बांग्लादेश में अमानवीय रूप से जीने को विवश रोहिंग्या मुस्लिम...म्यांमार सेना ने किया था जुल्म

जनता से रिश्ता वेबडेस्क। ढाका, एजेंसी। 25 अगस्त को रोहिंग्या विद्रोहियों पर किए गए सैन्य हमले की तीसरी वर्षगांठ है। म्यांमार से अब तक करीब छह लाख 90 हजार रोहिंग्या मुसलमान गांव छोड़कर बांग्लादेश चले गए। रोहिंग्या मुसलमानों ने फौज पर आगजनी, रेप और मर्डर का आरोप लगाया गया है। संयुक्त राष्ट्र ने भी नरसंहार की आशंका जताई थी। म्यांमार ने इसे क्लीयरेंस ऑपरेशन बताते हुए रोहिंग्या विद्रोहिया के हमलों की वाजिब रिएक्शन करार दिया था।
तीन वर्ष पूर्व रोहिंग्या विद्रोहियों पर सेना का कहर
म्यांमार बौद्ध बहुल आबादी वाला देश है। यहां कभी दस लाख से ज्यादा रोहिंग्या मुसलमान भी रहते हैं। म्यांमार के रखाइन राज्य में 2012 से बौद्धों और रोहिंग्या विद्रोहियों के बीच सांप्रदायिक हिंसा की शुरुआत हुई। तीन वर्ष पूर्व हालात तब भयावह हो गए, जब म्यांमार में मौंगडो बॉर्डर पर रोहिंग्या विद्रोहियों के हमले में नौ पुलिस अफसरों की मौत हो गई और फिर सेना ने इनका दमन शुरू किया।
सेना के साथ बौद्धों ने भी हमला बोल दिया। इस हमले में हजारों रोहिंग्या हिंसा की भेंट चढ़ गए। इसके बाद से ये तनाव बढ़ता ही जा रहा और रोहिंग्या मुस्लिम देश छोड़ने को मजबूर हुए हैं। भले ही सदियों से रोहिंग्या म्यांमार में रह रहे हैं, लेकिन उन्हें स्थानीय बौद्ध अवैध घुसपैठिया ही मानते हैं।
शिविरों में ऐसे बसर करते हैं रोहिंग्या
- बांग्लादेश में करीब 10 लाख रोहिंग्या पांच शिविरों में रहते हैं, जो मैनहट्टन के एक तिहाई हिस्से के बराबर क्षेत्र को कवर करते हैं। इन शरणार्थियों की कुल संख्या में आधे बच्चे हैं। इन शिविरों में पुरुषों की तुलना में महिलाएं अधिक हैं।
- दुनिया के सबसे बड़े और सबसे घनी आबादी वाले शरणार्थी कैंप कुटुपालोंग, जो सिर्फ 13 वर्ग किलोमीटर का क्षेत्र है, 700,000 से अधिक लोग रहते हैं।
- अधिकांश शरणार्थी बांस और प्लास्टिक की चादरों से बने आश्रयों में रहते हैं। शरणार्थियों को काम करने की अनुमति नहीं है और सरकार की अनुमति के बिना शिविरों को नहीं छोड़ सकते हैं।
- संयुक्त राष्ट्र की एजेंसी, अंतराष्ट्रीय-राष्ट्रीय सहायता समूह और बांग्लादेश सरकार उन्हें भोजन, स्वास्थ्य और सामुदायिक शौचालय और पीने के पानी जैसी बुनियादी सुविधाएं प्रदान करती हैं।
- पिछले साल के अंत में बांग्लादेश सरकार ने राष्ट्रीय सुरक्षा का हवाला देते हुए शरणार्थी शिविरों में तीव्र गति वाले इंटरनेट के उपयोग पर प्रतिबंधित लगा दिया था।
- इस वर्ष जनवरी महीने में बांग्लादेश सरकार ने 14 साल की उम्र वाले रोहिंग्या बच्चों को औपचारिक रूप से म्यांमार पाठ्यक्रम को पढ़ने की अनुमति दी थी। 14 वर्ष से अधिक उम्र के बच्चों को कौशल प्रशिक्षण देनेे का भरोसा दिलाया था।
- 15 मई को शरणार्थी शिविरों में कोरोना वायरस का पहला मामला सामने आया। 17 अगस्त तक 79 मामलों की पुष्टि हुई। अब तक छह कोरोना मरीजों की मौत हो चुकी है।
- लंबी वार्ता के बाद शरणार्थियों की वापसी को लेकर बांग्लादेश और म्यांमार राजी हुए, लेकिन हिंसा की डर से शरणार्थियों ने वापस जाने से मना कर दिया।