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यूपी विधानसभा चुनाव 2022
उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्य नाथ को गोरखपुर की सदर विधानसभा से प्रत्याशी बना कर बीजेपी (BJP) आलाकमान ने यद्यपि उनकी उड़ान पर ब्रेक लगा दी है. किंतु इसके बावजूद वहां खूब संभावनाएं मौजूद हैं. पहले उनको मथुरा फिर अयोध्या से लड़वाने की मांग की गई थी. मगर ये सब दरकिनार कर उन्हें गोरखपुर से ही चुनाव लड़ने को कहा गया है. वे अगर मथुरा या अयोध्या से लड़ते तो उनका क़द और बढ़ता. मथुरा के लिए तो कह दिया गया कि वहां के विधायक और प्रदेश के बिजली मंत्री श्रीकांत शर्मा का रिपोर्ट कार्ड अच्छा है, इसलिए मथुरा से उन्हें ही लड़ने दिया जाए. लेकिन अयोध्या में तो योगी आदित्य नाथ अपने कार्यकाल के दौरान 42 बार गए और मंदिर के लिए न सिर्फ़ उन्होंने बल्कि जिस गोरखनाथ पीठ के महंत वे हैं, उसके उनके पहले वाले महंत अवैद्यनाथ और महंत दिग्विजय नाथ ने भी बहुत प्रयास किया था. इसलिए वे भी चाहते रहे होंगे, कि उन्हें अयोध्या से चुनाव लड़ने को कहा जाए.
योगी का बढ़ता क़द
इसमें कोई शक नहीं कि योगी आदित्य नाथ का क़द बढ़ता जा रहा था. क्योंकि जिस हिंदुत्व की पिच और भावनाओं के बूते प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सत्ता में आए थे, उस पिच पर योगी अधिक बेहतर तरीक़े से खेल सकते हैं. इसीलिए उनको केरल, पश्चिम बंगाल और तमिलनाडु में प्रचार के लिए भेजा गया था. ताकि वे हिंदुओं को एकजुट कर सकें. इससे एक संदेश साफ़ है कि योगी अपनी पार्टी के ही आला नेताओं के लिए भी कहीं न कहीं ख़तरा बनते जा रहे थे. इसलिए उनके पर कतरने ज़रूरी थे. लेकिन योगी आदित्य नाथ के साथ परेशानी यह भी है, कि वे एकतरफ़ा राजनीति करते हैं. अभी वे 'अब्बाज़ान' या 'अस्सी बनाम बीस' जैसे बयान दे कर सामाजिक समरसता को कहीं न कहीं धक्का तो पहुंचाते ही हैं. इसलिए वे हिंदुत्व की पिच पर तो खेल सकते हैं लेकिन सबको लेकर कैसे चला जाए, यह समझना उनके लिए मुश्किल लगता है.
गोरखपुर जो इक शहर है
अब जिस गोरखपुर सीट से उन्हें टिकट फ़ाइनल की गई है. हालाँकि गोरखपुर भी उत्तर प्रदेश के पूर्वांचल इलाक़े का सबसे संपन्न शहर है. यूनीवर्सिटी यहां है, मेडिकल कालेज है, इंजीनियरिंग कालेज है और अब तो योगी जी वहां एम्स भी ले आए हैं. प्राकृतिक रूप से यह खूब सरसब्ज भी हैं. अलबत्ता राजनीति में पिछड़ा ज़रूर रहा इसीलिए उसे वैसा प्रचार और प्रसिद्धि नहीं मिली जैसी कि वाराणसी को मिल गई. अन्यथा यहां गोरखनाथ पीठ है और इस पीठ के महंतों का अयोध्या में राम लला मंदिर बनवाने के रास्ते में आने वाली समस्त बाधाओं को दूर करने में महत्त्वपूर्ण रोल रहा है. यह शहर पूर्वोत्तर रेलवे का मुख्यालय भी है और एक जमाने में छोटी लाइन की सारी ट्रेनें यहां से चला करती थीं जिनसे कानपुर, बरेली, मथुरा और दिल्ली ही नहीं राजस्थान भी जुड़ा था. जाहिर है रेलवे का मुख्यालय है तो रेलवे की ठेकेदारी भी होगी और उसे छीनने के लिए गुंडागर्दी भी होती रही होगी इसलिए यह यूपी के कुछ बड़े अपराध 'प्रोन' शहरों में प्रमुख रहा है.
उत्तर प्रदेश के पश्चिमी किनारे पर मुजफ्फर नगर है, तो पूर्वी किनारे पर गोरखपुर. दोनों ही अपराध में अव्वल रहे हैं और दोनों ज़िलों की ज़मीन भी खूब उपजाऊ है. दोनों ज़िलों के किसानों की मुख्य फसल गन्ना है. क्योंकि एक की सीमा हरियाणा और उत्तराखंड से मिलती है तो दूसरे की नेपाल से. अपराधी घटना को अंजाम देते ही भाग लेते हैं. मगर इसमें कोई शक नहीं कि पिछले पांच वर्षों में इन दोनों ज़िलों की अपराध पर लगाम लगी हुई थी. यह मुख्यमंत्री योगी आदित्य नाथ के बड़े होते क़द का संकेत भी था. मुज़फ़्फ़र नगर में अपराध सिर्फ़ लूट, फिरौती तथा ज़मीन क़ब्ज़ाने को लेकर होते रहे हैं, जबकि गोरखपुर में अपराधों ने भी अपना एक सांस्थानिक स्वरूप बना रखा था. जहां माफिया सरग़ना पनपते थे. गोरखपुर के ये माफिया सरग़ना अपने इलाक़े की राजनीति को भी नियंत्रित करते रहे हैं. इसलिए लखनऊ की गद्दी पर कोई भी विराजे उसे इन माफिया सरगनाओं के यहां हाज़िरी देनी ही पड़ती थी.
गोरखनाथ पीठ और जातीय राजनीति
इस गोरखपुर में एक गोरखनाथ पीठ भी है और वह मंदिर राजनीति का केंद्र भी. जो आज न सिर्फ राजनीति का केंद्र है, बल्कि जातीय सत्ता का केंद्र भी है. ब्राह्मण उस मंदिर से दूरी बरतते हैं और राजपूतों को उस मंदिर में प्रश्रय मिलता है. शायद इसलिए भी कि नाथ संप्रदाय ब्राह्मणों की सुपरमेसी के ख़िलाफ़ खड़ा हुआ था. यह संप्रदाय जात-पात और ब्राह्मणी कर्मकांड को नहीं मानता. लेकिन जैसे सारे समाज सुधार आंदोलन सनातनी वैदिकीय व्यवस्था में विलीन हो गए, उसी तरह यह पीठ भी अंततः जातीय राजनीति के दुश्चक्र में फंस गया. आरोप लगता रहा है, कि शहर में ठेकेदारी से लेकर जातीय सत्ता का खेल इसी मंदिर से नियंत्रित होता रहा है. इसी गोरखपुर शहर में दुनिया भर में तुलसी के रामचरित मानस को घर-घर में पहुंचाने वाला गीताप्रेस भी है. और एक ऐसी झील भी है जो इस शहर को विश्व पर्यटन के नक्शे में ला सकती है.
कुपोषण और कालाजार
एक बार सर एलेन ने कहा था कि अवध एकमात्र ऐसा क्षेत्र है "जहां पर लात मारो तो धरती से पानी आ जाता है." प्राकृतिक रूप से इतना हरा-भरा और संसाधनों से परिपूर्ण इलाका और कोई नहीं. मगर फिर भी यहां एक तरफ़ खूब संपन्नता है लेकिन दूसरी तरफ़ घोर गरीबी भी. भुखमरी है और कालाजार नाम की बीमारी हर वर्ष सैकड़ों बच्चों को लील जाती है. अगर यहां की प्रकृति का समुचित उपभोग किया जाता तो शायद यह इलाका आज यूपी के लिए शान होता. मगर यहां का पानी ही यहां के लिए काल बन गया. क्योंकि ज़मीन से बहुत कम गहराई पर मिलने वाले पानी में गंदगी और कचरा भी घुल-मिल जाता है, जिससे पनपते हैं कालाज़ार के वीषाणु. इसीलिए आज के गोरखपुर में गरीबी है, कुपोषण है और कालाजार है. एक बार इस समस्या से निपटने और इलाके को विश्व पर्यटन मे लाने का एक प्रयास मुख्यमंत्री वीर बहादुर सिंह ने किया था पर उनकी मौत के बाद उस उनके प्रयास को वहीं पर दफन कर दिया गया. योगी आदित्य नाथ जब मुख्यमंत्री बने थे, तब यह उम्मीद बनी थी कि शायद इस रामगढ़ ताल को पर्यटन नक़्शे में लाया जाएगा. रामगढ़ ताल यहां का एक ऐसा स्थल है जिसके एक तरफ शहर है तो ठीक उलटी तरफ एक जंगल जिसे वीर बहादुर सिंह ने रिजर्व फारेस्ट घोषित करवा दिया था. मगर देखरेख के अभाव में अब वहां पर भी माफिया राज कायम हो गया था. झील का पैरीफेरल वे कोई 15 किमी का होगा. और अगर वाकई इस झील को विकसित कर लिया जाता तो यह गोरखपुर को पर्यटन मानचित्र पर तो ले ही आता.
बौद्ध और हिंदू सर्किट
गोरखपुर की एक विशेषता यह है कि यह स्थान एक ऐसे स्थल पर है, जहां से हिंदू और बौद्ध तीर्थ स्थलों की एक चेन बनती है. और यह चेन दो राष्ट्रों की सीमाएं पार कर जाती है. यहां से क़रीब डेढ़ सौ किमी लुम्बिनी है. बौद्ध ग्रंथों में यह गौतम बुद्ध का जन्म स्थान है. यह नेपाल के भीतर कोई 50 किमी है. जबकि यहाँ से 80 किमी नेपाल की सीमा है. इसी तरह कपिलवस्तु भी नेपाल सीमा के भीतर है. कुशीनगर में बुद्ध को निर्वाण प्राप्त हुआ था. गोरखपुर से कुछ दूर मगहर है, जहां पर कबीर ने देह त्यागी थी. इसके अलावा यहां से अयोध्या जाया जा सकता है और वाराणसी भी. इस तरह गोरखपुर तो सर्व धर्म समन्वय का एक शानदार तीर्थ बन सकता है. योगी जी यहां से चुनाव लड़ कर गोरखपुर का और अधिक विकास कर सकते हैं. और वहां की जो जातीय माफिया राजनीति है, उसे भी ख़त्म कर सकते हैं. इसके लिए जातियों की पात से उन्हें भी ऊपर उठाना होगा.
(डिस्क्लेमर: लेखक एक वरिष्ठ पत्रकार हैं. आर्टिकल में व्यक्त विचार लेखक के निजी हैं.)
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