निर्मल रानी
केंद्र सरकार ने गत 18 से 22 सितंबर के बीच पांच दिनों के लिए 17वीं लोकसभा का 13वां सत्र और राज्यसभा का 261वां सत्र विशेष बुलाया था। इन्हें विशेष सत्र के रूप में बुलाया गया था। किसी भी दल अथवा नेता को संसद के इस विशेष सत्र के एजेंडे की आधिकारिक तौर पर कोई जानकारी नहीं थी। हाँ तरह तरह के क़यास ज़रूर लगाए जा रहे थे। चंद्रयान-3 की सफल लैंडिंग,जी-20 के आयोजन और भारत के लक्ष्यों पर इस सत्र के दौरान व्यापक चर्चाओं की संभावना थी। यह भी उम्मीद थी कि शायद सरकार देश का नाम INDIA के बजाय केवल भारत रखने सम्बन्धी फ़ैसला ले सकती है। यह भी क़यास थे कि शायद यूनिफ़ॉर्म सिविल कोड पर कोई फ़ैसला हो, 'एक देश एक चुनाव' पर कोई निर्णय हो या फिर पुराने संसद भवन को अलविदा कहने और नवनिर्मित संसद भवन में प्रवेश करने की औपचारिकता पूरी की जाये। इन सभी क़यासों में एक यह भी था कि विभिन्न राज्यों की चुनाव पूर्व की बेला में महिला आरक्षण विधेयक भी पारित करा दिया जाये। हालांकि इस सत्र के लिये 18 से 22 सितंबर के बीच की तिथि चुने जाने पर शिव सेना सहित कई दलों ने हैरानी जताई थी। क्योंकि इन्हीं दिनों में देश के बड़े हिस्से में गणेश चतुर्थी जैसा महत्वपूर्ण त्यौहार आयोजित किया जा रहा था। और अनेक राजनेता इस त्यौहार में व्यस्त रहा करते हैं। शिव सेना (उद्धव ) ने तो इसके लिए चुनी गई तारीख़ों पर आश्चर्य जताते हुये यहां तक कह दिया था कि - "गणेश चतुर्थी के त्योहार के समय ये विशेष सत्र बुलाया जाना दुर्भाग्यपूर्ण है और हिंदू भावनाओं के विरुद्ध है।
परन्तु संसद का यह विशेष सत्र सत्र बुलाया तो ज़रूर गया परन्तु 22 सितंबर तक चलने वाला विशेष सत्र 21 सितंबर को ही समाप्त कर दिया गया। यानी अपनी निर्धारित समय सीमा से एक दिन पहले ही सत्रावसान कर दिया गया। इस बीच सरकार ने पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की अध्यक्षता में 'एक देश एक चुनाव' की संभावना तलाशने के लिए एक समिति गठित की। देश की संसद के कर्णधार नेताओं को याद करते हुये पुराने संसद भवन को अलविदा कहा गया और नये संसद भवन में सत्र चलाने की शुरुआत भी की गयी। और इसके साथ ही लंबे समय से लंबित महिला आरक्षण पर भी विधेयक ला कर इसे पारित कराया गया। इसे लोकसभा व राज्यसभा में अभूतपूर्व समर्थन मिला। गोया पक्ष विपक्ष के सर्वसम्मति से इस विधेयक ने अधिनियम का रूप ले लिया। और सरकार ने इस विधेयक का लोकलुभावन नाम 'नारी शक्ति वंदन अधिनियम' रखा। अब इस अधिनियम को राज्य विधानसभाओं की मंज़ूरी की आवश्यकता होगी। तथा इसे नई जनगणना के आधार पर तथा लोकसभा व विधानसभा की सीटों के परिसीमन के बाद लागू किया जाने का प्रावधान है। सरकार के मुताबिक़ महिला आरक्षण विधेयक साल आगामी लोकसभा चुनाव तक लागू होने की संभावना नहीं है। इस अधिनियम के लागू होते ही प्र धानमंत्री नरेंद्र मोदी का भारतीय जनता पार्टी मुख्यालय में पार्टी महिलाओं द्वारा भव्य स्वागत किया गया। उसी समय यह तस्वीर साफ़ हो गयी थी कि आगामी चुनावों में महिला आरक्षण का यह मुद्दा मुख्य मुद्दा बनने जा रहा है। संसद में भी इस मुद्दे पर बोलते हुये विपक्ष ख़ासकर कांग्रेस ने इसे तत्काल लागू करने की मांग की थी। उससे भी यह ज़ाहिर हो गया था कि कांग्रेस भी महिला आरक्षण के मुद्दे का श्रेय लेने में पीछे रहने वाली नहीं है।
ग़ौरतलब है कि इसी वर्ष नवंबर-दिसंबर के मध्य मिज़ोरम, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, तेलंगाना और राजस्थान में विधानसभा चुनाव होने जा रहे हैं। इसके बाद अगले वर्ष मई-जून में लोकसभा चुनावों के साथ ही आंध्र प्रदेश, उड़ीसा , सिक्किम और अरुणाचल प्रदेश में विधानसभा चुनाव भी होने हैं। इसलिये महिला आरक्षण के मुद्दे के बहाने आधी आबादी के वोट बैंक पर झपटने की तैयारी में भाजपा व कांग्रेस यानी पक्ष विपक्ष दोनों ही पूरी तरह से कमर कस चुके हैं। कांग्रेस इसे पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गाँधी के सपनों का विधेयक बता रही है। कांग्रेस इसे तत्काल लागू न करने के लिये मोदी सरकार की मंशा पर सवाल उठा रही है। सरकार द्वारा जनगणना व परिसीमन के बाद महिला आरक्षण लागू किया जाने की शर्त को सरकार की बहानेबाज़ी बताते हुये सरकार की नीयत पर ही सवाल उठा रही है। गत 25 सितम्बर को कांग्रेस पार्टी की 21 प्रमुख महिला नेत्रियां द्वारा उत्तर प्रदेश के 21 शहरों में व देश की अधिकांश राजधानियों में महिला आरक्षण तत्काल लागू न करने के लिये सरकार को घेरने तथा इस इस विधेयक को कांग्रेस की देन बताने के लिये बाक़ायदा प्रेस वार्ता आयोजित की गयी। और यह संकेत दे दिया गया कि भविष्य में होने वाले सभी विधानसभा चुनावों से लेकर लोकसभा चुनावों तक कांग्रेस इस विधेयक का श्रेय लेने और इसे फ़ौरन लागू न करने के लिये भाजपा को ज़िम्मेदार ठहराने में कोई कसर छोड़ने वाली नहीं है। ख़ास तौर पर विपक्षी गठबंधन INDIA के गठन के बाद तो कांग्रेस के हौसले और भी बुलंद हैं और पूरा विपक्ष भी यही कोशिश करेगा कि इस मुद्दे का श्रेय भाजपा किसी भी सूरत में न लेने पाये।
दूसरी तरफ़ भाजपा की ओर से स्वयं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने महिला आरक्षण अधिनियम का श्रेय लेने और साथ ही इसमें तीन दशक का समय लगने के लिये कांग्रेस को ही ज़िम्मेदार बताने का आक्रामक अभियान छेड़ दिया है। पिछले दिनों चुनावी राज्य मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल में प्रधानमंत्री ने जन संघ के सह संस्थापक पंडित दीनदयाल उपाध्याय की जयंती पर पार्टी कार्यकर्ता के सम्मेलन को संबोधित करते हुए कुछ इस अंदाज़ में अपनी बात कही - उन्होंने कहा कि-"आज बड़ी संख्या में मेरी बहनें और बेटियां आई हैं । आपको जो मोदी ने गारंटी दी थी, वह भी पूरी हो गई थी। कुछ दिन पहले लोकसभा और राज्यसभा में महिलाओं के लिए 33 प्रतिशत सीट आरक्षित करने का क़ानून पारित हो गया। लंबे समय से देश इसका इंतज़ार कर रहा था। मोदी है, तो हर गारंटी पूरी होने की गारंटी है। मैं एमपी समेत पूरे देश की बहनों को सावधान करना चाहता हूं। कांग्रेस और उसके नए-नए घमंडियां गठबंधन ने मजबूरी में खट्टे मन से समर्थन किया है। बे मन से किया है। यह खट्टापन उनके बयानों में दिखाई देता है। यह उनके गठबंधन में जितने लोग हैं, यह वही लोग हैं, जिन्होंने 30 साल तक क़ानून पास नहीं होने दिया। संसद में हंगामा किया, और बिल फाड़ दिए। अब मजबूरी में बिल का समर्थन किया है। अब जब समझ गए कि, इनकी चाल चरित्र सबके सामने आ गया है, तो कहने लगे कि, यह क्यों नहीं किया, वह क्यों नहीं किया।"
महिला आरक्षण को लेकर भाजपा व कांग्रेस दोनों की एक दूसरे के प्रति दिखाई जा रही इसतरह की आक्रामकता जहाँ आगामी चुनावों में यह साबित करेगी कि यह मुद्दा आधी आबादी को कितना प्रभावित करेगा वहीं इसके प्रति इसी आधी आबादी का रुख़ यह भी तय करेगा कि 'महिला आरक्षण का ऊंट' किस करवट बैठेगा।