एमपी। आमतौर पर किसानों में यह धारणा बन गई है कि जैविक खेती (Organic Farming) से फायदा नहीं होता. इसके उलट केला उत्पादन के लिए मशहूर मध्य प्रदेश के बुरहानपुर क्षेत्र में एक किसान ने ऐसी खेती से ही सफलता की नई कहानी लिखी है. मौसम की बेरुखी, जलवायु परिवर्तन और पारंपरिक खेती में अटके किसानों के लिए खेती में खर्च अधिक और मुनाफा कम होने लगा है. लेकिन आज हम आपको मिलवाते हैं एमपी के बुरहानपुर के छोटे से गांव नाचनखेड़ा के किसान प्रशांत चौधरी से, जो जैविक तरीके से अमरूद, सीताफल, मिर्च और टमाटर की खेती कर लाखों रुपए की शुद्ध आमदनी कर रहे हैं. चौधरी बताते हैं कि उनकी सफलता में बागवानी (Horticulture) और कृषि विभाग का अहम योगदान है.
चौधरी ने बताया कि उनके द्वारा उपजाई गई फलसब्जियां मंडी में हाथों हाथ और व्यापारियों द्वारा अधिक मूल्य पर खरीद ली जाती हैं. एक एकड़ खेत में वो 20000 से लेकर 25000 रुपए तक का खर्च करते हैं और 200000 रुपए तक शुद्ध मुनाफा कमाते हैं. मुनाफा इसलिए भी अच्छा मिल रहा है क्योंकि उन्होंने पारंपरिक फसलों की बजाय बागवानी को चुना. चौधरी की सक्सेस स्टोरी बताती है कि जैविक खेती किसानों की आय (Farmers Income) में वृद्धि करने में मददगार साबित हो सकती है.
चौधरी बताते हैं कि वह भोसला मिलिट्री स्कूल नासिक, महाराष्ट्र में पढ़ते थे. इस दौरान उनके पिताजी की तबीयत बिगड़ी और घर की जिम्मेदारी उन पर आ गई. फिर उन्होंने बीच में ही पढ़ाई छोड़ खेती करना शुरू कर दिया. चौधरी बताते हैं कि पहले वो पारंपरिक खेती करते थे. अपने खेत में रासायनिक फर्टिलाइजर (Chemical Fertilizer) और कीटनाशक का जमकर इस्तेमाल किया करते थे. जिससे उनको खेती में लागत अधिक और मुनाफा कम मिलता था. यही नहीं केमिकल वाले कृषि उत्पादों से शरीर को नुकसान भी होता था. फिर उन्होंने केमिकल युक्त खेती को त्याग कर ऑर्गेनिक का रास्ता अपनाया.