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फटकार! जब हाईकोर्ट ने कहा- क्रिकेट हमारा ओरिजिनल गेम भी नहीं है, लेकिन...जानें पूरी बात

jantaserishta.com
21 July 2022 11:51 AM GMT
फटकार! जब हाईकोर्ट ने कहा- क्रिकेट हमारा ओरिजिनल गेम भी नहीं है, लेकिन...जानें पूरी बात
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न्यूज़ क्रेडिट: आजतक

जानें पूरा मामला।

मुंबई: क्रिकेट ग्राउंड पर पानी पिलाने की मांग वाली याचिका पर सुनवाई करते हुए बॉम्बे हाईकोर्ट ने याचिकाकर्ता को कड़ी फटकार लगाई है. हाईकोर्ट ने फटकारते हुए कहा कि क्रिकेट हमारा ओरिजिनल गेम भी नहीं है, लेकिन उसके लिए किट खरीद सकते हैं तो पानी की बोतल क्यों नहीं?

चीफ जस्टिस दीपांकर गुप्ता और जस्टिस एमएस कार्णिक की बेंच ने याचिकाकर्ता से कहा, 'आप खुशनसीब हैं कि आपके माता-पिता आपके लिए चेस्ट गार्ड, नी गार्ड और क्रिकेट के लिए हर जरूरी चीज खरीद सकते हैं. अगर आपके माता-पिता ये सब खरीद सकते हैं, तो वो आपके लिए पानी की बोतल भी खरीद सकते हैं. उन ग्रामीणों के बारे में सोचिए जिन्हें पानी नहीं मिलता.'
हाईकोर्ट ने ये टिप्पणी उस याचिका पर सुनवाई करते हुए की, जिसमें मांग की गई थी कि मुंबई क्रिकेट एसोसिएशन को ग्राउंड पर क्रिकेट खेलने वाले खिलाड़ियों को पानी उपलब्ध कराना चाहिए.
याचिकाकर्ता की ओर से पेश हुए वकील राहुल तिवारी ने याचिका में कहा था कि 'क्रिकेट ग्राउंड में पानी न देकर मेरे मौलिक अधिकारों का हनन किया जा रहा है. क्रिकेट एसोसिएशन का कहना है कि ये बृह्नमुंबई म्यूनिसिपल कॉर्पोरेशन (बीएमसी) की जिम्मेदारी है, जबकि बीएमसी का कहना है कि ये क्रिकेट एसोसिएशन का काम है.'
सुनवाई के दौरान चीफ जस्टिस दत्ता ने फटकारते हुए कहा, 'क्या आपको पता है कि औरंगाबाद में हफ्ते में एक बार पानी आ रहा है. हफ्ते में एक बार. आप अपना पानी क्यों नहीं ले जा सकते? आप क्रिकेट खेलना चाहते हैं, जो हमारा ओरिजिनल गेम भी नहीं है. क्या ये विलासिता नहीं है? प्रायोरिटी लिस्ट में आपका मामला 100वें नंबर पर आएगा. आपने उन मुद्दों को देखा है जिन्हें हमें देखना है?'
हाईकोर्ट ने कहा, 'सबसे पहले हमें ये सुनिश्चित करना है कि महाराष्ट्र के हर गांव को पानी मिले. सबको जीवन जीने और सर्वाइव करने का अधिकार है. हम उन ग्रामीणों को नहीं भूल सकते जो बाढ़ में डूब गए.'
बेंच ने कहा, 'मौलिक अधिकारों की बात करने से पहले आपको अपने मौलिक कर्तव्यों का ध्यान रखना चाहिए. क्या आपने जीवित प्राणियों के लिए करुणा दिखाई है? जीवित प्राणियों में इंसान भी आते हैं. क्या आपने चिपलून और औरंगाबाद के लोगों के बारे में सोचा है? ये बिल्कुल सरकार की प्रायोरिटी लिस्ट में सबसे नीचे होगा. लेकिन आपने अपने मौलिक कर्तव्यों को पूरा करने के लिए क्या किया है? हम इन सबमें अपना समय खराब नहीं करना चाहते.'
हाईकोर्ट ने इस मामले पर सुनवाई करने से मना कर दिया. कोर्ट ने अगली तारीख पर याचिकाकर्ता को और तैयार करके आने की सलाह दी है.

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