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अगर ख़त्म करना है टीबी का प्रभाव तो मरीज़ों के साथ न हो भेदभाव

Sanaj
5 Jun 2023 8:19 AM GMT
अगर ख़त्म करना है टीबी का प्रभाव तो मरीज़ों के साथ न हो भेदभाव
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में टीबी के मरीज़ों की स्थिति बदतर हुई है, इस तथ्य को
हेल्थ | कोरोना काल में टीबी के मरीज़ों की स्थिति बदतर हुई है, इस तथ्य को वरिष्ठ पत्रकार सर्जना चतुर्वेदी ने टीबी के प्रति जागरूकता फैलाने वाले अपने लेखों की पहली कड़ी में सिलसिलेवार स्पष्ट किया था. उन्होंने तमाम आंकड़ों के माध्यम से यह बताया था कि किसी ज़माने में जानलेवा समझी जानेवाली यह बीमारी तमाम दावों के बावजूद आज भी कहीं गई नहीं है. सर्जना का मानना है कि टीबी को हरानेवाली दवाइयों की उपलब्धता के बावजूद अगर आज भी यह पूरी तरह से ख़त्म नहीं हो सकी है तो इसका कारण है टीबी मरीज़ों के साथ होनेवाला भेदभाव. अपनी बात को और अधिक स्पष्ट करने के लिए वे कुछ केस स्टडीज़ के साथ आगे बढ़ना चाहती हैं.
टीबी मरीजों को भेदभाव नहीं, आपके सहयोग की दरकार है
टीबी एक संक्रामक बीमारी है. हालांकि इसका इलाज उपलब्ध है, पर समाज में इसको लेकर अब भी एक तरह का डर है. यह डर कहीं न कहीं इसके मरीज़ों के साथ भेदभाव का कारण बनता है. इस बात को समझने के लिए हमने ख़ुद टीबी के तीन मरीज़ों से बातचीत की. उससे यह बात सामने आई कि टीबी के मरीज़ और उनके परिजन सामाजिक भेदभाव से इतने डरे हुए होते हैं, कि वे लोगों को इस बारे में बताना ही ठीक नहीं समझते.
बुखार की शिकायत हुई. जांच कराने पर पता चला कि कोरोना वायरस का संक्रमण है. स्थिति ख़राब होने पर मई में हॉस्पिटल में एडमिट करना पड़ा. कोविड की रिपोर्ट मई में निगेटिव आने के बावजूद जब तबीयत में सुधार नहीं हुआ तो जून में भोपाल में इलाज शुरू हुआ. तब संक्रमण से फेफड़ों के पत्थर के समान कठोर होने की जानकारी एक निजी अस्पताल के डॉक्टर ने दी. बाद में एम्स में इलाज के दौरान विस्तृत जांच से पता चला कि कोविड की वजह से टीबी हो गई है. टीबी का इलाज शुरू होने के बाद भले ही तबीयत में सुधार होने लगा, लेकिन राघवेन्द्र और उनके परिवार के सदस्यों ने किसी भी तरह के भेदभाव के डर से तय किया कि वह इसके बारे में किसी को नहीं बताएंगे, बल्कि रिश्तेदारों या जानने वालों को वह सिर्फ़ लंग्स इंफ़ेक्शन या पोस्ट कोविड समस्या ही बताएंगे.
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