भारत में इलेक्ट्रिक वाहनों का क्या है भविष्य, जानिए एक्सपर्ट की राय
इलेक्ट्रिक वाहन (ईवी) क्यों लोकप्रिय हो रहे हैं?
बिजली से चलने वाले वाहनों की इसलिए तारिफ हो रही है क्योंकि इससे वायु प्रदुषण कम होगा. ईवी विनिमार्ण और बिक्री को लेकर सकारात्मक प्रतिक्रिया मिली है. प्रीसिजन कैमशाफ्टस लिमिटेड ऐंड ईएमओएसएस बीवी (EMOSS BV) के कार्यकारी निदेशक (एग्जीक्यूटिव डायरेक्टर) करन शाह ने कहा, "नई वाहन कबाड़ नीति से पारंपरिक आईसी इंजन वाली यात्री और वाणिज्यिक गाड़ियों के बढ़ावे के लिए सहायक होगी क्योंकि पुराने वाहनों को हटाया जाएगा. ईवी के उपयोग को तुरंत बढ़ावा देने के लिए यह कदम मददगार नहीं होगा यह एक लंबा लक्ष्य है."
भारत में इलेक्ट्रिक वाहनों (EV) का बाजार तेजी से बढ़ता जा रहा है। पेट्रोल और डीजल की तुलना में सस्ती राइडिंग उपलब्ध कराने के साथ ही इनसे वायु प्रदूषण का खतरा भी नहीं होता।इस कारण लोग तेजी से इस ओर रुख कर रहे हैं, लेकिन अब भी इलेक्ट्रिक वाहनों को लेकर लोगों के मन में कई सवाल है।
क्या लंबी दूरी के लिए सही है EV विकल्प ?
रेंज को लेकर धवन का मानना है कि वर्तमान में इलेक्ट्रिक गाड़ियां सिर्फ शहरों में चलाने के लिए सही हैं। शहरों से बाहर अभी EV पर उतना भरोसा नहीं किया जा सकता। अगर कोई व्यक्ति अपनी EV से दिल्ली से आगरा के लिए निकलता है तो चार्जिंग स्टेशनों की कमी के कारण उसे कई तरह की दिक्कत आ सकती है। इसलिए जब तक ये चार्जिंग सेटअप्स नहीं लग जाते, तब तक लंबी दूरी के लिए इनका इस्तेमाल आसान नहीं है।
देश में बिजली से चलने वाले (ईवी) वाहनों का उद्योग कितना बड़ा है?
पी ऐंड एस इंटेलिजेंस (P&S Intelligence) की रिसर्च स्टडी के मुताबिक ईवी मार्केट साल 2019 में 536.1 मिलयन डॉलर था जो कि 2020 से 2030 तक के बीच में 22.1 फीसदी बढ़ने का अनुमान है. सीईईडब्लयू(CEEW) ने एक सर्वे किया जिसके मुताबिक जवाब देने वाले 87 फीसदी लोगों ने कहा कि वह ईवी वाहनों के बारे में जानते हैं. बिजली से चलने वाली गाड़ियों की जानकारी देने पर 71 प्रतिशत लोगों ने कहा कि वह यह वाहन लेंगे जिन्हें कि पहले इसके बारे में पता तक नहीं था. सरकार के बिजली वाहनों के लेकर जागरूकता के लिए किए जा रहे प्रयासों को 93 फीसदी लोगों ने सराहा.
EV से जुड़ी कौन सी बातें वाहन निर्माता छुपाते हैं?
इस मामले में धवन का मानना है कि सबसे बड़ी बात जो इलेक्ट्रिक गाड़ियों को लेकर छिपाई जाती है वो है इनकी सही बैटरी रेंज। कंपनियों द्वारा दावा की गई रेंज ARAI टेस्ट ट्रैक पर आदर्श स्थिति पर दी जाती है, जो सड़कों पर काफी कम हो जाती है। आपको बता दें कि यहां आदर्श स्थिति से मतलब उस स्थिति से है, जिसमें गाड़ी चलाते समय कोई एयर टरबूलेंस नहीं होती और न ही जाम की स्थिति होती है।
ईवी से भारत को क्या फायदे हैं और कितना काम करने की जरूरत है?
इलेक्ट्रिक वाहनों के रखरखाव में कम खर्च आएगा. ड्रूम के संस्थापक और सीईओ संदीप अग्रवाल ने कहा, "ईवी से कई फायदे होते हैं. देश में लगातार बढ़ते वायु प्रदूषण और पर्यावरण पर पड़ने वाले बुरे प्रभावों को ये कम करेगा. यह डीजल वाहनों से कम कार्बन फुटप्रिंट छोड़ते है जिस वजह से यह ज्यादा पर्यावरण के अनुकूल है. इसके अलावा इससे तेल आयात पर देश की निर्भरता कम होगी और वाहन मालिकों के ईधन के लेकर पैसे भी कम खर्च करने होंगे. सरकार के ईवी वाहनों पर टैक्स कम करने के कारण इसके दाम भी कम होंगे." भारत में ईवी वाहनों की चार्जिंग का बुनियादी ढांचा नहीं है. आगे संदीप अग्रवाल ने कहा कि बड़े पैमाने पर इलेक्ट्रिक वाहनों को बनाने के लिए बुनियादी ढांचे, पूंजी व्यय और मानसिकता की कमी है. प्रीसिजन कैमशाफ्टस लिमिटेड ऐंड ईएमओएसएस बीवी (EMOSS BV) के कार्यकारी निदेशक (एग्जीक्यूटिव डायरेक्टर) करन शाह ने कहा, "कार्य प्रगति पर है लेकिन ईवी की अधिक मांग के लिए काम तेजी से करना होगा. दूसरा हमें रखरखाव सेवाओं पर भी ध्यान देना होगा."
इन कारणों से वास्तविक रेंज हो जाती है कम
कंपनियों द्वारा बताई गई रेंज से इनकी वास्तविक रेंज से कम होती है, जिसका सबसे बड़ा कारण EVs इस्तेमाल का तरीका है। धवन ने कहा कि जब कंपनियां इलेक्ट्रिक वाहनों की रेंज तय करती है तब इनमें कम लोड होता है, लेकिन जब लोग इनका इस्तेमाल करते है तब इनमें लोगों का लोड, AC और लाइट का इस्तेमाल, जाम या सिग्नल पर गाड़ी का स्टार्ट रहना जैसे कारण आ जाते हैं, जो पूर्ण रूप से बैटरी पर निर्भर करते हैं।
कौन सी बातें इलेक्ट्रिक गाड़ियों के विकास में बाधा बन रही?
धवन के मुताबिक इलेक्ट्रिक वाहनों की सबसे बड़ी चुनौती उनकी चार्जिंग की है। भारत की 90 प्रतिशत गाड़ियां सड़कों पर पार्क होती हैं। ऐसे में हर गाड़ी के लिए चार्जिंग की सुविधा पहुंचा पाना संभव नहीं है। इंफ्रास्ट्रक्चर को दूसरी बड़ी चुनौती मानते हुए वो कहते हैं कि दिल्ली में मात्र 8 से 10 सार्वजनिक चार्जिंग पॉइंट हैं। इसलिए वैसे लोग जो घरों में चार्जिंग पॉइंट लगाने में सक्षम नहीं है, वे EV पर विचार नहीं कर पा रहे हैं।
क्या भारत इलेक्ट्रिक वाहनों के बाजार में मुख्य देश बन पाएगा
भारत में 5 लाख ईवी वाहनों सहित निजी कार, पब्लिक ट्रांसपोर्ट, बस, दोपहिया और तिपहिया वाहन हैं. ड्रूम के संस्थापक संदीप अग्रवाल का कहना है कि ई-ऑटोमोबाइल का बाजार बनने के लिए भारत को लंबा रास्ता तय करना है. ऐसा इसलिए क्योंकि देश में पूंजी की लागत बढ़ जाती है. हिंदुस्तान अमेरिका, जापान और पश्चिमी युरोप के देशों के मुकाबले में कम विश्वास वाला मार्केट है. भारत को ऑटोमोबाइल कंपनियों को दो बड़ी चुनौतियों से पार पाना होगा. पहला बुनियादी ढांचे को स्थापित करने में लंबा समय लगेगा और दूसरा चार्जिंग स्टेशनों की सुरक्षा करना भी एक चुनौती हो सकता है. यह सब हासिल करना मुश्किल नहीं है बस थोड़ा समय लगेगा. बैटरी के संस्थापक निश्चल ने क्विंट से बात करते हुए कहा, " ईवी वाहनों को बनाने के लिए हम प्रोडक्ट का आयात कर रहे हैं. जब यह बंद हो जाएगा तब लागत कम होने से बिजली से चलने वाले वाहन सस्ते होंगे जिससे कि ग्राहक इसकी खरीद करेंगे. इसका परिणाम यह होगा कि ईवी वाहनों की ब्रिकी बढ़ जाएगी."
EV के बढ़ते बाजार के हैं कुछ अनदेखे नुकसान
शहरों से प्रदूषण को कम करने के लिए बड़ी संख्या में इलेक्ट्रिक गाड़ियों का चलन शुरू किया जा रहा है और इनकी बैटरी की आपूर्ति के लिए शहरों से दूर फैक्ट्रियां लगाई जा रही है। धवन के मुताबिक इससे गांवों का पर्यावरण खराब हो रहा है। साथ ही इन बैटरियों का जीवन खत्म होने पर इन्हे पूरी तरह से नष्ट करने का कोई समाधान फिलहाल नहीं है। जिससे इनसे निकलने वाली जहरीली गैसें पर्यावरण को बहुत नुकसान पहुंचाएगी।
स्टार्ट-अप के लिए कितना तैयार है भारत का EV बाजार?
धवन ने हमें बताया कि भारत में EV का बाजार जोरों पर है और स्टार्ट-अप के लिए अच्छा विकल्प बन सकता है। हालांकि, इस बात को नहीं नकारा जा सकता कि हजारों कंपनियां बाजार में पहले से मौजूद हैं और बहुत से चाइनीज पार्ट्स भी बाजार में उपलब्ध हैं। ऐसे में स्टार्ट-अप को सही से चलाने और बाजार में बने रहने के लिए एक नए आइडिया के साथ-साथ किसी बड़ी कंपनी के नाम का सपोर्ट होना बहुत जरूरी है।
टेस्ला के आने से भारत में मौजूद कंपनियों पर क्या प्रभाव पड़ेगा?
भारत में कार बाजार 10 से 20 लाख रुपये के बीच है। इसके ऊपर की सभी कारें लग्जरी सेगमेंट की मानी जाती हैं। वहीं, टेस्ला की कारों की कीमत 70 से 80 लाख रुपये एक्स-शोरूम के आस-पास होने की उम्मीद है, जो भारत में सिर्फ लग्जरी सेगमेंट के ग्राहकों को ही कवर कर पायेंगी। इसलिए धवन के मुताबिक टाटा और महिंद्रा जैसी कंपनियां जो किफायती EV बाजार में ला रही हैं, उन्हे इससे ज्यादा फर्क नहीं पड़ेगा।
क्या सरकार द्वारा EV पर दी गई मदद काफी है?
धवन का मानना है कि कोई भी नया सेगमेंट या प्लान सरकार की मदद के बिना लोगों तक नहीं पहुंच सकता। सरकार नई नीतियों के तहत निजी कंपनियों को पहले से तैयार बाजार उपलब्ध कराती है, जिससे किसी भी नए उत्पाद को लोगों तक पहुंचना आसान हो जाता है। इसी तरह इलेक्ट्रिक वाहनों के प्रोत्साहन के लिए सरकार FAME-II जैसी योजनाओं के साथ काफी मदद कर रही है और भविष्य में इसके सकारात्मक प्रभाव देखे जा सकते हैं।
भारत में इलेक्ट्रिक गाड़ियों का क्या है भविष्य?
भारत में इलेक्ट्रिक गाड़ियों की सफलता को लेकर उनका कहना है कि भारत में इलेक्ट्रिक गाड़ियों का बाजार अभी केवल शुरू हुआ है और इसके बाजार की सही जानकारी के लिए हमें 8 से 10 सालों तक का इंतजार करना होगा।उन्होंने EV की बजाय हाईड्रोजन से चलने वाली गाड़ियों को भविष्य की गाड़ियों के रूप में ज्यादा सफल माना है। कई ऐसी कंपनियां है जो इस पर काम करना भी शुरू कर चुकी है।