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महिला को सरकारी दस्तावेज में घोषित किया मृतक...कहा- मैं जिंदा हूं...मैं जिंदा हूं...जानिए पूरा मामला

jantaserishta.com
25 March 2021 9:52 AM GMT
महिला को सरकारी दस्तावेज में घोषित किया मृतक...कहा- मैं जिंदा हूं...मैं जिंदा हूं...जानिए पूरा मामला
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मैं ज़िंदा हूं...मैं जिंदा हूं...71 साल की महिला बीते दो साल से तमाम प्रशासनिक अफसरों की चौखट पर जाकर यही यही गुहार लगा रही है लेकिन उसकी कहीं सुनवाई नहीं हो रही. वो सरकारी दस्तावेज में मृतक करार है. इस वजह से वृद्ध महिला को दो साल से किसी भी सरकारी योजना का फायदा नहीं मिल पा रहा.

रायबरेली से 50 किलोमीटर दूर छतोह ब्लॉक के डीघा में रहने वाली वृद्ध महिला जुवंती सरकारी दफ्तरों के चक्कर काट-काट कर थक चुकी हैं. जुवंती को गांव के परिवार रजिस्टर की नकल में मृतक करार दिया हुआ है. जुवंती पंचायत सेक्रेटरी से लेकर उपजिलाधिकारी तक अपनी लिखित फरियाद लगा चुकी हैं. जुवंती के साथ सरकारी दफ्तरों के चक्कर लगाते वक्त उनकी एक बहू भी साथ रहती हैं.
जीती-जागती महिला के सामने मौजूद होने के बावजूद दस्तावेज की गलती को ठीक करने के लिए सरकारी अमला तैयार नहीं है. जुवंती के परिवार में पति के अलावा दो बेटे और दो बेटियां हैं. सभी बच्चों की शादी हो चुकी है. इस परिवार का गुजारा अधिया किसानी से होता है. अधिया किसानी में मालिक (भूस्वामी) और बटाईदार किसान खेती की लागत को बराबर-बराबर बांटते हैं और फसल को भी आधा-आधा बांटते हैं. हालांकि खेती से जुड़े सभी फैसले जमींदार ही लेता है कि कौन सी फसल उगानी है.
अधिया खेती से जुवंती के परिवार का मुश्किल से ही खर्च चल पाता है. सरकार ने तमाम तरह की योजनाएं चला रखी हैं. लेकिन जुवंती को किसी योजना का लाभ नहीं मिल पा रहा. जब तक गांव के परिवार रजिस्टर से उनके नाम के आगे से मृतक नहीं हटाया जाता, तब तक वो बुजुर्ग सहायता राशि या अन्य और किसी कल्याण योजना की हकदार नहीं हो सकतीं.
हालांकि खंड विकास अधिकारी ने 12 फरवरी 2021 को अपनी जांच रिपोर्ट में मुख्य विकास अधिकारी को बताया कि दस्तावेज में मृत घोषित महिला (जुवंती) वाकई जीवित है और उसे परिवार रजिस्टर की नकल में जीवित दर्शाने के लिए संशोधन किया जाए. लेकिन एक महीने से अधिक बीत जाने के बाद भी दस्तावेज में जुवंती 'मृतक' ही बनी हुई हैं. जुवंती का सवाल है कि उम्र के इस पड़ाव में आखिर वो कब तक यूं दर-दर भटकती रहेंगी. क्या उनके मरने का इंतजार किया जा रहा है, जिससे परिवार रजिस्टर की नकल में उनके नाम के आगे लिखा 'मृतक' सही साबित हो जाए.
वृद्ध महिला की व्यथा को लेकर जिलाधिकारी वैभव श्रीवास्तव से बात की गई तो उन्होंने गंभीरता से इसका संज्ञान लिया. उन्होंने कहा, "मैंने पूरे कागजात के साथ एसडीएम से लेकर बीडीओ तक को बुलाया है. किसी भी जगह लापरवाही पाए जाने पर कार्रवाई की जाएगी."
जिलाधिकारी के रुख से जुवंती को अपनी दिक्कत दूर होने और सरकारी दस्तावेज में फिर से 'मृतक' से 'जीवित' होने की उम्मीद बंधी है.
सरकारी दस्तावेज में जीवित को 'मृतक' दिखाने का यह पहला मामला नहीं है. आजमगढ़ के लाल बिहारी को 1976 से 1994 के बीच सरकारी दस्तावेज में मृतक घोषित रखा गया था. खुद को जीवित साबित करने के लिए लाल बिहारी को 18 साल तक जद्दोजहद करनी पड़ी थी. उन्होंने अपना नाम ही 'लाल बिहारी मृतक' रखा लिया था. उनकी कहानी पर 'कागज' के नाम से फिल्म भी बन चुकी है.
जुवंती और लाल बिहारी जैसी इन सच्ची कहानियों पर मशहूर शायर अदम गोंडवी का लिखा खूब फिट बैठता है-
तुम्हारी फाइलों में गांव का मौसम गुलाबी है,
मगर यह आंकड़े झूठे हैं, ये दावा किताबी है...

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