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प्रकृति का संरक्षण नहीं होने से बढ़ेगी रोजगार व स्वास्थ्य की समस्या : पर्यावरणविद् विक्रांत तोंगड़

jantaserishta.com
29 July 2024 3:18 AM GMT
प्रकृति का संरक्षण नहीं होने से बढ़ेगी रोजगार व स्वास्थ्य की समस्या : पर्यावरणविद् विक्रांत तोंगड़
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नई दिल्ली: प्रकृति संरक्षण के महत्व को देखते हुए हर साल 28 जुलाई को विश्व प्रकृति संरक्षण दिवस के रूप में मनाया जाता है। यह दिन हमें एहसास दिलाता है कि हमारे लिए प्रकृति कितना महत्व रखती है। लेकिन, आम जनमानस की बदलती लाइफ स्टाइल के चलते पर्यावरण को काफी नुकसान पहुंच रहा है। इसका खामियाजा भविष्य में हमारी आने वाली पीढ़ी को उठाना होगा। यह बात आईएएनएस से बातचीत के दौरान पर्यावरणविद् विक्रांत तोंगड़ ने कही।
तोंगड़ ने कहा कि अभी भी हम अगर प्रकृति संरक्षण को लेकर जागरूक नहीं हुए, तो भविष्य में रोजगार का बहुत बड़ा संकट खड़ा हो जाएगा। स्वास्थ्य की समस्याएं बढ़ जाएंगी। इसके साथ ही साथ लोगों का बड़े स्तर पर विस्थापन होगा। समुद्र से घिरे द्वीपों वाले देश मालद्वीप को विस्थापन का सामना करना होगा। इंटर स्टेट व इंटर नेशन विस्थापन होगा। उस समय अगर कोई देश इन्हें आने की अनुमति देगा, तो फिर उस देश की अर्थव्यवस्था पर असर पड़ेगा। पूरी दुनिया अस्त-व्यस्त के कगार पर आ जाएगी। ग्लोबल वार्मिग व बड़े स्तर पर तूफान का प्रभाव सीधे तौर पर जीडीपी पर पड़ेगा। दुनिया एक नए स्वरूप में आ जाएगी, जो भयानक और जोखिम भरी होगी। इसलिए हमें प्रकृति संरक्षण पर जोर देना चाहिए।
उन्होंने कहा कि हम सभी जानते हैं, पृथ्वी को ब्लू प्लेनेट के तौर पर जाना जाता है। क्योंकि, यहां भरपूर मात्रा में पानी मौजूद है। यहां नदियां हैं, पेड़ पौधे हैं। इसे बरकरार रखने के लिए हमें प्रयास करने ही होंगे। अगर हम ऐसा नहीं कर पाए तो पानी साफ नहीं रहेगा, जंगल नहीं रहेंगे, मिट्टी की उर्वरा शक्ति खत्म हो जाएगी। इसी उद्देश्य से विश्व प्रकृति संरक्षण दिवस मनाया जाता है। इसे ज्यादा लोगों को जागरूक करने के लिए सेलिब्रेट किया जाता है। हमें हवा, पानी, पेड़, पौधों को संरक्षित करना है। भारतीय परिपेक्ष्य में इसका महत्व और बढ़ जाता है। क्योंकि हमारी ज्यादातर आबादी खेती पर निर्भर है। हमारा देश कृषि प्रधान है। खेती और कृषि पूरी तरह से प्रकृति से जुड़ी हुई है।
उन्होंने कहा कि हमारे देश की आबादी दुनिया में सबसे अधिक है। यह दुनिया की 19 से 20 फीसद है, लेकिन यहां जल स्त्रोत पुरी दुनिया का सिर्फ चार फीसद है। अगर हम आबादी से तुलना करेंं, तो प्राकृतिक संसाधन बेहद कम हैं। इसलिए हमें इनका उपयोग सावधानी से करना होगा। पानी का संरक्षण हमारे लिए बेहद जरूरी है।
उन्होंने कहा कि प्रकृति के संरक्षण में आम जनमानस बहुत बड़ा बदलाव ला सकता है। इसके अलावा उद्योगपतियों को भी सस्टेनेबल डेवलेपमेंट एप्रोच के साथ काम करना चाहिए। उन पर ग्रीन कर भी लगाया जाए। प्रकृति को संरक्षित करने में योगदान देने वाले आम लोगों की आर्थिक मदद की जाए। वर्षा जल के संरक्षण के लिए खेतों में तालाब बनाया जाना चाहिए। ज्यादा से ज्यादा पेड़ पौधे लगाए जाएं। गाड़ियों व एसी का कम से कम उपयोग किया जाए। दैनिक जीवन में बदलाव करें, तभी हम पर्यावरण को बचा पाएंगे।
जल प्रदूषण पर विक्रांत तोंगड़ कहा कि हमारी नदियों में कूड़ा-करकट डाला जा रहा है। नदियों को साफ-सफाई ठीक से नहीं हो पा रही है। क्योंकि, उसमें कहीं न कहीं भ्रष्टाचार है। हमारे यहां टेक्नोलॉजी इतनी महंगी है कि कई इंडस्ट्री उस टेक्नोलॉजी को लेने में परहेज करते हैं। अगर कोई ले भी लेता है, तो उसे मैनेज नहीं कर पाता है। हमारे यहां कई नगर निगम हैं, जिनके पास एसटीपी लगाने की क्षमता में नहीं है। क्योंकि उनका रेवन्यू मॉडल उन्हें परमिशन नहीं देता है। इसी वजह से प्रदूषण बढ़ रहा है। हमारे यहां सॉलिड वेस्ट मैनेजमेंट प्रभावी तरीके से नहीं हो पा रहा है।दिल्ली में गाजीपुर, ओखला लैंडफिल साइट बन चुके हैं। दिल्ली, गुरुग्राम, नोएडा में कूड़े के पहाड़ देखने को मिल जाते हैं। मिस मैनेजमेंट की वजह से हम कुछ समय बाढ़ से ग्रसित रहते हैं और कुछ समय सूखे से।
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