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दिल्ली। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Prime Minister Narendra Modi) ने रविवार को स्वामी आत्मस्थानानन्द की जन्म शाताब्दी पर कहा कि, आज का ये आयोजन मेरे लिए व्यक्तिगत रूप से भी कई भावनाओं और स्मृतियों से भरा हुआ है. स्वामी आत्मस्थानंद जी ने शतायु जीवन के काफी करीब ही अपना शरीर त्यागा था. मुझे सदैव उनका आशीर्वाद मिला है. ये मेरा सौभाग्य है कि आखरी पल तक मेरा उनसे संपर्क रहा. स्वामी आत्मस्थानंद जी को श्री रामकृष्ण परमहंस के शिष्य, पूज्य स्वामी विजनानन्द जी से दीक्षा मिली थी. उन्होंने कहा, हमारे देश में सन्यास की महान परंपरा रही है। वानप्रस्थ आश्रम भी सन्यास की दिशा में एक कदम माना गया है. सन्यास का अर्थ ही है स्वयं से ऊपर ऊठकर समष्टि के लिए कार्य करना और जीना है. संन्यासी के लिए जीव सेवा में प्रभु सेवा को देखना, जीव में शिव को देखना, यही सर्वोपरि है.
उन्होंने कहा, सैकड़ों साल पहले आदि शंकराचार्य हों या आधुनिक काल में स्वामी विवेकानंद, हमारी संत परंपरा हमेशा एक भारत, श्रेष्ठ भारत का उद्घोष करती रही है. रामकृष्ण मिशन की तो स्थापना एक भारत, श्रेष्ठ भारत के विचार से जुड़ी हुई है. स्वामी रामकृष्ण परमहंस जैसे संत का वो जाग्रत बोध, वो आध्यात्मिक ऊर्जा उनमें स्पष्ट झलकती थी. आप देश के किसी भी हिस्से में जाइए, आपको ऐसा शायद ही कोई क्षेत्र मिलेगा जहां विवेकानंद जी गए न हों, या उनका प्रभाव न हो. उनकी यात्राओं ने गुलामी के उस दौर में देश को उसकी पुरातन राष्ट्रीय चेतना का अहसास करवाया, उसमें नया आत्मविश्वास फूंका.