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जब सुप्रीम कोर्ट बोला- अब थप्पड़ मारकर 'सॉरी' बोलने की प्रथा खत्म करनी होगी, जानिए पूरा मामला

jantaserishta.com
5 Jan 2022 7:11 AM GMT
जब सुप्रीम कोर्ट बोला- अब थप्पड़ मारकर सॉरी बोलने की प्रथा खत्म करनी होगी, जानिए पूरा मामला
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हाईकोर्ट पर अवमाननापूर्ण आरोप लगाने वाली याचिका खारिज कर दी.

नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने मंगलवार को कहा कि अब थप्पड़ मारकर 'सॉरी' बोलने की प्रथा खत्म करनी होगी. यह टिप्पणी करने के साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने उत्तराखंड हाईकोर्ट पर अवमाननापूर्ण आरोप लगाने वाली याचिका खारिज कर दी. इसके साथ ही याचिका लगाने वाले आवेदक पर 25 लाख रुपये का जुर्माना भी लगाया. ऐसा न करने पर उसकी संपत्ति से भू-राजस्व के बकाया के रूप में राशि वसूल किए जाने के आदेश दिए.

दायर की गई याचिका में आवेदक ने दावा किया था कि वह संपत्तियों का प्रबंधन करने वाले तत्कालीन होल्कर शाही परिवार के इंदौर स्थित ट्रस्ट द्वारा संपत्तियों की बिक्री और हस्तांतरण के कथित घोटाले का व्हिसल ब्लोअर था. पाल ने उत्तराखंड हाईकोर्ट के न्यायाधीशों, राज्य सरकार के अफसरों के साथ सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता पर निष्पक्ष रूप से कार्रवाई न करने का आरोप लगाया.
जस्टिस एएम खानविलकर और जस्टिस सीटी रविकुमार की पीठ ने कहा कि आवेदन में कहे गए कथन स्वीकार्य नहीं हैं. आवेदक ने उत्तराखंड हाईकोर्ट और राज्य सरकार के अधिकारियों पर आरोप लगाने का दुस्साहस किया है. कोर्ट ने कहा कि आवेदक को कुछ संयम दिखाना चाहिए और निराधार आरोप लगाने से बचना चाहिए. पीठ ने हरिद्वार के जिला कलेक्टर को चार सप्ताह में आवेदक से जुर्माने की वसूली के आदेश दिए हैं.
मामले में सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने मध्य प्रदेश सरकार का पक्ष रखा. अक्टूबर 2020 में मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने खासी यानि देवी अहिल्याबाई होल्कर चैरिटीज ट्रस्ट द्वारा संपत्तियों की बिक्री और हस्तांतरण को शून्य करार दिया था. इसके साथ ही आर्थिक अपराध शाखा को इसकी जांच करने का आदेश दिया था. हाईकोर्ट ने इंदौर स्थित ट्रस्ट द्वारा प्रबंधित संपत्तियों को राज्य सरकार के पास रखने का भी फैसला सुनाया था.
दलीलों के दौरान आवेदक की ओर से पेश वकील ने अदालत से कहा कि उसे आवेदन वापस लेने की अनुमति दी जाए. पीठ ने कहा कि वापस लेने की अनुमति क्यों दी जाए? आप यहां आते हैं और सभी तरह के आरोप लगाते हैं. पहले थप्पड़ मारो और फिर सॉरी बोलो. मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय के अक्टूबर 2020 के फैसले से उत्पन्न मुख्य मामले की सुनवाई फरवरी के तीसरे सप्ताह में की जाएगी.
पीठ ने कहा कि वह अंतरिम राहत के आवेदन पर विचार करने के लिए इच्छुक नहीं है. विशेष रूप से उच्च न्यायालय के निर्देशानुसार आपराधिक प्रक्रिया शुरू करने पर रोक लगाने के संबंध में, क्योंकि आदेश सभी पक्षों को सुनने के बाद पारित किया गया था. शीर्ष अदालत ने अक्टूबर 2020 में कहा था कि अगले आदेश तक आपराधिक प्रक्रिया शुरू करने के संबंध में उच्च न्यायालय द्वारा जारी निर्देश पर रोक रहेगी.
वहीं मध्य प्रदेश की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि उच्च न्यायालय द्वारा आदेशित जांच को आगे बढ़ने दिया जाए. उच्च न्यायालय ने अपने फैसले में कहा था कि राज्य सरकार इंदौर के तत्कालीन शासकों होल्करों की 246 धर्मार्थ संपत्तियों का मालिकाना हक रखती है.
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