भारत

कांग्रेस से निकल कर कौन से नेता सफल रहे हैं...पढ़िए यह पूरी रिपोर्ट

Teja
27 Oct 2021 2:33 PM GMT
कांग्रेस से निकल कर कौन से नेता सफल रहे हैं...पढ़िए यह पूरी रिपोर्ट
x
फाइल फोटो 
पंजाब के पूर्व मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह ने आज अपनी नई पार्टी बनाने का एलान किया है

जनता से रिस्ता वेबडेसक | पंजाब के पूर्व मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह ने आज अपनी नई पार्टी बनाने का एलान किया है। वे अपनी पार्टी के नाम की घोषणा जल्द करेंगे। कैप्टन ने कहा कि उनकी पार्टी 2022 के पंजाब विधानसभा चुनाव में सभी 117 सीटों पर चुनाव लड़ेगी। इसके लिए दूसरे दलों के साथ गठबंधन करेंगे या खुद अपनी पार्टी की बदौलत लड़ेंगे।

कैप्टन के कांग्रेस छोड़ने से पहले कई बार पार्टी में टूट हो चुकी है। पहले भी कई कद्दावर नेताओं ने पार्टी छोड़कर अपनी अलग राह पकड़ी है। कोई किसी दूसरे दल में शामिल हो गए तो कुछ ने नई पार्टी बना लीं। आजादी के बाद कांग्रेस से टूटकर लगभग 70 पार्टियां बन चुकी हैं। इनमें से कई खत्म हो चुके हैं, जबकि कुछ आज भी अस्तित्व में हैं। जिन नेताओं ने कांग्रेस से अलग होकर अपनी नई पार्टी बना ली, जरुरी नहीं कि सबकी राह आसान रही हो। लेकिन कुछ नाम ऐसे हैं जिन्होंने न केवल अलग पार्टी बनाने का जोखिम उठाया बल्कि हर चुनौती भी स्वीकार की।

इन नेताओं ने अपनी क्षेत्रीय पार्टी बना कर सियासी परचम तो लहराया ही, कामयाबी की नई इबारत भी लिखी। जानिए ऐसे ही तीन बड़े क्षेत्रीय नेताओं के बारे में जिन्होंने कांग्रेस से विद्रोह के बाद अपने-अपने राज्यों में न केवल अपनी छाप छोड़ी बल्कि सफलता के झंडे भी गाड़ दिए। हालांकि इन नेताओं की पार्टियां अभी भी राष्ट्रीय स्तर पर कांग्रेस का विकल्प नहीं बन पाई हैं।

ममता बनर्जी

पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी का राजनीतिक करियर कांग्रेस में युवा नेता के तौर पर शुरू हुआ। 1976 में वे महिला कांग्रेस महासचिव बनीं। 1984 के लोकसभा चुनाव में वे माकपा नेता सोमनाथ चटर्जी को हरा कर सांसद बनी थीं। राजीव गांधी जब प्रधानमंत्री थे तो उन्हें युवा कांग्रेस का राष्ट्रीय महासचिव बनाया गया। वे साल 1989 में वह जादवपुर लोकसभा सीट से चुनाव हार गई थीं। लेकिन साल 1991 में हुए आम चुनाव में वह कोलकाता दक्षिण सीट से जीत हासिल करते हुए दोबारा सांसद बनीं।

कई मुद्दों पर कांग्रेस से मनमुटाव होने पर करीब 25 साल वहां रहने के बाद वे 1998 में पार्टी से अलग हो गईं। उन्होंने तृणमूल कांग्रेस की स्थापना की। यह पार्टी जल्द ही राज्य की मुख्य विपक्षी दल बन गई। काफी संघर्ष के बाद ममता बनर्जी की पार्टी को बंगाल में सत्ता 2011 में हासिल हुई। 2011 में उन्होंने पश्चिम बंगाल में 34 सालों से सत्ता पर काबिज वामपंथी मोर्चे का सफाया कर दिया। पांच मई 2021 को उन्होंने तीसरी बार मुख्यमंत्री पद की शपथ ली। जबकि कांग्रेस बंगाल में अपने अस्तित्व के लिए संघर्ष करती दिख रही है।

शरद पवार

राष्ट्रीय स्तर पर कांग्रेस में एक बड़ी टूट तब हुई जब 1999 में शरद पवार ने सोनिया गांधी के नेतृत्व को चुनौती दी। पवार, पीए संगमा और तारिक अनवर जैसे बड़े नेताओं ने सोनिया गांधी के प्रधानमंत्री बनने का विरोध किया। जिसके बाद उन्हें पार्टी से निकाल दिया गया। तीनों ने मिलकर पांच मई 1999 को राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी का गठन कर लिया। हालांकि पवार ने अलग पार्टी तो बना ली लेकिन राष्ट्रीय महात्वाकांक्षा के कारण वे कांग्रेस के साथ चलते रहे हैं।

एनसीपी के गठन के छह महीने के भीतर ही 1999 में जब महाराष्ट्र में सरकार बनाने का वक्त आया तो एनसीपी ने कांग्रेस के साथ गठबंधन कर लिया। यूपीए सरकार में भी वे शामिल रहे। इस तरह बीते 22 सालों से महाराष्ट्र की सियासत में एनसीपी कांग्रेस के साथ कदमताल कर रही है। लगातार 15 साल तक महाराष्ट्र में राकांपा-कांग्रेस गठबंधन की सरकार रही है।

शरद पवार ने दो बार कांग्रेस छोड़ी, लेकिन बाद में उसी का समर्थन किया या लौट आए। पवार अब महाराष्ट्र की सियासत के बड़े क्षेत्रीय छत्रप होने के कारण राष्ट्रीय राजनीति में भी प्रासंगिक बने हुए हैं। लेकिन संगमा ने जब देखा कि एनसीपी केवल महाराष्ट्र तक की राजनीति में सिमटी है तो वे मेघालय में क्षेत्रीय राजनीति करने लगे। जबकि तारिक अनवर ने पिछले लोकसभा चुनाव से पहले घर वापसी कर ली है।

जगन मोहन रेड्डी

आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री जगन मोहन रेड्डी ने कांग्रेस से अलग होकर अपनी क्षेत्रीय पार्टी वाईएसआर कांग्रेस बनाकर अपना सियासी परचम लहराया है। उनके पिता और राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री वाई एस राजशेखर रेड्डी का सितम्बर 2009 में एक हवाई दुर्घटना में निधन होने के बाद जगन उनकी जगह खुद मुख्यमंत्री बनने का दावा करने लगे। जिसकी वजह से कांग्रेस उनके खिलाफ हो गई।

कांग्रेस की परवाह किए बिना पिता के विराट जनसमर्थन के सहारे खुद की अपनी अलग पार्टी बनाई। हालांकि इस राह में कई अड़चनें भी आईं और उनकी पार्टी को राज्य में काफी संघर्ष करना पड़ा, लेकिन अभी राज्य की कमान उनके हाथों में है। बहुत ही कम समय में वाईएसआर कांग्रेस ने कांग्रेस को राज्य में पीछे धकेल दिया।

वे नेता जो कांग्रेस से निकल लेकिन असफल रहे

कभी निजी राष्ट्रीय महात्वकांक्षा तो कभी उपेक्षा के कारण दर्जनों बार कद्दावर नेताओं ने पार्टी छोड़ी और कांग्रेस का सियासी विकल्प बनने की कोशिश की। जिनमें मुख्य तौर पर प्रणब मुखर्जी, जगजीवन राम, जी के मूपनार, नारायण दत्त तिवारी, अर्जुन सिंह, माधव राव सिंधिया, नारायणदत्त तिवारी, पी चिदंबरम, तारिक अनवर जैसे कुछ प्रमुख नाम हैं, जो कांग्रेस पार्टी छोड़कर तो गए लेकिन उन्हें वैसी सफलता नहीं मिली जिसकी उम्मीद में वे गए थे तो वे लौटकर कांग्रेस में ही आ गए।

कब-कब टूटी कांग्रेस

देश की सबसे पुरानी पार्टी कांग्रेस में अब तक 50 से ज्यादा बार टूट हुई हो चुकी है, जिनमें 16 टूट सफल रही है। दो बार तो इंदिरा गांधी ने ही कांग्रेस तोड़ी और दोनों बार सफल रहीं।

आजादी से पहले कांग्रेस दो बार टूटी। 1923 में चितरंज दास और मोतीलाल नेहरू ने कांग्रेस पार्टी छोड़ दी और स्वराज पार्टी बनाई।

1939 में महात्मा गांधी से नाराज होकर सुभाष चंद्र बोस ने ऑल इंडिया फॉरवर्ड ब्ल़ॉक पार्टी बनाई।

आजादी के बाद 1959 में कांग्रेस से टूट के बाद तीन नई पार्टियां बनी। किसान मजदूर प्रजा पार्टी, हैदराबाद स्टेट प्रजा पार्टी और स्वराज खेदूत संघ।

1956 से 1970 तक कांग्रेस से अलग कर 12 नई पार्टियां बनीं।

1967 में चौधरी चरणसिंह ने कांग्रेस से अलग होकर भारतीय क्रांति दल का गठन किया। बाद में यह लोकदल के नाम से जानी गई।

इंदिरा गांधी को प्रधानमंत्री रहते हुए कांग्रेस के नेताओं ने पार्टी से बाहर कर दिया था।

12 नवंबर 1969 के दिन कांग्रेस के मजबूत सिंडिकेट ने जब तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को पार्टी से निकाल दिया तो उन्होंने नई पार्टी बनाई कांग्रेस (आर) बनाई।

सिंडिकेट के नेताओं ने कांग्रेस का नाम बदलकर इंडियन नेशनल कांग्रेस (ओ) कर दिया तो इंदिरा गांधी ने कांग्रेस को तोड़ते हुए फिर नई पार्टी कांग्रेस (आई) बनाई।

उसी समय 1969 में बीजू पटनायक ने उत्कल कांग्रेस और आंध्र प्रदेश में एम चेन्नारेड्डी ने तेलंगाना प्रजा समिति बनाई।

2009 में जगनमोहन रेड्डी ने अपने पिता वाई एस राजशेखर रेड्डी के नाम पर वाईएसआर कांग्रेस बना ली।

2016 में पार्टी एक बार फिर टूटी। इस बार कारण छत्तीसगढ़ के पूर्व मुख्यमंत्री अजीत जोगी थे। जोगी ने छत्तीसगढ़ जनता कांग्रेस बनाकर अपना रास्ता अलग कर लिया।

सात सालों में 222 नेताओं ने कांग्रेस छोड़ी

एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (एडीएआर) के एक सर्वे के मुताबिक 2014 से 2021 के दौरान कुल सात सालों में 222 नेता कांग्रेस छोड़कर दूसरी पार्टियों में चले गए। इनमें 177 सांसद और विधायक हैं। 115 उम्मीदवार कांग्रेस में शामिल भी हुए हैं और उसमें 61 सांसद और विधायक हैं।

हाल ही में कांग्रेस छोड़ने वाले कुछ बड़े नाम

कांग्रेस नेतृत्व से नाराज होकर हाल के कुछ सालों में कांग्रेस छोड़ने वालों में जो बड़े नाम हैं उनमें मध्यप्रदेश से ज्योतिरादित्य सिंधिया, महाराष्ट्र में नारायण राणे और प्रियंका चतुर्वेदी, उत्तर प्रदेश में जितिन प्रसाद, असम में हेमंत विस्वा शर्मा और सुष्मिता देव और बंगाल से अभिजीत मुखर्जी और अब पंजाब से कैप्टन अमरिंदर हैं।

ऐसा नहीं कि सिर्फ मौजूदा नेतृत्व यानी सोनिया गांधी और राहुल गांधी के खिलाफ ही विरोध की आवाज सुनाई देती है। इससे पहले नरसिम्हा राव के खिलाफ अर्जुन सिंह बागी हो गए थे। सीताराम केसरी के खिलाफ राजेश पायलट ने आवाज उठाई थी। इसी तरह सोनिया गांधी का जितेंद्र प्रसाद भी विरोध कर चुके हैं। अब राहुल गांधी के खिलाफ जी-23 के नेता खड़े हैं।

Next Story