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पश्चिम बंगाल विधानसभा में पोइला बैसाख को राज्य दिवस के रूप में मनाने का प्रस्ताव पारित

jantaserishta.com
7 Sep 2023 11:24 AM GMT
पश्चिम बंगाल विधानसभा में पोइला बैसाख को राज्य दिवस के रूप में मनाने का प्रस्ताव पारित
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कोलकाता: पश्चिम बंगाल विधानसभा ने गुरुवार को बहुमत से एक प्रस्ताव पारित कर 'पोइला बोइशाख (बंगाली नव वर्ष दिवस)' को राज्य दिवस घोषित किया। यह भी निर्णय लिया गया कि गुरुदेव रवींद्रनाथ टैगोर द्वारा लिखा गया प्रसिद्ध गीत 'बांग्लार माटी, बांग्लार जोल (बंगाल की मिट्टी, बंगाल का पानी)' राष्ट्रीय गीत की तर्ज पर राज्य गीत होगा।
मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने कहा कि भले ही राज्यपाल सी.वी. आनंद बोस ने प्रस्ताव को मंजूरी देने से इनकार कर दिया, प्रस्ताव के अनुसार दिवस मनाया जाएगा। मुख्यमंत्री ने प्रस्ताव पर चर्चा में भाग लेते हुए कहा, "बंगाली कैलेंडर का पहला दिन पोइला बोइशाख एक अत्यंत शुभ दिन माना जाता है। राज्य सरकार ने इस मामले पर कई प्रतिष्ठित व्यक्तियों से परामर्श किया और उनमें से अधिकांश ने 'पोइला बोइशाख' को पश्चिम बंगाल के राज्य दिवस के रूप में मनाने के पक्ष में आवाज उठाई। यदि राज्यपाल प्रस्ताव को मंजूरी नहीं देते हैं तो भी मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता। हम इसे राज्यत्व दिवस के रूप में मनाएंगे।” विधानसभा में विपक्ष के नेता सुवेंदु अधिकारी ने कहा कि आदर्श रूप से 20 जून को पश्चिम बंगाल का राज्य दिवस घोषित किया जाना चाहिए, क्योंकि 20 जून 1947 को आधिकारिक तौर पर पश्चिम बंगाल ने भारत का हिस्‍सा बनने का फैसला किया था।
उन्‍होंने कहा, “'पोइला बोइशाख' को राज्य दिवस घोषित करने का कोई वैज्ञानिक औचित्य नहीं है। इसलिए इस प्रस्ताव का हश्र वैसा ही होगा जैसा राज्य सरकार द्वारा राज्य का नाम बदलने या विधान परिषद के गठन जैसे मुद्दों पर या राज्य विश्वविद्यालयों के कुलाधिपति के रूप में राज्यपाल के स्थान पर मुख्यमंत्री को नियुक्त करने से संबंधित प्रस्तावों का हुआ था।" भाजपा ने इस प्रस्ताव का विरोध किया।
विधानसभा में ऑल इंडिया सेक्युलर फ्रंट (एआईएसएफ) के एकमात्र प्रतिनिधि, नौशाद सिद्दीकी ने सवाल किया कि क्या 'पोइला बोइशाख' को राज्य दिवस का दर्जा देने का उद्देश्‍य भ्रष्टाचार की असंख्य घटनाओं को छिपाना है, जिन्होंने राष्ट्रीय स्तर पर राज्य की छवि को खराब किया है। राज्यपाल ने इस वर्ष गवर्नर हाउस परिसर में 20 जून को पश्चिम बंगाल स्थापना दिवस मनाया, जिसके परिणामस्वरूप राजभवन और राज्य सचिवालय के बीच विवाद हो गया। राज्यपाल को अपने फैसले के लिए मुख्यमंत्री की तीखी आलोचना का सामना करना पड़ा।
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