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VIDEO: धर्म की नगरी काशी में खेली गई चिता भस्म की राख से होली, जानिए क्या है अनोखी मान्यता

jantaserishta.com
25 March 2021 5:59 AM GMT
VIDEO: धर्म की नगरी काशी में खेली गई चिता भस्म की राख से होली, जानिए क्या है अनोखी मान्यता
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होली का त्योहार 29 मार्च को मनाया जाएगा लेकिन धर्म की नगरी काशी में इसकी शुरूआत रंगभरी एकादशी से ही हो जाती है. काशीवासी अपने ईष्ट भोले बाबा के साथ महाश्मसान पर चिता भस्म के साथ खेलकर होली के पहले इस पर्व की शुरूआत कर देते हैं. इसके बाद ही काशी में होली की शुरुआत हो जाती है.

मोक्षदायिनी काशी नगरी के महाश्मशान हरिश्चंद्र घाट पर कभी चिता की आग ठंडी नहीं पड़ती. चौबीसों घंटें चिताओं के जलने और शवयात्राओं के आने का सिलसिला चलता ही रहता है. चारों ओर पसरे मातम के बीच वर्ष में एक दिन ऐसा आता है जब महाश्मशान पर होली खेली जाती है. वे भी रंगों के अलावा चिता के भस्म से होली.
रंगभरी एकादशी पर महाश्मशान में खेली गई इस अनूठी होली के पीछे एक प्राचीन मान्यता है. कहा जाता है कि जब रंगभरी एकादशी के दिन भगवान विश्वनाथ मां पार्वती का गौना कराकर काशी पहुंचे तो उन्होंने अपने गणों के साथ होली खेली थी. लेकिन वो अपने प्रिय श्मशान पर बसने वाले भूत, प्रेत, पिशाच और अघोरी के साथ होली नहीं खेल पाए थे. इसीलिए रंगभरी एकादशी से विश्वनाथ इनके साथ चिता-भस्म की होली खेलने महाश्मशान पर आते हैं.
इस दिन से पंचदिवसीय होली पर्व शुरू हो जाता है. इसकी शुरुआत हरिश्चंद्र घाट पर महाश्मशान नाथ की आरती से होती है. इसके पहले एक भव्य शोभायात्रा भी निकाली जाती है. इस अनूठे आयोजन को कराने वाले डोम राजा परिवार के बहादुर चौधरी ने बताया कि यह सदियों पुरानी परंपरा चली आ रही है.


मान्यता है कि बाबा मां पार्वती का गौना कराने के बाद भूत प्रेत और अपने गणों के साथ मसान में होली खेलने आते हैं और इसी के बाद से होली की शुरुआत हो जाती है. बाबा की शोभायात्रा कीनाराम आश्रम से निकलकर महाश्मशान हरिश्चंद्र घाट तक आती है. इसके बाद महाश्मशान नाथ की पूजा और आरती होती है. इसके बाद बाबा अपने गणों के साथ चिताभस्म की होली खेलते हैं.
इस मौके पर मौजूद बीएचयू के पूर्व छात्र डॉक्टर मनीष मिश्रा ने चिता भस्म की होली की पौराणिकता के बारे में बताया कि जब दक्ष के यज्ञ में सती जी ने अपने प्राणों को त्याग दिया था तभी से भोलेनाथ और देवगढ़ खुश नहीं थे. कामदेव के भस्म होने के बाद माता पार्वती का विवाह शिव जी के साथ हुआ. मान्यता अनुसार रंगभरी एकादशी के दिन ही भोलेनाथ माता पार्वती का गौना कराकर काशी ले आए जिससे शिवजी के गणों को काफी खुशी हुई.
बाबा भोलेनाथ अड़भंगी हैं और चिता भस्म से ही श्रृंगार करते हैं. इसलिए चिता की भस्म को एक-दूसरे पर उड़ाकर उन्होंने अपनी खुशियां प्रकट की थीं. वही परंपरा काशी में अनादिकाल से निभाई चली जाती है. इसी के साथ ही होली की शुरुआत काशी में हो जाती है.
काशीवासी पूरे वर्ष भर रंगों की होली खेलने के पहले इस महाश्मसान पर होने वाली चिता भस्म की होली का इंतजार करते हैं. चूंकि अंतिम सत्य शव है और काशीवासी शव को शिव के रूप में पूजनीय मानते हैं इसलिए शिव के साथ होली खेलने के लिए महाश्मशान पर अबीर गुलाल की जगह चिता की राख से होली खेलने आते हैं.
इस बार की अनोखी होली में युवतियां भी खुद को आने से नहीं रोक सकीं. बनारस में जाकर पढ़ाई करने वाली जौनपुर की रानी सिंह बताती हैं कि वह हर वर्ष चिता भस्म की होली देखने जरूर शमशान पर आती हैं और उन्हें यहां आकर काफी आनंद आता है.
वहीं बनारस के शिवम बताते हैं कि आज ही के दिन से बनारस में होली शुरू हो जाती है, क्योंकि शिव अपने गणों के साथ मसान में चिता भस्म की होली खेलते हैं और वह भी इसमें शामिल होकर इसका आनंद लेते हैं.
मातम में भी उत्साह का रंग कहीं दिख सकता है तो वो शिव की नगरी काशी में ही संभव है. काशीवासी महाश्मशान को छूत-अछूत, अपशगुन से परे और नवजीवन से मुक्ति पाने का द्वार मानते हैं. यही वजह है कि रंगों की होली के पहले चिता-भस्म की होली में जाने से आनंद कई गुना बढ़ जाता है.
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