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समाजवादी पार्टी के संस्थापक मुलायम सिंह यादव का सोमवार सुबह निधन हो गया है. वो काफी दिनों से बीमार चल रहे थे और गुरुग्राम के मेदांता अस्पताल में उन्होंने 82 साल की उम्र में अंतिम सांस ली. समाजवादी नेता राम मनोहर लोहिया के विचारों से प्रभावित रहे मुलायम सिंह ने अपने 55 साल के सियासी करियर में कई उतार-चढ़ाव भरे दौर देखे हैं. इटावा के एक छोटे से गांव सैफई से उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री बनने का तक सफर तय किया. ऐसे में मुलायम सिंह यादव के पहली बार विधायक बने से लेकर पहली बार मंत्री, पहली बार केंद्रीय मंत्री और उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री बनने की कहानी काफी दिलचस्प है...
मुलायम सिंह पहली बार कैसे बने विधायक
मुलायम सिंह यादव ने उत्तर प्रदेश में साल 1967 में सोशलिस्ट पार्टी के टिकट पर सबसे कम उम्र में विधायक बनकर अपने राजनीतिक करियर का आगाज किया था. मुलायम सिंह यादव को पहली बार विधायक बनाने में नत्थू सिंह की अहम भूमिका रही थी. साठ के दशक की बात है जसवंतनगर में एक कुश्ती के दंगल में युवा पहलवान मुलायम सिंह पर नत्थू सिंह की नजर पड़ी. उन्होंने देखा कि मुलायम ने अपने से भारी एक पहलवान को पलभर में चित कर दिया. इस तरह नत्थू सिंह उनके मुरीद हो गए और अपना शागिर्द बना लिया. यहीं से मुलायम सिंह की सियासी किस्मत खुलती है.
1967 के विधानसभा चुनाव में राम मनोहर लोहिया से नत्थू सिंह ने अपनी परंपरागत जसवंत नगर सीट से मुलायम सिंह को टिकट दिए जाने की पैरवी की थी. लोहिया ने संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी से मुलायम सिंह को जसवंतनगर सीट से टिकट दिया और नत्थू सिंह के बगल की करहल सीट से उतरे. मुलायम सिंह को टिकट तो मिल गया था, पर चुनाव लड़ने के लिए संसाधन नहीं थे. ऐसे में मुलायम सिंह काम उनके दोस्त दर्शन सिंह आए. प्रचार के लिए दर्शन सिंह ने साइकिल चलाई और मुलायम सिंह पीछे बैठे.
जसवंत नगर के गांव-गांव का दौरा कर एक-वोट, एक नोट का नारा दिया. इस तरह वो वोट के साथ चंदे में एक-एक रूपये मांगते और उसे ब्याज सहित लौटने का वादा करते. इस तरह उनकी लड़ाई कांग्रेस के दिग्गज नेता हेमवंती नंदन बहुगुणा के शिष्य एडवोकेट लाखन सिंह से था, लेकिन जब नतीजे आये तो सब चौंक गए. सियासत के अखाड़े की पहली लड़ाई मुलायम सिंह जीत गए और सिर्फ 28 साल की उम्र में प्रदेश के सबसे कम उम्र के विधायक बने. इसके बाद मुलायम सिंह ने कभी मुड़कर नहीं देखा.