओं के अनुसार शनिवार का दिन शनिदेव के पूजन के लिए समर्पित है। उन्हीं के नाम पर इस दिन का नाम शनिवार है। सूर्य पुत्र शनिदेव को न्याय और कर्मफल का देवता मना जाता है।

सनातन धर्म की मान्यताओं के अनुसार शनिवार का दिन शनिदेव के पूजन के लिए समर्पित है। उन्हीं के नाम पर इस दिन का नाम शनिवार है। सूर्य पुत्र शनिदेव को न्याय और कर्मफल का देवता मना जाता है। पौराणिक कथा के अनुसार एक बार उनकी पत्नी ने नाराज होकर उन्हें श्राप दे दिया था। श्राप के अनुसार शनिदेव जिसकी ओर भी नजर डालते हैं उसका नाश हो जाएगा। इसलिए ही शनिदेव हमेश नजर नीचे करके चलेते हैं। लेकिन जिस किसी पर भी शनिदेव की वक्र दृष्टी पड़ती है उसे दुष्प्रभाव सहना ही पड़ता है। इसके साथ ही जिन लोगों पर शनि की साढ़े साती या ढैय्या आदि महादशा चल रही हो उन्हें शनि पूजन जरूर करना चाहिए।

शनिवार के दिन शनि मंदिर में या पीपल के पेड़ के समीप सरसों के तेल का दिया जालाना चाहिए। इसमें काले तिल डाल दें और इसके बाद मंदिर में बैठ कर शनिदेव की इस स्तुति का पाठ करना चाहिए। ऐसा करने से शनिदोष से मुक्ति मिलती है और आपका कुछ भी अनिष्ट नहीं होता है...
शनिदेव की स्तुति -
नम: कृष्णाय नीलाय शितिकण्ठ निभाय च ।
नम: कालाग्निरूपाय कृतान्ताय च वै नम: ॥1॥
नमो निर्मांस देहाय दीर्घश्मश्रुजटाय च ।
नमो विशालनेत्राय शुष्कोदर भयाकृते ॥2॥
नम: पुष्कलगात्राय स्थूलरोम्णेऽथ वै नम: ।
नमो दीर्घाय शुष्काय कालदंष्ट्र नमोऽस्तु ते ॥3॥
नमस्ते कोटराक्षाय दुर्नरीक्ष्याय वै नम: ।
नमो घोराय रौद्राय भीषणाय कपालिने ॥4॥
नमस्ते सर्वभक्षाय बलीमुख नमोऽस्तु ते ।
सूर्यपुत्र नमस्तेऽस्तु भास्करेऽभयदाय च ॥5॥
अधोदृष्टे: नमस्तेऽस्तु संवर्तक नमोऽस्तु ते ।
नमो मन्दगते तुभ्यं निस्त्रिंशाय नमोऽस्तुते ॥6॥
तपसा दग्ध-देहाय नित्यं योगरताय च ।
नमो नित्यं क्षुधार्ताय अतृप्ताय च वै नम: ॥7॥
ज्ञानचक्षुर्नमस्तेऽस्तु कश्यपात्मज-सूनवे ।
तुष्टो ददासि वै राज्यं रुष्टो हरसि तत्क्षणात् ॥8॥
देवासुरमनुष्याश्च सिद्ध-विद्याधरोरगा: ।
त्वया विलोकिता: सर्वे नाशं यान्ति समूलत: ॥9॥
प्रसाद कुरु मे सौरे ! वारदो भव भास्करे ।
एवं स्तुतस्तदा सौरिर्ग्रहराजो महाबल: ॥10॥

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