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यूपी। उत्तर प्रदेश (Uttar Pradesh) के विधानसभा और विधान परिषद चुनाव में समाजवादी पार्टी को हार मिली है. राज्य में अब 11 सीटों के लिए दस जून को राज्यसभा चुनाव होने हैं. ऐसे में अब अखिलेश यादव (Akhilesh Yadav) के सामने पार्टी के विधायकों और सहयोगी दलों के विधायकों को एकजुट रखना बड़ी चुनौती है. राज्यसभा चुनाव में समाजवादी पार्टी अपने दम तीन सीटें आसानी से जीत सकती है. लेकिन चौथी सीट के लिए उसे बीजेपी में सेंध लगाना होगा. जो आज के माहौल में संभव होता नहीं दिख रहा है. बताया जा रहा है कि समाजवादी पार्टी (Samajwadi Party) के भीतर राष्ट्रीय लोकदल के प्रमुख जयंत चौधरी को राज्यसभा भेजने पर चर्चा चल रही है. ऐसा कर अखिलेश यादव जहां सहयोगी दलों को एकजुट रख सकते हैं, वहीं राज्य में वह विपक्षी दलों के एकमात्र नेता के तौर पर उभर सकते हैं. फिलहाल राज्यसभा को लेकर सपा के सहयोगी दलों ने भी अपनी डिमांड रखनी शुरू कर दी है और सुभासपा नेता ओपी राजभर अपने बेटे के लिए भी एक सीट चाहते हैं.
राज्य की 11 सीटों पर होने वाले राज्यसभा चुनाव समाजवादी पार्टी के प्रमुख अखिलेश यादव के लिए भी मुसीबत बन गए हैं. क्योंकि इस चुनाव में बीजेपी को सात तो सपा को तीन सीटें मिलने तय है. बीजेपी आठवीं सीट के लिए सपा में सेंधमारी की तैयारी कर रही है. जबकि सपा के लिए बीजेपी में सेंधमारी करना आसान नहीं हैं. बीजेपी को आठवीं सीट के सपा के सभी सहयोगी दलों में सेंध लगानी होगी और आठवीं सीट के लिए क्रास वोटिंग करानी होगी, जिसके बाद वह आठवीं सीट जीत सकती है. फिलहाल सपा प्रमुख राज्यसभा चुनाव में रालोद प्रमुख को टिकट देना चाहते हैं. सपा जयंत चौधरी को सपा के टिकट पर मैदान में उतार सकती है. ऐसा कर सपा लोकसभा चुनाव तक रालोद को अपने साथ जोड़ सकती है. जबकि राज्य में रालोद प्रमुख अपनी पार्टी की कमान एक तरह से सपा के हाथ में दे देंगे. यानी अखिलेश यादव के सामने कोई भी नेता विपक्ष के प्रमुख नेता के तौर पर स्थापित नहीं हो सकेगा. क्योंकि वर्तमान में बीएसपी और कांग्रेस का जनाधार राज्य में खत्म हो गया है.
पिछले दिनों ही रालोद प्रमुख जयंत चौधरी ने रामपुर में आजम खान के परिवार के साथ मुलाकात की थी. जयंत चौधरी की मुलाकात काफी अहम मानी जा रही है. क्योंकि जयंत चौधरी भी अपनी पार्टी का पश्चिम उत्तर प्रदेश में विस्तार करना चाहते हैं और उनके पास अभी कोई बड़ा मुस्लिम चेहरा नहीं है. लिहाजा वह आजम खान के परिवार के जरिए उन्हें साधने की कोशिश में है. रालोद के प्रदेश अध्यक्ष ने चुनाव के बाद से पार्टी को अलविदा कह दिया था. जिसके बाद पार्टी में कोई भी मुस्लिम चेहरा नहीं है. दरअसल पश्चिम उत्तर प्रदेश में रालोद का वोटबैंक मुस्लिम और जाट है. जिसके दम पर इस बार पार्टी ने आठ सीटें जीती थी.
राज्य में इस बात की भी संभावना है कि आने वाले दिनों में जयंत चौधरी, शिवपाल सिंह यादव और आजम खान का गठजोड़ बन सकता है. सियासी जानकारों का कहना है कि विधानसभा चुनाव में अखिलेश यादव के साथ आना रालोद की मजबूरी थी और अब राज्य में चुनाव हो चुके हैं और सबकी नजर लोकसभा चुनाव पर है. राज्य के विधानसभा चुनाव में अखिलेश यादव ने रालोद को कम सीटें दी थी. जिसके कारण पश्चिम उत्तर प्रदेश में रालोद के खाते में कम सीटें आयी. राज्य में विधानसभा चुनाव के नतीजे आने के बाद से शिवपाल और आजम खान अखिलेश यादव से नाराज चल रहे हैं. ऐसे में अगर ये तीनों नेता एक साथ आते हैं तो ये अखिलेश यादव के लिए खतरे की घंटी होगी. लिहाजा भविष्य में सामने आने वाली चुनौतियों को देखते हुए अखिलेश यादव जयंत चौधरी को राज्यसभा में भेजने की तैयारी में हैं.