भारत

बलात्‍कार के दोषी राम रहीम को Z+ सुरक्षा क्‍यों

Aariz Ahmed
23 Feb 2022 6:17 PM GMT
बलात्‍कार के दोषी राम रहीम को Z+ सुरक्षा क्‍यों
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बलात्कार और हत्या के आरोपी को ज़ेड प्लस की सुरक्षा दी गई है. क्या देश में आतंक की स्थिति इतनी बेकाबू हो गई है कि बलात्कार के मामले में दस-दस साल की सज़ा और हत्या के मामले में आजीवन कारावास की सज़ा पाए अपराधी को ज़ेड प्लस की सुरक्षा देनी पड़े? वो भी उस समय जब उत्तर प्रदेश के चुनावी भाषणों में प्रधानमंत्री मोदी और गृह मंत्री अमित शाह से लेकर बीजेपी के तमाम नेता आतंक को काबू में करने का दावा कर रहे हों और विरोधी दल पर आतंक को शह देने का आरोप लगा रहे हों, केंद्र सरकार एक ऐसे अपराधी को ज़ेड प्लस सुरक्षा देती है जिस पर आरोप साबित हो चुके हैं.

बीस साल तक जांच और मुकदमे की कई दौर की सुनवाई के बाद राम रहीम को अगस्त 2017 में बलात्कार के मामले में कुल बीस साल की सज़ा हुई थी. इन पर दो साध्वियों के साथ बलात्कार और यौन हिंसा के आरोप थे. इसके कुछ दिनों बाद डेरा के मैनेजर रंजीत की हत्या की साज़िश के आरोप में सज़ा हुई. फिर 2019 में सिरसा के पत्रकार छत्रपति की हत्या के मामले में सज़ा हुई. तीन अलग-अलग मामलों में हत्या और बलात्कार के दोषी इस व्यक्ति को मोदी सरकार ने ज़ेड प्लस की सुरक्षा दी है. राम रहीम फरलो पर जेल से बाहर हैं. इस व्यक्ति से उन साध्वियों को भी ख़तरा हो सकता है, पत्रकार के परिवार को खतरा हो सकता है, खतरा था भी, लंबे समय तक था, जब दोनों सुनवाई के लिए मामूली सुरक्षा के बीच अकेले सफर तय करती थीं. उन्हें तो कभी ज़ेड प्लस की सुरक्षा नहीं दी गई. लेकिन उस वक्त जब राम रहीम को सज़ा मिली थी उसके पहले ज़ेड सिक्योरिटी दी गई थी. 26 अगस्त 2017 को समाचार एजेंसी PTI का ट्वीट है जिसमें हरियाणा के मुख्य सचिव का बयान है कि बलात्कार के मामले में दोषी घोषित होने के बाद ज़ेड प्लस की सुरक्षा वापस ले ली गई है. अब अगर भाजपा सरकार ने राम रहीम को ज़ेड प्लस की सुरक्षा दे रही है तो उसे यह भी बताना चाहिए कि क्या उसके राज में आतंकवादी या चरमपंथी इस हद तक सर उठा रहे हैं कि बलात्कार के आरोप में सज़ा पाए अपराधी को ज़ेड प्लस की सुरक्षा देनी पड़ रही है.

सरकार को अच्छा नहीं लगेगा लेकिन यह एक तथ्य तो है कि यूपी के हाथरस की पीड़िता का शव पुलिस सुरक्षा में आधी रात के बाद इस तरह जलाया गया था. पीड़िता का शव आंगन तक में नहीं जाने दिया गया था. आधी रात को पुलिस के पहरे में उसकी चिता जला दी गई. बलात्कार की इस पीड़िता को पुलिस का पहरा इसलिए मिला था कि दुनिया के जागने से पहले रात के अंधेरे में उसकी चिता जल जाए.अगर यूपी में कानून व्यवस्था इतनी ही अच्छी थी तो आधी रात को शव जलाने की नौबत क्यों आई. कुलदीप सेंगर के मामले में बलात्कार की पीड़िता के साथ क्या हुआ, जानने के लिए थोड़ी मेहनत आप भी करें. चिता की एक पुरानी तस्वीर बंद पड़े दिमाग़ का दरवाज़ा खटखटा रही है कि जब बलात्कार के दो मामलों में सज़ायाफ्ता कैदी ज़ेड प्लस की सुरक्षा में घूमेगा क्या तब भी कानून व्यवस्था के निष्पक्ष होने का दावा किया जा सकता है? ठीक यही काम अखिलेश यादव ने किया होता तब बीजेपी के क्या आरोप होते?

बयानों से लगता है कि आतंकवाद देश और यूपी से साफ है लेकिन इसका खतरा इतना गंभीर तो है ही. बलात्कार और हत्या के आरोप में सज़ा पाए व्यक्ति को ज़ेड प्लस की सुरक्षा क्यों दी जा रही है.मंगलवार को ही केंद्र सरकार ने बताया कि खालिस्तानी संस्था सिख फॉर जस्टिस का ऐप और वेबसाइट बंद कर दिया गया है. पंजाब में खालिस्तानी समर्थकों की गतिविधियों की खबरें आती रहती हैं. गिरफ्तारियां भी होती रहती हैं लेकिन क्या यह इतना बड़ा खतरा बन चुका है? तब तो फिर केंद्र सरकार को बताना चाहिए कि इस ख़तरे के कारण पंजाब में कितने लोगों को सीआरपीएफ और ज़ेड प्लस की सुरक्षा दी गई है? क्या कुमार विश्वास और राम रहीम के अलावा भी इस ख़तरे के कारण हाल फिलहाल में ज़ेड या वाई कैटगरी की सुरक्षा दी गई है?

बंगाल चुनाव के समय हिंसा और आतंक के कितने आरोप लगाए गए, वहां सात चरणों में चुनाव हुआ, लेकिन यूपी में आतंक और हिंसा को काबू करने के दावे किए जा रहे हैं वहां भी सात चरणों में चुनाव हो रहा है. किसान आंदोलन के समय किसानों पर खालिस्तान समर्थक और आतंकवादी होने के आरोप लगाए गए. इस पृष्ठभूमि में भी जब चुनाव हुआ तो 117 सीटों पर एक ही दिन मतदान हुआ. सीमावर्ती राज्य बताकर तरह-तरह के आतंकी खतरे बताए गए इसके बाद भी चुनाव आयोग का एक चरण में कराने का फैसला कहीं से यह संकेत नहीं देता कि पंजाब में चुनाव कराना चुनौती का काम है. सवाल है कि चुनाव बीत जाने के बाद क्या खालिस्तानी समर्थकों का ख़तरा इतना बड़ा हो गया है कि कुमार विश्वास से लेकर राम रहीम को सुरक्षा देनी पड़ रही है?

पंजाब में इस बार के चुनाव में आखिरी दिनों में आतंक को लेकर हर दल एक-दूसरे पर आरोप लगाने लगे. अकाली दल, कांग्रेस, आम आदमी पार्टी और बीजेपी ने आतंक के मुद्दे को उठाया. इनमें से कुछ एक दूसरे पर आरोप लगा रहे थे तो कई सारे दल मिलकर आम आदमी पार्टी पर आरोप लगा रहे थे. जिन नेताओं ने आतंक के मुद्दे को उठाया क्या उन्हें कोई ख़तरा नहीं है? क्या उन दलों के नेताओं को भी ज़ेड औऱ वाई कैटगरी की सुरक्षा दी जा रही है?

दो लोगों की सुरक्षा और खतरों को एक समान नहीं आंका जा सकता है लेकिन यहां कई संदर्भ दो लोगों में समान हैं. कुमार विश्वास ने अरविंद केजरीवाल पर खालिस्तानी समर्थक होने का आरोप लगाया. उन्हें Y कैटेगरी की सुरक्षा मिलती है.मीडिया की खबरों के अनुसार खालिस्तानी समर्थकों से खतरे के कारण उन्हें ये सुरक्षा दी जा रही है. इसी तरह के खतरे के कारण राम रहीम को z प्लस की सुरक्षा दी जा रही है एक ही तत्व से दो लोगों को खतरा है लेकिन दोनों को अलग-अलग कैटेगरी की सुरक्षा दी जा रही है. कुमार विश्वास बाबा राम रहीम की z कैटगरी की सुरक्षा को देखकर क्या सोचेंगे, कि हम दोनों को खतरा एक समान है लेकिन राम रहीम Z हैं और कुमार विश्वास Y हैं. क्या आतंकवाद का खतरा किसी को कम होता है, किसी को गंभीर होता है? कवि कहीं इस भेदभाव पर कोई कविता लिखकर वायरल न करा दें.

हरियाणा सरकार ने हाई कोर्ट में हरियाणा सीआईडी के आईजी सौरभ सिंह के आदेश की कापी लगाई है. उसमें लिखा है कि जून 2021 में खुफिया विभाग के अतिरिक्त निदेशक ने राम रहीम के बारे में जानकारी दी थी कि पंजाब चुनावों के संदर्भ में राम रहीम को खालिस्तानी एक्टिविस्ट से गंभीर खतरा है और इसकी पुख्ता सूचना है. एक्टिविस्ट ही लिखा है, टेररिस्ट नहीं लिखा है.क्या चुनाव आयोग को भी ऐसे खतरों की आशंका थी, लेकिन वहां तो चुनाव एक ही चरण में हुए. किस तरह से हरियाणा सरकार ने हाईकोर्ट में वकालत की है कि राम रहीम हार्डकोर कैदी नहीं है. हत्या में सीधे शामिल नहीं रहा है. पुलिस ने यह सफाई केवल हत्या के मामलों में दी है. बलात्कार के मामले में नहीं.

आम तौर पर चुनाव के दिनों में जो अपराधी परोल या फरलो पर बाहर होते हैं उन्हें वापस बुला लिया जाता है. राम रहीम को पहले भी तीन बार परोल के लिए अनुमति मिली थी जून 2021 में. दो बार बीमारी के इलाज के लिए और एक बार अपनी बीमार मां से मिलने के लिए सुबह से शाम तक की परोल मिली थी. तीनों बार प्रशासनिक क्लियरेंस मिलती रही कि राम रहीम हार्डकोर कैदी नहीं हैं. क्या पहले से ही इसकी भूमिका तैयार की जा रही थी? मार्च 2021 में केंद्र सरकार ने संसद में बताया है कि भारत में केवल 40 लोग ऐसे हैं जिन्हें ज़ेड प्लस की सुरक्षा मिली हुई है. इस एक्सक्लूसिव क्लब में राम औऱ रहीम जुड़ गए हैं. उन्हें पहले भी ज़ेड प्लस की सुरक्षा मिली हुई थी. 25 अगस्त 2017 को जब सीबीआई की विशेष अदालत गुरमीत राम रहीम के मामले में सज़ा सुनाने वाली थी तब हिंसा की भारी आशंका को देखते हुए रोहतक में सेना बुलाई गई थी. हरियाणा में जगह जगह भारी मात्रा में अर्धसैनिक बल और पुलिस की तैनाती की गई थी. इसके बाद भी कई घंटों तक ऐसी हिंसा हुई कि लगा ही नहीं कि हरियाणा में कानून का राज है. पत्रकारों को पीटा गया और तीन-तीन ओबी वैन जला दिए गए. याद कीजिए कि राम रहीम का कितना प्रभाव था, और अभी भी प्रभाव तो है ही तभी तो ज़ेड प्लस की सुरक्षा मिली है. 25 अगस्त 2017 को जिस तैयारी के साथ राम रहीम को कोर्ट ले जाया गया उसका वीडियो देखिए, सज़ा सुनाने के बाद जो हिंसा हुई थी उसमें करीब 36 लोग मारे गए थे, उस तबाही का भी वीडियो देखिए. तब आप समझ पाएंगे कि राम रहीम को ज़ेड प्लस देने का क्या मतलब है.

उस दिन की हिंसा ने यह बता दिया था कि धर्म और आस्था के नाम पर आने वाली भीड़ में कानून को लेकर कितना सम्मान है और वह किस हद तक छूट ले सकती है. इस हिंसा के बाद कड़ी कार्रवाई के दावे किए गए लेकिन क्या हुआ. 2100 से अधिक लोग गिरफ्तार हुए थे, AK 47 से लेकर राइफल और पिस्टल बरामल हुआ था लेकिन अभी तक किसी को सज़ा नहीं हुई है और न ही इनसे सरकारी संपत्ति को नुकसान पहुंचाने का हर्जाना वसूला गया है.

एक ख़बर 1 जनवरी 2020 के इंडियन एक्सप्रेस की है. रिपोर्टर का नाम सोफी अहसान है. लिखा है कि 2017 में जो हिंसा हुई थी, उस मामले में दो साल बीत गए हैं लेकिन एक पैसा हर्जाने के तौर पर वसूला नहीं जा सका है. इस रिपोर्ट के अनुसार राम रहीम को सज़ा सुनाने के बाद 118 करोड़ की संपत्ति का नुकसान हुआ था. इस खबर के डेढ़ साल बाद इसी पर 25 अगस्त 2021 को हिन्दुस्तान टाइम्स में खबर छपती है. तनबीर धालीवाल की खबर है. इसमें लिखा है कि पंचकुला में जो हिंसा हुई थी उन मामलों में चार साल बीत जाने के बाद किसी को सज़ा नहीं हुई है. पंचकुला में इतनी हिंसा हुई थी कि पुलिस को 177 FIR दर्ज करनी पड़ी थीं. 2,167 लोग गिरफ्तार हुए थे. पुलिस के रिकार्ड के अनुसार 29 इमारतों को नुकसान पहुंचाया गया था, 74 गाड़ियां क्षतिग्रस्त हो गई थीं. दो-दो दमकल गाड़ियों को जला दिया गया था. तीन ओबी वैन जला दिए गए थे. पुलिस ने भीड़ से AK-47, चार राइफल, पांच पिस्टल, एक माउज़र बरामद किए थे. हरियाणा सरकार ही बता दे कि कितनी वसूली हुई है. 2021 में हरियाणा में एक कानून बना है यूपी की तर्ज पर कि सरकारी संपत्ति को नुकसान पहुंचा तो उसका हर्जाना वसूला जाएगा. उस वक्त किसान आंदोलन चल रहा था.

अगस्त 2017 कि हिंसा में AK-47 तक मिली फिर भी अभी तक किसी को सज़ा नहीं हुई. 2167 लोग गिरफ्तार हुए लेकिन पांच साल बीत जाने के बाद भी किसी को सज़ा नहीं हुई. 2020 में उत्तर प्रदेश में नागरिकता कानून के विरोध में प्रदर्शन हुए. इस दौरान हुई हिंसा को लेकर कई गरीब लोगों को संपत्तियों के नुकसान के बदले हर्जाना वसूली का नोटिस भेज दिया गया.

कबाड़ी का काम करने वाले माहेनूल चैधरी को 20 लाख का नोटिस भेज दिया गया है. उनकी आर्थिक स्थिति ऐसी नहीं कि खुद को बेगुनाह साबित करने के लिए मुकदमा लड़ सकें. ऐसे मामलों के सामने आपने पर हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने यूपी सरकार को फटकार लगाई है कि अदालत ने इसके लिए प्रक्रिया तय की है उसका पालन नहीं हुआ है. अगर नोटिस वापस नहीं लिए गए तो कोर्ट नोटिस को रद्द कर देगा. हरियाणा में एक भीड़ आती है 118 करोड़ का नुकसान करती है, उससे बंदूक और AK 47 बरामद होता है लेकिन किसी को सज़ा नहीं होती है, किसी से वसूली नहीं होती है.

सात फरवरी को जब गुरमीत राम रहीम को 21 दिनों के लिए फरलो पर रिहा किया गया तब पंजाब में चुनाव चरम पर पहुंच चुका था. विपक्ष ने आरोप लगाया कि चुनाव के कारण रिहाई हुई है.लेकिन हरियाणा के मुख्यमंत्री और उप मुख्यमंत्री दोनों ने कहा कि चुनाव से संबंध नहीं है, संयोग भर है. डेरा के समर्थक बड़ी संख्या में हैं. इनका राजनीतिक महत्व अब भी है. कई तरह की खबरें छपी हैं कि डेरा ने बीजेपी और अकाली दल को समर्थन दिया है. कांग्रेस के बागी उम्मीदवार को भी दिया है. कई दल के नेता डेरा और डेराओं के चक्कर लगा रहे हैं वोट के लिए.गुरमीत राम रहीम के मामले की जांच करना, मुकदमे की सुनवाई करना और फैसले तक पहुंचना यह सब कोई मामूली बात नहीं थी. मामूली बात होती तो रोहतक में सेना के कई कालम की तैनाती नहीं करनी पड़ती और हेलिकाप्टर से जेल नहीं ले जाना पड़ता.

हमारा समाज विचित्र है. वह भक्ति और आस्था के मोह में कानून और सही गलत का फर्क नहीं कर पाता. करना भी नहीं चाहता है. कहीं एक धर्म के नाम पर कानून को ताक पर रखकर मनमानी सज़ा दी जा रही है तो कहीं धर्म के कारण या जाति के कारण अपराधियों का स्वागत किया जा रहा है.हैदराबाद में बलात्कार के एक मामले में कोर्ट के फैसले से पहले पुलिस ने बलात्कार के आरोपी का एनकाउंटर कर दिया तब वहां लोगों ने पुलिस पर फूल बरसाए. अब बलात्कार के आरोप में सज़ा पाए व्यक्ति को ज़ेड प्लस की सुरक्षा मिली है तो समाज चुप है. हर किसी के पास समर्थकों की भीड़ है जो सवाल करते ही हमला कर देती है. और इस बीच घात लगाए नेता हैं जो उन समर्थकों पर कहर भी ढाते हैं और फिर उन्हीं से समर्थन भी ले लेते हैं.

आज अमित शाह मणिपुर में थे. हमारे सहयोगी रतनदीप चौधरी का कहना है कि पिछले साल 14 नगा नौजवानों पर फायरिंग की घटना के बाद पहली बार पूर्वोत्तर आए. उस घटना के बाद पूर्वोत्तर के कई मुख्यमंत्रियों ने AFSPA हटाने की मां की थी. कांग्रेस साफ साफ कह रही है कि AFSPA हटा देना चाहिए लेकिन क्या अमित शाह ने ऐसा कोई वादा किया?

यूपी के चुनावों में पुरानी पेंशन की बहाली का मुद्दा बड़ा मुद्दा बन गया है लेकिन इसकी बहाली का फैसला राजस्थान से आ गया है. राजस्थान में चुनाव ढाई साल दूर हैं लेकिन अपने बजट भाषण में मुख्यमंत्री अशोक गहलौत ने ऐलान कर दिया कि अगले साल से पुरानी पेंशन की व्यवस्था बहाल कर दी जाएगी. 2004 के बाद जो सरकारी नौकरी में आए हैं उन्हें पेंशन मिलेगी.

राजस्थान सरकार के बाद पुरानी पेंशन की बहाली के संघर्ष को उम्मीद मिल गई है कि केंद्र से लेकर राज्यों में बहाली होगी. यूपी में कांग्रेस ने बीच का रास्ता निकालने की बात कही थी जब घोषणा पत्र के समय प्रियंका गांधी से पूछा गया तब उन्होंने कहा था कि इस पर चर्चा हुई है और हमें लगता है कि बीच का रास्ता निकाला जा सकता है लेकिन अशोक गहौलत ने बीच का रास्ता छोड़ कर पुरानी पेंशन स्कीम को वापस लागू कर दिया है. यूपी में अखिलेश यादव साफ-साफ बोल रहे हैं कि पुरानी पेंशन की स्कीम बहाल होगी. घोषणा पत्र में भी वादा किया है. मायावती ने भी वादा किया है कि बसपा की सरकार बनेगी तो पुरानी पेंशन लागू होगी.

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