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वर्ल्‍ड रेकॉर्ड: युवक ने 24 मिनट 3 सेकेंड तक अपनी सांस रोककर रखी, जानिए शरीर में क्‍या होता है असर?

jantaserishta.com
17 May 2021 6:30 AM GMT
वर्ल्‍ड रेकॉर्ड: युवक ने 24 मिनट 3 सेकेंड तक अपनी सांस रोककर रखी, जानिए शरीर में क्‍या होता है असर?
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क्‍या आप जानते हैं कि सबसे लंबे समय तक सांस रोककर रखने का वर्ल्‍ड रेकॉर्ड किसके नाम है? वह शख्‍स हैं स्‍पेन के एलेक्‍स सेगुरा वेन्‍ड्रेल। बार्सिलोना में रहने वाले एलेक्‍स ने फरवरी 2016 में 24 मिनट 3 सेकेंड तक अपनी सांस रोककर वर्ल्‍ड रेकॉर्ड बनाया था। उसे तोड़ना भले ही मुश्किल हो मगर बहुत सारे लोग आजकल सांस रोकने की क्षमता जरूर चेक कर रहे हैं।

सोशल मीडिया पर तमाम ऐसे मैसेज वायरल हैं जिसमें कहा जाता है कि जितने लंबे समय तक आप सांस रोक सकते हैं, आपके फेफड़े उतने ही सेहतमंद हैं। सांस रोकने का फेफड़ों की सेहत से नहीं, उनकी क्षमता से लेना-देना है। लंबे समय तक सांस रोकने की प्रैक्टिस कर आप फेफड़ों की क्षमता बढ़ा सकते हैं। लेकिन अगर आप ठीक से एक्‍सरसाइज नहीं करें तो फायदे के बजाय इसका नुकसान भी उठाना पड़ सकता है।
शुरुआती 30 सेकेंड (अनुमानित समय)
जब आप सांस रोकते हैं तो शुरू में काफी रिलैक्‍स महसूस होता है।
0:30 to 2:00
आधे मिनट के बाद थोड़ी तकलीफ का अहसास होता है। फेफड़ों में थोड़ा दर्द उठता है।
2:00 to 3:00
लगभग दो मिनट के बाद पेट तेजी से ऐंठने लगता है, वह सिकुड़ना शुरू हो जाता है। ऐसा इसलिए क्‍योंकि आपका डायफ्राम आपको सांस लेने के लिए मजबूर कर रहा होता है।
3:00 to 5:00
चक्‍कर आने लगते हैं। शरीर में कार्बन डाई-ऑक्‍साइड की मात्रा बढ़ रही होती है जो खून से ऑक्सिजन को बाहर फेंकती है और दिमाग में जाने वाले ऑक्सिजनयुक्‍त खून की मात्रा कम होती है।
5:00 to 6:00
इस वक्‍त तक शरीर कांपने लगता है, मांसपेशियां नियंत्रण से बाहर होकर सिकुड़ने लगती हैं। अब सांस रोकना मतलब जान का खतरा।
6 मिनट या उससे ज्‍यादा
आप बेहोश हो जाते हैं। दिमाग को ऑक्सिजन चाहिए होती है तो वह शरीर को बेहोश कर देता है ताकि सांस लेने का जो ऑटोमेटिक सिस्‍टम है, वह शुरू हो सके। अगर आप पानी के भीतर हैं तो आप हवा के बजाय पानी अंदर खींचते हैं जो फेफड़ों में भर जाता है, इससे जान जा सकती है।
सांस रोकने के क्‍या साइड इफेक्‍ट्स हैं?
खून में कार्बन डाई ऑक्‍साइड की मात्रा बढ़ती है।
ऑक्सिजन की कमी से हार्ट रेट कम हो सकता है।
खून में नाइट्रोजन गैसों की मात्रा बढ़ने लगती है जो आपको कन्‍फ्यूज करता है, नशे जैसा महसूस होता है। इसे नाइट्रोजन नार्कोसिस कहते हैं।
डीकम्‍प्रेसन सिकनेस हो जाती है। ऐसा तब होता है जब खून में मौजूद नाइट्रोजन बुलबुले बनाती है।
बेहोशी छा सकती है।
फेफड़ों में द्रव्‍य भरने लगता है जिसे पल्‍मोनरी एडेमा कहते हैं।
फेफड़ों में ब्‍लीडिंग होने लगती है जिसे अल्‍वोलर हेमरेज कहते हैं।
फेफड़ों में चोट लगती है जिससे वे पूरी तरह काम करना बंद कर सकते हैं।
दिल को खून की सप्‍लाई बंद हो सकती है, कार्डियक अरेस्‍ट हो सकता है।
खतरनाक रिऐक्टिव ऑक्सिजन स्‍पीशीज बनती हैं जो लंबे समय तक कम ऑक्सिजन और फिर ज्‍यादा मात्रा में ऑक्सिजन लेने की वजह से होता है, इससे डीएनए को नुकसान हो सकता है।
S100B नाम के प्रोटीन से ब्रेन डैमेज हो सकता है। जब आपकी कोशिकाएं खराब होती हैं तो यह प्रोटीन खून से निकलकर दिमाग में पहुंच जाता है।
सांस रोकने से मौत हो सकती है?
पानी के भीतर हैं तो बिल्‍कुल जान जा सकती है क्‍योंकि फेफड़ों में काफी पानी भर सकता है। अगर समय रहते आपको पानी से निकाल लिया जाए तो CPR देकर या या फेफड़ों से पानी निकालकर जान बचाई जा सकती है।
अगर बाहर हैं तो बेहोश होने पर शरीर खुद-ब-खुद सांस लेना शुरू कर देता है, ठीक उसी तरह जैसे नींद में होता है।
सांस रोकने के फायदे क्‍या हैं?
ब्र‍ीदिंग एक्‍सरसाइज के जरिए सांस रोकने से स्‍टेम कोशिकाओं की सेहत सुधरती है और जिंदगी लंबी होती है।
ब्रेन फंक्‍शन को बरकरार रखने के लिए शायद नए टिश्‍यूज का रीजेनेरेशन हो सकता है। हालांकि इस बारे में अभी इंसानों पर रिसर्च नहीं की गई है।
बैक्‍टीरियल इन्‍फेक्‍शंस को लेकर प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है।
आप खुद को रिलैक्‍स महसूस कराना सीखते हैं।


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