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युवक ने शुरू किया कारोबार, पेड़ से तेल और शहद बनाकर हर साल करता है लाखों की कमाई

jantaserishta.com
27 March 2022 2:55 PM GMT
युवक ने शुरू किया कारोबार, पेड़ से तेल और शहद बनाकर हर साल करता है लाखों की कमाई
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यूकेलिप्टस यानी सफेदे के पेड़ (Eucalyptus) का नाम सुनते ही मन नकारात्मकता से भर जाता है. लेकिन गोंडा जिले के वजीर गंज इलाके में रहने वाले अरुण पांडेय ने न सिर्फ इसके औषधीय गुणों के पहचाना बल्कि इससे निकलने वाले तेल के जारिए लोगों को स्वस्थ्य और समृद्ध बनाने में जुटे हुए हैं. सफेदे के पेड़ से निकलने वाला तेल और शहद सेहत के लिए संजीवनी साबित हो रहा है.

आमतौर पर लोग यूकेलिप्टस (Eucalyptus) के पेड़ को लकड़ी के प्रयोग के लिए जानते हैं. यह पेड़ बहुत ज्यादा पानी सोखता है, इसलिए इसे नदी- नहर किनारे या दलदली इलाके में लगाया जाता है. इसके पत्तियों से तेल निकालकर दवा बनती है. हालांकि बहुत ही कम लोगों को पता होगा कि इसके फूल से शहद भी बनता है. यह शहद बाल और स्किन के लिए सबसे ज्यादा फायदेमंद माना जाता है.
यूकेलिप्टस (Eucalyptus) से निकलने वाला तेल और शहद का स्वाद लोगों को खूब भा रहा है. वजीरगंज के परसहवा निवासी अरुण कुमार पाण्डेय ने इसकी पहल की है. वे दिल्ली यूनिवर्सिटी से ग्रेजुएट हैं और आईएएस की तैयारी कर रहे हैं. ग्रेजुएट की पढ़ाई करने के बाद उन्होंने आईएएस की तैयारी की. इसके साथ ही यूकेलिप्टिस की पत्ती से तेल और फूल से शहद बनाने के कारोबार में भी हाथ आजमाया. उनके लिए यह कारोबार वरदान साबित हो गया है. वे अब तक इस बिजनेस से तकरीबन पचास लाख रुपये तक कमा चुके हैं और काफी लोगों को रोजगार भी दे चुके हैं.
अरुण पांडेय ने बताया कि उन्होंने 1 जनवरी 2018 से इस व्यापार को शुरू किया था. तब से अब तक वे तकरीबन पांच हजार पौधे लगा चुके हैं. जिसमें एक दर्जन से ज्यादा लोगों को रोजगार मिला है. पांडेय ने बताया कि सफेद के पेड़ से तेल बनाने के लिए वे उसकी पत्तियों को टैंक में डालकर हीट करते हैं. जिससे तेल और भाप साथ निकलते हैं. साथ में लगे सेपरेटर में पानी और तेल अलग-अलग हो जाता है. इस तेल की सप्लाई डाबर, पातंजलि और अन्य जगहों पर की जाती है.
उन्होंने बताया कि इस कारोबार को शुरू करने से पहले वे केन्द्रीय औषधीय एवं सुगंध पौधा संस्थान (सीमैप) में इसका प्रशिक्षण ले चुके हैं. इसका तेल का नाम यूकेलिप्टाल रखा गया है. हमने सीमैप में देखा था किस तरह की पत्तियों में कितना कंटेंट लेवल है.
अरुण पांडेय ने बताया कि पर्यावरण के हिसाब से इस पौधे को खराब कहने की बात बिल्कुल झूठी है. यूकेलिप्टस (Eucalyptus) का पेड़ पानी में बढ़ता है लेकिन हाइब्रिड यूकेलिप्टस ज्यादा पानी बर्दाश्त नहीं कर सकता है. यह ज्यादा देर पानी में रहता है तो इसके सूखने का खतरना बढ़ जाता है. इस हिसाब से यह पौधा पर्यावरण हितैषी है और साथ ही औषधि के हिसाब से भी काफी महत्वपूर्ण है.
उन्होंने बताया कि दिल्ली यूनिवर्सिटी से ग्रेजुएशन करने के बाद उन्होंने आईएएस की तैयारी शुरू की. इसके साथ ही यूकेलिप्टस (Eucalyptus) की पत्ती से तेल निकालने का प्लांट लगाया. वे साल में 50 से 60 क्विंटल तेल निकाल लेते हैं, जिसकी सप्लाई देशभर में होती है. इस बिजनेस से वे अच्छा खासा मुनाफा कमा रहे हैं.
फूलों से बनाया जाता है शहद
केन्द्रीय औषधीय एव सगंध पौधा संस्थान (सीमैप) के वैज्ञानिक राजेश वर्मा कहते हैं कि यूकेलिप्टस (Eucalyptus) की कुछ प्रजातिया हैं, जिनका इस्तेमाल औषधीय ऑयल बनाने में किया जाता है. उनमें से यूकेलिप्टस ग्लोबस और तेरह की प्रजातियां भी शामिल हैं. इन प्रजातियों की उंचाई बढ़ने नहीं दी जाती है. जिससे पेन रिलीफ बाम और अन्य दवाएं बनाई जाती हैं. इसके फूलों से शहद बनाया जाता है. तराई के इलाकों में इसकी खेती आराम से की जा सकती है. तेल के लिए इसकी ग्रोथ ज्यादा नहीं की जानी चाहिए.
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