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'चिंतन शिविर' के जरिए ही नरेंद्र मोदी ने खींच दिया था 'अंतरराष्ट्रीय योग दिवस' का खाका

jantaserishta.com
20 Jun 2024 3:34 AM GMT
चिंतन शिविर के जरिए ही नरेंद्र मोदी ने खींच दिया था अंतरराष्ट्रीय योग दिवस का खाका
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नई दिल्ली: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 20 और 21 जून को जम्मू-कश्मीर के दो दिवसीय दौरे पर रहेंगे। इस साल पीएम मोदी 'अंतरराष्ट्रीय योग दिवस' पर 21 जून को श्रीनगर में डल झील के किनारे आयोजित कार्यक्रम में शिरकत करेंगे।
हर किसी के लिए यह गर्व की बात है कि योग दिवस की शुरुआत भारत ने ही की थी। नरेंद्र मोदी ने प्रधानमंत्री बनते ही योग को अंतरराष्ट्रीय मंच पर पहचान दिलाने की पहल की। उन्होंने सितंबर 2014 को संयुक्त राष्ट्र में 'योग दिवस' मनाने का प्रस्ताव रखा था। इस प्रस्ताव को कई देशों ने अपना समर्थन दिया और बाद में 11 दिसंबर 2014 को यूएन ने प्रस्ताव को स्वीकार कर लिया। इसके बाद हर साल 21 जून को 'अंतरराष्ट्रीय योग दिवस' मनाने का ऐलान किया गया।
'अंतरराष्ट्रीय योग दिवस' के करीब आते ही मोदी आर्काइव नाम के सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स से पीएम मोदी से जुड़ा एक दिलचस्प वाकया शेयर किया गया है।
पीएम मोदी के योग के प्रति लगाव ने न केवल इसे वैश्विक पहचान दिलाई, बल्कि इसने सरकारी कार्यालयों में एक नई कुशल कार्य संस्कृति को भी जन्म दिया। जो 'चिंतन शिविर' के विचार से जुड़ी हुई है।
गुजरात के मुख्यमंत्री बनने के बाद नरेंद्र मोदी ने राज्य में एक नई कार्य संस्कृति को अपनाने का दृढ़ संकल्प लिया और एक बड़े दृष्टिकोण के तहत मंत्रालय और संबंधित सरकारी विभागों के बीच तालमेल बैठाने पर जोर दिया। इसके लिए उन्होंने दोनों के बीच अनौपचारिक बैठकों का भी सुझाव दिया। यहीं से 2003 में 'चिंतन शिविर' का विचार अस्तित्व में आया।
गुजरात में आयोजित होने वाले वार्षिक नौकरशाहों के सम्मेलन 'चिंतन शिविर' में मुख्यमंत्री, कैबिनेट मंत्री और जिला कलेक्टरों सहित पूरे नौकरशाह तीन दिनों के लिए 'विचार - मंथन सत्र' में एक साथ आते थे। इस तीन दिनों की अवधि के दौरान, नौकरशाह गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ योग भी करते थे।
इन शिविरों में हर वर्ग के अधिकारी और कर्मचारी शामिल होने लगे और एक-दूसरे को व्यक्तिगत रूप से जानने लगे। इस नई मिलनसार कार्यशैली के परिणामस्वरूप अधिकारी और अन्य कर्मचारी एक-दूसरे के साथ अच्छी तरह से घुलमिल गए और अधिकांश समस्याएं कागजी कार्रवाई के बजाय अनौपचारिक 'फोन कॉल' के जरिए ही हल करने लगे। इस अनौपचारिक व्यवस्था ने अधिकारियों को 'जिम्मेदार' और 'जवाबदेह' भी बनाया।
गुजरात के तत्कालीन सीएम नरेंद्र मोदी के साल 2003 में शुरू किए गए 'चिंतन शिविर' से आशाजनक परिणाम सामने आने लगे। उनकी नई कार्यशैली और नौकरशाही को संभालने का ऐसा प्रभाव पड़ा कि इसकी हर जगह प्रशंसा होने लगी और कई दूसरे राज्य 'गुजरात मॉडल' का अनुकरण करने के लिए आगे आने लगे।
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