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भोपाल (आईएएनएस)| मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल में आगामी दो दिन देश भर के जल से संबंधित राज्यमंत्रियों का जमावड़ा रहने वाला है। इस दो दिवसीय वार्षिक सम्मेलन में पानी को लेकर विजन 2047 का ब्लू प्रिंट तैयार किया जाने वाला है। इस दौरान एक सवाल जरुर उठ रहा है कि 'एक देश एकीकृत जल नीति' पर भी चर्चा होगी क्या, अगर नहीं तो क्यों। देष के कई हिस्सों को सूखा तो कुछ को बाढ़ का सामना करना होता है, पीने के पानी से लेकर सिंचाई परियोजनाओं पर करोड़ांे रुपये खर्च किए जाते हैं, मगर जरुरतमंदों को पानी नहीं मिल पा रहा है। इसके पीछे कहीं न कहीं देश में एक जल नीति का अभाव माना गया है।
अभी देश में पेयजल, सिंचाई जल, अपशिष्ट पुनर्चक्रीकरण से प्राप्त जल, औद्योगिक जल, वर्षा जल और भूजल के उपयोग व प्रबंधन के लिए अलग-अलग नीतियां, कानून व नियम लागू हैं। इससे कई विसंगतियां पैदा हो रही हैं। इन स्थितियों में सभी कानूनों, नियमों व नीतियों को एक नीति व कानून के दायरे में लाया जाए जिसमें केंद्र व राज्य की नीतियां स्पष्ट परिभाषित हों, तो केंद्र और राज्यों की नीतियों में होने वाले टकराव से भी बचा जा सकेगा।
जानकारांे का मानना है कि देश में वन नेशन-वन इलेक्शन की बहस चलती है, वर्तमान की केंद्र सरकार सभी मामलांे को एक देश एक योजना से जोड़ने पर जोर देती है तो फिर एक देश-एकीकृत जल नीति (वन नेशन, वन वाटर पॉलिसी) पर जोर क्यों नहीं दिया जाता।
पानी के क्षेत्र में काम करने वाले राम बाबू तिवारी का कहना है कि देश में कई बार सिंचाई परियोजनाएं वर्षो तक अटक कर रह जाती हैं क्योंकि योजना बनाते समय सरकारी महकमे में सामन्जस्य नहीं होता। सरकार सिंचाई योजना बनाकर उसकी निविदाएं जारी कर देती है, मगर राजस्व, वन और पर्यावरण, पुनर्वास का काम उसके बाद होता है, ऐसा करने से परियोजना की लागत तो बढ़ती ही है साथ में और निर्धारित समय पर उस स्थान तक पानी ही नहीं पहुंच पाता, जहां के लोगों को जरुरत होती है।
विशेषज्ञों की मानें तो सिंचाई योजनाओं के लिए सिंगल विंडो सिस्टम लागू होना चाहिए, जिससे परियोजना समय पर पूरी हो, उदाहरण के तौर पर अधोसंरचना के लिए निविदाएं बुलाए जाने से पहले तमाम औपचारिकताएं पूरी कर लेनी चाहिए। मसलन सड़क निर्माण परियोजनाओं में भूमि अधिग्रहण और अन्य औपचारिकताएं पूरी होने के बाद ही निविदाएं जारी की जाती हैं, मगर सिंचाई परियोजनाआंे में ऐसा नहीं होता। सिंचाई परियोजनाओं में भूमि अधिग्रहण और अन्य औपचारिकताएं (भूमि अधिग्रहण, वन विभाग की स्वीकृति, पर्यावरण मंजूरी और आरएनआर के मुआवजे) बाद में होती हैं। इससे योजनाएं कई साल में पूरी हो पाती हैं।
केंद्रीय जलशक्ति एवं खाद्य प्रसंस्करण उद्योग राज्य मंत्री प्रहलाद सिंह पटेल ने कहा है कि देश के सभी राज्यों व केंद्र शासित प्रदेशों और केंद्रीय विभागों और मंत्रालयों को एक मंच पर लाने वाले जल विषय पर यह पहला सम्मेलन है। देश के सभी राज्यों व केंद्र शासित प्रदेशों के जलसंसाधन, जन स्वास्थ्य अभियांत्रिकी विभाग और सिंचाई के राज्य मंत्रियों को विजन 2047 का ब्लू प्रिंट तैयार करने और देश की जल समस्याओं को दूर करने के लिए एक रोड मैप तैयार करने के लिए आमंत्रित किया गया है। कृषि उत्पादन आयुक्तों के साथ-साथ सभी प्रदेशों के जल संसाधन, जन स्वास्थ्य अभियांत्रिकी विभाग और सिंचाई के वरिष्ठ सचिव भी सम्मेलन में भाग लेंगे।
पानी को लेकर केंद्र से लेकर राज्य और नगरीय व ग्रामीण सरकारें अपने स्तर पर फैसले कर लेती हैं, इन स्थितियों से बचने के लिए एक नीति का होना जरुरी है, यही कारण है कि इस बात की जरुरत महसूस की जा रही है कि जल सम्मेलन में व्यापक मंथन के बाद एक समिति का गठन किया जाए, जो समूचे देश के परिप्रेक्ष्य में नीति का मसौदा तैयार कर सके। साथ ही संभावित नीति के मसौदे पर यह समिति सभी पक्षकारों की राय व सुझाव प्राप्त करके उनकी उपयोगिता और व्यावहारिकता का आकलन करके सभी बिंदुओं का नीति में समावेश करे।
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