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उत्तर प्रदेश की पांच दशक पुरानी छात्रवृत्ति, कोई लेने को तैयार नहीं

Teja
5 April 2022 7:16 AM GMT
उत्तर प्रदेश की पांच दशक पुरानी छात्रवृत्ति, कोई लेने को तैयार नहीं
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जनता से रिश्ता वेबडेस्क | उत्तर प्रदेश की इस स्कॉलरशिप में 60 के दशक में जितनी धनराशि तय हुई थी, आज भी उतनी ही है। संस्कृत शिक्षा को बढ़ावा देने के उद्देश्य से यह छात्रवृत्ति दी जाती है। इसकी राशि बेहद कम है।
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संस्कृत शिक्षा को बढ़ावा देने की बात तो खूब होती है लेकिन इस मकसद से दी जाने वाली पांच दशक पुरानी छात्रवृत्ति कोई मेधावी लेने को तैयार नहीं है। छात्रवृत्ति की राशि इतनी कम है कि ढंग का एक रजिस्टर तक न मिले। ऐसे में कई सालों से इस मद में आने वाला बजट पूरा खर्च नहीं हो पाया। इसके लिए 1.5 लाख का बजट आवंटित है। 2020-21 सत्र में 20 हजार तो 2021-22 सत्र में लगभग 50 हजार का उपभोग ही हो सका। शेष राशि शासन को लौटा दी गई। छात्रवृत्ति के बजट का उपभोग न होने का सबसे बड़ा कारण राशि कम होना है।
1968 में हुई थी शुरुआत
राज्य के माध्यमिक विद्यालयों में संस्कृत पढ़ने वाले छात्रों को छात्रवृत्ति देने की योजना की शुरुआत 1968 में हुई थी। इसके तहत सुयोग्य एवं प्रतिभाशाली छात्रों को संस्कृत पढ़ने में अभिरुचि बनाए रखने एवं उच्च शिक्षा के उद्देश्य से छात्रवृत्ति दी जाती है। संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय वाराणसी से प्राप्त श्रेष्ठता सूची के आधार पर निरीक्षक संस्कृत पाठशालाएं की ओर से धनराशि दी जाती है।
कक्षा छात्र संख्या राशि
पूर्व मध्यमा 125 50 रुपये
उत्तर मध्यमा 90 60 रुपये
शास्त्री 48 90 रुपये
आचार्य 25 120 रुपये
राशि 10 गुना बढ़ाने का प्रस्ताव
शिक्षा निदेशालय ने छात्रवृत्ति की राशि दस गुना बढ़ाने के लिए शासन को प्रस्ताव भेजा है, जो विचाराधीन है। वृद्धि के बाद पूर्व मध्यमा के 125 छात्रों को 500, उत्तर मध्यमा के 90 मेधावियों को 600, शास्त्री के 48 छात्रों को 900 जबकि आचार्य के 25 लाभार्थियों को 1200 रुपये प्रतिमाह 11 महीने तक देने का प्रस्ताव है। 54 साल पहले जब छात्रवृत्ति शुरू हुई तबसे वृद्धि नहीं हुई है।


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