कांग्रेस में "सेवादल" को फ़ौजी अनुशासन और जज़्बे के लिए जाना जाता है था, इसका संगठनात्मक ढांचा और संचालन का तरीक़ा सैन्य रहा है, कभी कांग्रेस में शामिल होने से पहले "सेवादल की ट्रेनिंग" ज़रूरी होती थी!
इंदिरा गांधी ने राजीव गांधी की कॉंग्रेस में एंट्री सेवादल के माध्यम से ही कराई थी! नेहरू से लेकर राहुल गांधी तक सब सेवादल को "कांग्रेस का सच्चा सिपाही" कहते रहे हैं। लेकिन..........कांग्रेस के ये सच्चे सिपाही इन दिनों पार्टी की दुर्दशा व अपनी उपेक्षा से उदास और खिन्न हैं! करना तो बहुत कुछ चाहते हैं, पर कर कुछ नहीं पा रहे हैं!
सेवादल की तर्ज पर ही गठित राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की लगातार बढ़ती ताक़त इन्हें और बेचैन कर देती है। "संघ" का गठन "सेवादल" के दो साल बाद 1925 मे किया गया था।डॉ. नारायण सुब्बाराव हार्डिकर और डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार क्लास फेलो थे!शुरु-शुरू में दोनों साथ-साथ सक्रिय थे!
लेकिन डॉ हार्डिकर पर गांधीजी का प्रभाव था, और हेडगेवार को "हिंदू राष्ट्र" का! हेडगेवार ने अपना अलग रास्ता बनाते हुए संघ का गठन किया, और वे हिंदू महासभा से जुड़े हुए थे, वह जब तक जीवित रहे "संघ हिंदू महासभा" यूथ विंग की तरह काम करता रहा! जबकि "सेवादल" ब्रिटिश हुक़ूमत के ख़िलाफ़ संघर्ष के रास्ते पर बढ़ता गया, यहाँ तक कि "अंग्रेज़" कांग्रेस से ज़्यादा सेवादल से घबराते थे!
डॉ. राजेंद्र प्रसाद और सुभाषचंद्र बोस से लेकर क्रांतिकारी राजगुरू तक इसके पदाधिकारी रहे! ख़ान अब्दुल गफ़्फ़ार ख़ान के संगठन "लाल कुर्ती" का विलय भी सेवादल में करा दिया गया था!
आज़ादी के आंदोलन में सेवादल की भूमिका का अंदाज़ा इससे लगाया जा सकता है कि 1931 में सेवादल का स्वतंत्र स्वरूप ख़त्म करते हुए इसे कांग्रेस का हिस्सा बना दिया गया था, ऐसा "सरदार बल्लभ भाई पटेल" की सिफ़ारिश पर किया गया था, जिसमें उन्होंने गांधीजी से कहा था कि अगर "सेवादल को स्वतंत्र छोड़ दिया तो वह" हम सबको लील जाएगा!
इसके एक साल बाद ही अंग्रेज़ों ने 1932 में कांग्रेस और सेवादल पर प्रतिबंध लगा दिया, बाद में कॉंग्रेस से तो प्रतिबंध हटा पर हिंदुस्तानी सेवादल से नहीं! आज सेवादल और संघ की कहानी को भी "खरगोश और कछुआ" जैसी ही कहा जा सकता है! आज़ादी के बाद सेवादल के पास अपना कोई लक्ष्य नहीं रहा, कांग्रेस में यह उपेक्षित हो गया और पिछली पंक्ति में बैठा दिया गया!
जबकि संघ अपने हिंदू राष्ट्र के सपने को साकार करने की दिशा में कछुआ गति से आगे बढता रहा! जब शिद्दत से यह महसूस किया जा रहा है कि कॉंग्रेस आज अपनी जड़ों से उखड़ गई है, और अन्य लोग को भी यह महसूस हो रहा हैं कि संघ के जैसा ही कैडर आधारित संगठन मुक़ाबले के लिए ज़रूरी है!तो सेवादल का इतिहास ही उसे रास्ता दिखा सकता है!
किन्तु वर्तमान समय मे सेवादल सिर्फ़ नेताओ को सलामी देने का ही कार्य कर पा रहा है! एक दौर था जब प्रातः प्रभात फ़ेरी सेवादल निकाला करती थी और "वन्दे मातरम गीत" के साथ दिन की सुरुवात होती थी, मगर समय के साथ इस गीत पर संघ ने कब्ज़ा कर लिया! आज हम बात करें "छतीसगढ़ में सेवादल की" तो सिर्फ़ बड़े आयोजन और झंडा रोहण तक सीमित रह गया है!
अब तो जैसे बीते दिनों की बातें हो गई हैं! छतीसगढ़ का बहुचर्चित जिला दुर्ग के लोह नगरी भिलाई में कभी सेवादल का शानदार फ़ौज था, जो काँग्रेस के हर आयोजन में व्यवस्था सम्हलते नज़र आया करते थे! अपने पोशाक ओर अनुशासन के वज़ह से कभी देश के प्रधानमन्त्री पंडित नेहरू जी ने भी सेवादल के कार्य प्रणाली की तारीफ़ की थी! अब तो सेवादल की पोशाक और टोपी लगाने में लोग शर्म महसूस करते है! कांग्रेस की रीढ कहे जाने वाली सेवादल आज बस हड्डी बन कर रह गईं है!