आज पिताजी 80 वर्ष के हो गए हैं और इस विशेष अवसर पर उनके जीवन और अनुभवों को याद करना एक अद्भुत अनुभव है। उनका जीवन हमें न केवल सिखाता है कि कठिनाइयों का सामना कैसे किया जाए, बल्कि यह भी कि सच्चाई, ईमानदारी और सिद्धांतों के साथ जीवन कैसे जिया जाए। पिताजी अपने समय के एक सशक्त कर्मचारी नेता रहे हैं और उन्होंने समाज, राजनीति और ग्रामीण जीवन के हर पहलू में सक्रिय भूमिका निभाई है। उनकी सोच में स्पष्टता और गहराई है, जो उन्हें दूसरों से अलग बनाती है।
संघर्ष और नेतृत्व की मिसाल-
वर्ष 1987-88 में उनके अपहरण की घटना और 1990 में चूना चोरी के गिरोह को पकड़ने का साहसिक कार्य, उनके दृढ़ संकल्प और साहस का प्रतीक है। ये घटनाएँ न केवल उनके जीवन के कठिन क्षण थे, बल्कि यह भी दर्शाती हैं कि उन्होंने किस तरह हर चुनौती का सामना किया। उनका नेतृत्व कौशल और सामाजिक सरोकारों के प्रति प्रतिबद्धता ने उन्हें समाज में एक आदर्श व्यक्ति बनाया।
राजनीतिक और सामाजिक समझ-
पिताजी की राजनीति की समझ गहरी और व्यापक है। वे श्यामाप्रसाद मुखर्जी, राम मनोहर लोहिया, इन्दिरा गांधी, अटल जी, पंडित विद्याचरण शुक्ल, पवन दीवान, पंडित श्यामाचरण शुक्ल, केयूर भूषण, रमेश बैस, जैसे राजनीतिक नेताओं के किस्से, अनुभव साझा करते हैं और उनके पास रायपुर के कई कलेक्टरों जैसे रविन्द्र शर्मा, श्री ए.के. श्रीवास्तव, श्री ए.पी.जे. जोगी और श्री नजीब जंग के कुछ खट्टी-मीठी कार्यकाल को याद करते हैं। उनकी राजनीतिक और सामाजिक समझ आज भी हमारे लिए प्रेरणादायक है।
धार्मिकता और नैतिकता का प्रतीक-
पिताजी का धार्मिक ग्रंथों के प्रति लगाव भी गहरा है। रामायण के दोहे और चौपाइयों का उनके जीवन में विशेष स्थान है। वे हर समस्या का समाधान रामायण से जोड़ते हुए उदाहरण प्रस्तुत करते हैं। उन्हें रामायण मंडली के टीकाकार के रूप में व्यापक लोकप्रियता मिली और उनका हारमोनियम प्रेम आज भी बरकरार है। वे हारमोनियम चलाने में उस्ताद है, तो तबला वादन में जबरदस्त पकड़ है।
उनकी ईमानदारी और सच्चाई के प्रति प्रतिबद्धता उन्हें एक मजबूत व्यक्तित्व बनाती है। पिताजी को झूठ और चोरी से नफरत है और इस सिद्धांत पर उन्होंने हमें भी पाला-पोसा। मुझे आज भी वह दिन याद है, जब मैंने 'मुन्ना बाड़ा' से बेर चुराए थे और उन्होंने मुझे सच्चाई बताने के बाद भी खूब पिटाई किया था और सिखाया कि चोरी कितनी गलत है। इस सीख ने जीवनभर मेरा साथ दिया है।
समाज में योगदान-
पिताजी का गांव और ग्रामीण जीवन से गहरा लगाव है। पंचायत की बैठकों में उनकी उपस्थिति आवश्यक मानी जाती है और वे कई लड़कियों और लड़कों के विवाह संबंधों को जोड़ने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा चुके हैं। जातिवाद के प्रति उनकी नफरत और समानता के प्रति उनकी प्रतिबद्धता उन्हें एक सामाजिक सुधारक के रूप में स्थापित करती है।
12 वर्ष पहले मां के निधन के बाद भी पिताजी ने परिवार को मजबूती से संभाला। उनका दृष्टिकोण हमेशा सकारात्मक और प्रगतिशील रहा। उनके विचार आज भी हमें प्रेरित करते हैं कि जीवन में कठिनाइयों को कैसे पार किया जाए। गणेश चतुर्थी के दिन जन्म लेने के कारण उनका नाम 'गणेश' रखा गया और यह परंपरा आज भी हमारे परिवार में सुखद कार्य के समय गणेश और मां अंबा से शुरू होती है।
सचमुच पिताजी का जीवन ने हमें सिखाया है कि सच्चाई, ईमानदारी और सिद्धांतों के साथ कैसे जिया जाए। उनका नेतृत्व, साहस, सामाजिक और धार्मिक योगदान हमारे परिवार के लिए प्रेरणादायक है। हम उनके स्नेह और मार्गदर्शन के लिए हमेशा आभारी रहेंगे। पिताजी, आपके चरण स्पर्श करता हूं और प्रार्थना करता हूं कि आप सदैव स्वस्थ रहें और दीर्घायु हों। आपकी छांव हम सब बच्चों पर बने रहे, आई लव यू पापा!
(विजय मानिकपुरी)