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ऐसे लोगों के साथ संबंध नहीं रख सकते, जिनका अस्तित्व ही भारत के विरोध से स्थापित हो : उपराष्ट्रपति धनखड़

jantaserishta.com
20 Sep 2024 2:56 AM GMT
ऐसे लोगों के साथ संबंध नहीं रख सकते, जिनका अस्तित्व ही भारत के विरोध से स्थापित हो : उपराष्ट्रपति धनखड़
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नई दिल्ली: उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ गुरुवार को एक कार्यक्रम में देशविरोधी ताकतों द्वारा राष्ट्र के खिलाफ उत्पन्न किए जाने वाली चुनौतियों पर प्रकाश डाला। उन्होंने इस बात पर चिंता व्यक्त की कि कैसे देश के अंदर और बाहर कुछ लोग भारत की संस्थाओं और राष्ट्रीय प्रगति को कमजोर करने की कोशिश कर रहे हैं।
जगदीप धनखड़ ने उन लोगों से सावधानी बरतने के लिए कहा, जो भारत के खिलाफ खतरनाक मंसूबे पालते हैं। उन्होंने कहा, “हम उन लोगों के साथ संबंध नहीं रख सकते, जिनका अस्तित्व ही भारत के विरोध से स्थापित है। वे भारत के अस्तित्व को चुनौती देने के लिए घातक रूप से आकांक्षी हैं।”
धनखड़ ने कहा, “क्या हम ऐसे व्यक्ति की प्रशंसा कर सकते हैं, जो देश के भीतर और बाहर देश को बदनाम कर रहा है? हमारी पवित्र संस्थाओं को नुकसान पहुंचाया जा रहा है, जिससे हमारी उन्नति प्रभावित हो रही है। क्या हम इसे नजरअंदाज कर सकते हैं? मेरा वादा है कि मैं, युवा लड़के और लड़कियों के साथ कभी अन्याय नहीं होने दूंगा।”
धनखड़ ने पत्रकारिता में व्यक्ति-केंद्रित दृष्टिकोण से दूर जाने और संस्थानों के साथ-साथ राष्ट्रीय विकास पर ध्यान केंद्रित करने की आवश्यकता पर बल देते हुए कहा, “हमें उन मुद्दों को एड्रेस करना होगा, जो सिर्फ चुनिंदा व्यक्तियों पर आधारित नहीं हैं। हम व्यक्ति-केंद्रित दृष्टिकोण कैसे अपना सकते हैं? हमारी पवित्र संस्थाओं को बदनाम नहीं किया जाना चाहिए।”
वैश्विक मंच पर राष्ट्र की छवि को सुरक्षित रखने के महत्व पर जोर देते हुए, धनखड़ ने कहा, “हम देश के बाहर भारत की गलत तस्वीर को चित्रित नहीं कर सकते। हर भारतीय, जो इस देश से बाहर जाता है, वह इस राष्ट्र का राजदूत है। उसके दिल में राष्ट्र और राष्ट्रवाद के लिए 100 प्रतिशत प्रतिबद्धता के अलावा कुछ भी नहीं होना चाहिए।”
संविधान ने प्रत्येक संस्था की भूमिका को परिभाषित किया और प्रत्येक को अपने संबंधित क्षेत्र में सर्वोच्च प्रदर्शन करना चाहिए। उन्होंने कहा, “अगर कोई संस्था किसी विशेष मंच से किसी दूसरी संस्था के बारे में कोई टिप्पणी करती है, तो वह विधिशास्त्रीय दृष्टि से अनुचित है। इससे पूरी व्यवस्था के संतुलन को खतरा है। विधिशास्त्रीय दृष्टि से, संस्थागत अधिकार क्षेत्र सिर्फ संविधान द्वारा परिभाषित किया जाता है।"
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