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वजन घटाने, मधुमेह की दवाएं किडनी की सुरक्षा में हो सकती हैं कारगर : अध्ययन

jantaserishta.com
26 Nov 2024 8:25 AM GMT
वजन घटाने, मधुमेह की दवाएं किडनी की सुरक्षा में हो सकती हैं कारगर : अध्ययन
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नई दिल्ली: भारतीय मूल के एक शोधकर्ता के नेतृत्व में किए गए एक अध्ययन में पता चला है कि वजन घटाने और ब्लड शुगर नियंत्रित करने में मदद करने वाली दवा ग्लूकागोन-लाइक पेप्टाइड-1 (जीएलपी-1) रिसेप्टर एगोनिस्ट किडनी की सुरक्षा में भी सहायक हो सकती है, चाहे व्यक्ति को डायबिटीज हो या न हो।
जीएलपी-1 रिसेप्टर एगोनिस्ट का विकास पहले डायबिटीज के इलाज के लिए हुआ था, लेकिन यह दवा डायबिटीज वाले और बिना डायबिटीज वाले दोनों प्रकार के लोगों के लिए फायदेमंद पाई गई है। इस अध्ययन के नतीजे द लैंसेट डायबिटीज एंड एंडोक्रिनोलॉजी नामक पत्रिका में प्रकाशित हुए हैं।
यह दवा शरीर में इंसुलिन उत्पादन बढ़ाती है और ब्लड शुगर को कम करती है। साथ ही, यह पाचन प्रक्रिया को धीमा करती है, भूख कम करती है और पेट भरा होने का एहसास दिलाकर वजन घटाने में मदद करती है।
जॉर्ज इंस्टीट्यूट फॉर ग्लोबल हेल्थ के शोधकर्ताओं ने यह समझने के लिए अध्ययन किया कि जीएलपी-1 रिसेप्टर एगोनिस्ट का क्रॉनिक किडनी डिजीज पर क्या प्रभाव पड़ता है। यह एक गंभीर बीमारी है, जो दुनिया भर में हर 10 में से 1 व्यक्ति को प्रभावित करती है और करीब 850 मिलियन लोगों को इसके लक्षण हैं।
शोधकर्ताओं ने 85,373 लोगों पर किए गए 11 बड़े क्लिनिकल ट्रायल का विश्लेषण किया। इसमें 67,769 लोग टाइप-2 डायबिटीज से ग्रसित थे, जबकि 17,604 लोग केवल मोटापे या हृदय रोग से पीड़ित थे, लेकिन उन्हें डायबिटीज नहीं थी।
इसके लिए टीम ने सात अलग-अलग जीएलपी-1 रिसेप्टर एगोनिस्ट का अध्ययन किया। नतीजों में पाया गया कि जीएलपी-1 रिसेप्टर एगोनिस्ट ने किडनी फेल होने के खतरे को 16% तक कम कर दिया। किडनी के रक्त को फिल्टर करने की क्षमता (ग्लोमेरुलर फिल्ट्रेशन रेट) की गिरावट 22% तक धीमी हो गई। कुल मिलाकर, इन दवाओं ने किडनी फेल होने, किडनी की खराब होती कार्यक्षमता और किडनी रोग से मौत के खतरे को 19% तक कम कर दिया।
शोध के प्रमुख लेखक, प्रोफेसर सुनील बदवे ने बताया, “क्रॉनिक किडनी डिजीज लगातार बढ़ती हुई बीमारी है जो अंततः किडनी फेल होने और डायलिसिस या किडनी ट्रांसप्लांट की आवश्यकता तक पहुंच सकती है। यह रोग न केवल मरीजों की जीवन गुणवत्ता को प्रभावित करता है, बल्कि इसके इलाज में भारी खर्च भी होता है। इस अध्ययन के नतीजे इस रोग से जूझ रहे मरीजों के लिए उम्मीद जगाते हैं।”
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