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मुंशी की नौकरी कर वकील बना युवक, सिपाही मर्डर केस में खुद को साबित किया बेगुनाह

Nilmani Pal
10 Dec 2023 6:21 AM GMT
मुंशी की नौकरी कर वकील बना युवक, सिपाही मर्डर केस में खुद को साबित किया बेगुनाह
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यूपी। मेरठ में एक युवा ने बुरी से बुरी परिस्थिति में भी अपनी हिम्‍मत न हारते हुए सही ढंग से खुद को संकट से निकालने और आगे बढ़ने का रास्‍ता बनाया। इस युवा पर साढ़े 18 साल की उम्र में सिपाही की हत्‍या का आरोप लगा था। इस आरोप में उसे करीब ढाई साल जेल में गुजारने पड़े। इस दौरान अपनों ने भी साथ छोड़ दिया। तमाम नकारात्‍मक स्थितियों के बावजूद युवा ने अपनी लड़ाई जारी रखी। यहां तक की वकालत की पढ़ाई कर खुद ही अपना केस लड़ा और बेगुनाही भी साबित की।

इस युवक का नाम है अमित चौधरी। मूल रूप से बागपत के किरठल गांव के रहने वाले अमित की कहानी किसी को भी हैरान कर सकती है। वहीं यह कहानी उन युवाओं के लिए एक मिसाल की तरह है जिन्‍हें हालात की वजह से प्रतिकूल स्थितियों का सामना करना पड़ा हो।

बताते हैं कि 12 अक्‍टूबर 2011 को थानाभवन के मस्‍तगढ़ गांव की पुलिया पर एक लाख रुपए के इमी बदमाश सुमित कैल ने पुलिसवालो पर जानलेवा हमला कर उनकी राइफलें लूट ली थीं। उस वारदात में एक सिपाही की मौके पर ही दर्दनाक मौत हो गई थी। जबकि एक अन्‍य गंभीर रूप से घायल हुआ था। उस सनसनीखेज वारदात के बाद बदमाशों को पकड़ने के लिए पुलिस ने पूरे इलाके को सील कर दिया था। पुलिस ने 17 लोगों पर हत्‍या और सरकारी असलहे लूटने के आरोप में केस दर्ज किया था।

अमित बताते हैं कि उस वक्‍त उनकी उम्र साढ़े 18 साल के करीब थी। इस उम्र में नौजवान अपने भविष्‍य के सपने देखते हैं। अमित का भी सपना था कि वह सेना में जाएं। वह इसकी तैयारी भी करते थे। अमित को एनसीसी सी सर्टिफिकेट मिल चुका था। उनका इरादा पक्‍का था लेकिन नियति को कुछ और ही मंजूर था। अमित बताते हैं कि उनका कसूर सिर्फ इतना था कि वह बहन की ससुराल गए हुए थे जो घटनास्‍थल के पास ही स्थित थी। बेगुनाह होते हुए भी किसी ने अमित की बात का यकीन नहीं किया। पुलिस ने उन पर हत्‍या का आरोप लगाया। उन्‍हें गिरफ्तार कर जेल भेज दिया। इस वारदात के बाद अमित को लेकर अपनों की नज़रे भी बदल गईं। लोगों ने उन्‍हें अपराधी के तौर पर देखना शुरू कर दिया।

अमित बताते हैं कि उन पर रासुका भी लगा दिया गया था जिसे बाद में हटा दिया गया। जमानत पर छूटने के बाद घर पहुंचे तो किसी ने उन्‍हें गले नहीं लगाया। अमित इन हालात से टूट से गए थे लेकिन हिम्‍मत नहीं हारी। अमित कहते हैं कि अपनों ने साथ नहीं दिया लेकिन कुछ लोगों ने सहारा भी दिया। ऐसे लोगों ने हमेशा हिम्‍मत दी। अमित बताते हैं कि वह गुरुग्राम चले गए। वहां तीन हजार रुपए महीने पर एक वकील के यहां मुंशी के रूप में नौकरी की। सड़कों पर कैलेंडर बेचे। इस दौरान कई बार भूखे पेट सोना पड़ा।

कई बार धार्मिक आयोजनों में जाकर भोजन कर लेते थे। मुसीबत भरे हालात के चलते अमित का स्‍नातक जो तीन साल में पूरा हो जाना चाहिए था वो छह साल में पूरा हुआ। 2015 में बीए के बाद उन्‍होंने मेरठ यूनिवर्सिटी से एलएलबी की। 2018 में एलएलबी की पढ़ाई पूरी हुई तो वह मुजफ्फरनगर कोर्ट में चल रहे अपने मुकदमे की पैरवी खुद करने लगे। खुद की बेगुनाही साबित करने के लिए एक-एक सबूत इक्‍ट्ठा किए। इस बीच उन्‍होंने एलएलएम भी किया।

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