प्रदीप पंडित
नई दिल्ली। नरसिम्हा राव देश के पहले गाँधी परिवार से इतर कांग्रेसी प्रधानमंत्री थे, लेकिन उन्हें न जीते जी, न मृत्यु के बाद वह सम्मान मिला जो गाँधी परिवार के लोगों को मिलता रहा है। राव के पोते एन वी सुभाष ने बताया कि कांग्रेस नरसिंह राव को किसी बात का भी श्रेय देने को तैयार थी और न आज है। यह और बात है कि देश के आर्थिक सुधारों और उदारवाद के लिए वे दुनिया भर में हमेशा याद किये जायेंगे। लेकिन, कांग्रेस के लिए इसकी कोई अहमियत नहीं है। गाँधी परिवार ने एक बार भी किसी भी बात के लिए उन्हें श्रेय नहीं दिया। उनकी पुस्तक 'इनसाइडर' दुनिया भर में पढ़ी गयी। इस पुस्तक में सीधे सीधे न इतिहास है, न इसे उपन्यास कहा जा सकता है। यह औपन्यासिक तरलता के साथ लिखा गया इतिहास है। यह कांग्रेस को नहीं, कोंग्रेसियों को निर्वासित करने के लिए पर्याप्त है। इस पुस्तक में एक पत्र है। इसका नाम अरूणा है। उसका असली नाम लक्ष्मीकांथम्मा है। उसने टिकट के लिए प्रदेश कांग्रेस प्रमुख से निवेदन किया था जो कांग्रेस की परिपाटी भी थी।
उस समय कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष थे नीलम संजीव रेड्डी। उन्होंने अरूणा से कहा कि बिना शयनागार से गुज़रे टिकट नहीं दिया जा सकता। घटना 1950 की है। याद रखें कि देश 1947 में आज़ाद हुआ। महज तीन बरस में यह कांग्रेस के चारित्रिक पतन का दतावेज है। इस पर शक इसलिए नहीं किया जा सकता कि पुस्तक आने के बाद लक्ष्मीकांथम्मा ने स्वयं इस बात की पुष्टि की थी। फिर इसे लिखा भी नरसिम्हा राव ने ही था जो कांग्रेस के प्रधानमंत्री भी थे।
उनके पोते ने इस तरह उनकी बीमारी की स्थिति का वर्णन करते हुए कहा कि श्री राव को किसी तरह की मदद करना तो दूर, कांग्रेस तो इस प्रतीक्षा में थी कि उन्हें जल्द से जल्द दिल्ली से कैसे हटाया जाये। कांग्रेस अंदरखाने तय कर चुकी थी कि नरसिम्हा राव को दिल्ली में दो गज़ ज़मीन भी न मिले। सुभाष ने कहा कि जब श्री राव अस्पताल में थे तो गुलाम नबी आज़ाद, शिवराज पाटिल ने कई बार फ़ोन करके पूछा कि उन्हें दिल्ली से कब ले जायेंगे। यह सवाल तब पूछा गया जब तक उनकी मृत्यु नहीं हुई थी। कांग्रेस के लिए तो इससे बड़ी थाथी क्या होती कि गाँधी परिवार से इतर कांग्रेस का कोई शख्स प्रधानमंत्री बना था। उनका सम्मान करना तो दूर, अगर मैं कहूँ कि उन्हें दिल्ली से बेदखल किया गया तो इसमें कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी।