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शादीशुदा महिला की निजी अर्जित संपत्ति में सिर्फ पति का अधिकार, ऐसा क्यों? सर्वोच्च न्यायालय में लगी याचिका
jantaserishta.com
5 April 2022 11:42 AM GMT
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नई दिल्ली: हिंदू उत्तराधिकार कानून में लैंगिक आधार पर भेदभाव खत्म करने के लिए कमल अनंत खोपकर की याचिका पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को चार हफ्ते में जवाब दाखिल करने को कहा है.
कोर्ट ने पूछा है कि जैसे किसी हिंदू विवाहित पुरुष की निजी यानी स्वयं की अर्जित संपत्ति में उसके निधन के बाद उसकी पत्नी और माता-पिता भी हिस्सेदार हो सकते हैं तो किसी विवाहित महिला की निजी अर्जित संपत्ति में उसके माता-पिता हिस्सेदार क्यों नहीं हो सकते? सिर्फ पति ही क्यों?
आज तक की रिपोर्ट के मुताबिक याचिका में उत्तराधिकार तय करने में महिलाओं की गरिमा और लैंगिक न्याय सुनिश्चित करने के लिए कोर्ट से निर्देशिका जारी करने की गुहार लगाई गई है. सुप्रीम कोर्ट में इस जनहित याचिका पर जस्टिस धनंजय यशवंत चंद्रचूड़ की अगुआई में जस्टिस सूर्यकुमार और जस्टिस बेला माधुर्य त्रिवेदी की पीठ ने केंद्र को अपना रुख स्पष्ट करने के साथ साथ अगली सुनवाई अगले महीने तक स्थगित कर दी.
याचिकाकर्ता की ओर से मृणाल दत्तात्रेय बुवा और धैर्यशील सालुंखे ने दलील दी कि हिंदू उत्तराधिकार कानून 1956 की धारा 15 के मुताबिक सिर्फ पति के परिजनों को ही पति की निजी संपत्ति पर उत्तराधिकार मिलता है. उसकी पत्नी के परिजनों यानी माता पिता को नहीं. इस कानून के तहत अगर कोई हिंदू महिला का निधन बिना वसीयत लिखे ही हो जाता है तो उसका पति ही सारी अर्जित संपत्ति का सारा हकदार हो जाता है.
वो चाहे तो मृतक महिला के माता पिता को एक पाई भी ना दे. क्योंकि कानून में किसी महिला की निजी संपत्ति में उसके माता पिता का कोई हक नहीं लेकिन पुरुष की संपत्ति में उसके माता पिता का हक होता है.
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