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अब वक़्त है टीबी को ख़त्म करने का

Sanaj
5 Jun 2023 8:26 AM GMT
अब वक़्त है टीबी को ख़त्म करने का
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हमारा कर्तव्य है,अन्यथा हम अपने दिमाग़ को मज़बूत और स्पष्ट नहीं रख पाएंगे
हेल्थ | अपने शरीर को स्वस्थ रखना हमारा कर्तव्य है,अन्यथा हम अपने दिमाग़ को मज़बूत और स्पष्ट नहीं रख पाएंगेमहात्मा गौतम बुद्ध का यह कथन शारीरिक स्वास्थ्य के महत्व को बताता है, क्योंकि स्वस्थ शरीर में ही स्वस्थ मन का निवास होता है. स्वस्थ शरीर और मन की बात हम इसलिए कर रहे हैं, क्योंकि कोरोना के डर के चलते हम पिछले दो सालों से कई बीमारियों को नज़रअंदाज़ करते आए हैं. ऐसी ही एक संक्रामक बीमारी है टीबी. इसका संक्रमण व्यक्ति के लिए जानलेवा भी हो सकता है. पर दिमाग़ को मज़बूत रखकर यानी दृढ़ इच्छाशक्ति इस हम टीबी ही क्या दूसरी जानलेवा बीमारियों की भी हरा सकते हैं. वरिष्ठ पत्रकार सर्जना चतुर्वेदी कोरोना से डर के इस दौर में टीबी के ख़तरे के बारे में आगाह कर रही हैं. उन्होंने हर ऐंगल से इस बीमारी की भयावहता की पड़ताल की.
टीबी कहीं गई नहीं हैपिछली सदी में टीबी उन डरावनी बीमारियों में एक थी, जिसका होना मतलब मरीज़ का मौत के मुंह में होना समझा जाता था. हालांकि उपचार की उपलब्धता ने इस बीमारी को क़ाबू में ला दिया, फिर भी दुनिया पूरी तरह से टीबी मुक्त नहीं हुई. इक्कीसवीं सदी की बात करें तो विश्व स्वास्थ्य संगठन के आंकड़ों के मुताबिक़ पूरी दुनिया में वर्ष 2000 से 2018 के बीच 5 करोड़ 80 लाख लोगों ने इसके खिलाफ़ जंग लड़कर जीत हासिल की है. बेशक ये नंबर्स बताते हैं कि टीबी का मतलब जीवन का ख़त्म होना क़तई नहीं है, पर यह आंकड़े इस बात की भी तस्दीक करते हैं कि टीबी अभी भी मौजूद है. वैसे भी कहा गया है कि जीवन में अगर समस्या आई है, तो उसका समाधान भी होगा ही. लेकिन इसके साथ ही इसकी भयावह तस्वीर को नहीं भूला जा सकता है कि सिर्फ़ 2018 में ही 15 लाख लोगों ने इस दुनिया में टीबी की वजह से अपने जीवन को अलविदा कह दिया था. वर्ष 2018 में इस बीमारी से करीब 1 करोड़ लोग पीड़ित थे. जिनमे से 57 लाख पुरुष, 32 लाख महिलाएं और 11 लाख बच्चे थे.
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