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जूलॉजी के प्रोफेसर चला रहे कल्पवृक्ष बचाने का अभियान

jantaserishta.com
2 April 2023 5:27 AM GMT
जूलॉजी के प्रोफेसर चला रहे कल्पवृक्ष बचाने का अभियान
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गोरखपुर (आईएएनएस)| प्रोफेसर डीके सिंह, शैक्षिक जगत में एक जाना-माना नाम है। वे गोरखपुर विश्वविद्यालय में जूलॉजी यानी जीव विज्ञान पढ़ाते थे, लेकिन उनका मन पेड़-पौधों में ही रमा रहा। आज वे पर्यावरण संरक्षण की अलख जगाने में जुटे हैं। उनकी यह रुचि वैज्ञानिक जानकारियों पर आधारित है। जूलॉजी विभाग में रहते हुए उन्होंने 40-45 पौधों की उपयोगिता को केंद्र में रखकर काम शुरू किया। जीव-जंतुओं के लिए इनकी उपयोगिता को परखा। इसी पर अपने निर्देशन में 27 लोगों को पीएचडी भी अवार्ड की। इसी प्रयास के कारण विश्वविद्यालय में खुले पर्यावरण विभाग में लगभग 15 वर्षों तक काम भी मिला। अब रिटायर होने के बाद वे इसी काम को आगे बढ़ा रहे हैं।
प्रोफेसर डीके सिंह के अनुसार, अब तक वह लोगों को 17,200 पौधे नि:शुल्क वितरित कर चुके हैं। इनमें पारिजात, रुद्राक्ष, कपूर, पीपल, अशोक, मौलश्री, नीम, आम, जामुन, दालचीनी बाना और ची जैसे दीर्घजीवी और औषधीय प्रजाति के पौधे शामिल हैं। उनका सर्वाधिक ध्यान कल्पवृक्ष को बढ़ावा देने पर है। मान्यता है कि यह समुद्र मंथन से निकले 9 रत्नों में से एक है। परिपक्व होने पर यह विशालकाय पेड़ बन जाता है, ज्यादा ऑक्सीजन देता है। अब तक वे 300 से अधिक कल्पवृक्ष के पौधे वितरित कर चुके हैं। उनके इस अभियान की खासियत है कि वे सिर्फ पौधे देते नहीं हैं, बल्कि इनके नियमित खोज खबर भी लेते रहते हैं।
प्रोफेसर डीके सिंह का कहना है कि गर्मी का मौसम अब जल्दी शुरू होकर देर तक बना रहता है। पिछले साल अप्रैल में कई देशों में अधिकतम तापमान 46 डिग्री सेल्सियस तक पहुंच गया था। 2022 का मार्च अब तक का सबसे गर्म मार्च रहा। 1936 से 2006 के बीच लू चलने की समयावधि 25 गुना बढ़ी है।
उन्होंने बताया कि हालिया स्टडी के निष्कर्ष हैं कि अगले एक दशक में धरती के तापमान में 1.5 डिग्री सेल्सियस की वृद्धि हो जाएगी। मात्र 1 डिग्री सेल्सियस की वृद्धि पर ही आर्कटिक के बर्फ पिघलने की दर 10 गुना हो जाएगी। ये सारी चीजें एक भयानक भविष्य का संदेश देती हैं। हरित आवरण ही, इस धरती के वजूद को बचाने में मददगार हो सकता है।
प्रोफेसर सिंह कहते हैं कि पर्यावरण को बचाने के लिए पौधरोपण को एक अभियान के रूप में चलाने की जरूरत है। उनके मुताबिक, यदि हम बीसवीं सदी के आरंभ में पृथ्वी पर जितना हरित आवरण था, उतना पौधरोपण कर लें तो 100 बिलियन मीट्रिक टन कार्बन डाईऑक्साइड मात्रा को वातावरण से कम कर सकते हैं। मगर इस लक्ष्य को पाने के लिए जन भागीदारी जरूरी है। हमारा मकसद इस बारे में लोगों को जागरूक करना है, ताकि वह खुद अपनी धरती मां और भविष्य के लिए अधिक से अधिक पौधे लगाएं। अगर ये पौधे बहुउपयोगी हों तो सोने पर सुहागा। इससे पर्यावरण भी बचेगा और लोगों की सेहत भी महफूज रहेगी।
उल्लेखनीय है कि प्रोफेसर सिंह देवरिया के ऐतिहासिक गांव पैना के मूल निवासी हैं। सरयू नदी के किनारे बसे इस गांव के लोगों ने 1857 के पहले स्वतंत्रता संग्राम में अंग्रेजों के छक्के छुड़ा दिए थे। प्रतिशोध में अंग्रेजों ने तोप के गोले बरसाकर पूरे गांव को तबाह कर दिया। तमाम पुरुष मारे गये। महिलाएं अपनी अस्मत बचाने के लिए सरयू में कूद गई। उनके पिता स्वर्गीय अनिरुद्ध सिंह गोरखपुर के जुबली इंटर कॉलेज में शिक्षक एवं प्रधानाचार्य रह चुके हैं।
कृषि विज्ञानिकों कि मानें तो कल्पवृक्ष की उम्र एक कल्प मानी जाती है। सबसे पुराना कल्पवृक्ष अफ्रीका के सेनेगल में स्थित है, जिसकी उम्र 6000 वर्ष है। भारतवर्ष में सबसे पुराना कल्पवृक्ष बाराबंकी, उत्तर प्रदेश में है जिसकी उम्र करीब 4000 वर्ष है। कल्पवृक्ष की ऊंचाई 100 से 150 फीट होती है। तने की चौड़ाई 25 से 35 फीट तक होती है। कल्पवृक्ष की जड़, तना, पत्ती, पुष्प, छाल और फल औषधीय गुणों से भरपूर होते हैं। इसमें प्रचुर मात्रा में विटामिन सी, कैल्शियम, पौष्टिक तत्व और मिनरल्स पाए जाते हैं। पत्तियों,फल, छाल, बीज का दमा, हदय रोग, मलेरिया, चर्म रोग के इलाज में प्रयोग होता है। नौ आवश्यक अमीनो एसिड में से छह इसके फल में पाये जाते हैं। इसकी पत्तियों को सब्जियों में, आटे में गूथ कर रोटी बनाने और शरबत के रूप में भी प्रयोग किया जाता है।
वर्तमान में, यह विश्व के 10 विलुप्त होने वाले वृक्षों की श्रेणी में आता है। सनातन, जैन, बौद्ध, और सिख धर्म में इस वृक्ष का बहुत महत्व है।
ऐसी मान्यता है की समुद्र मंथन से कल्पवृक्ष निकला था, जिसे इंद्र ने स्वर्ग लोक में स्थापित किया था। भगवान कृष्ण, इंद्र से युद्ध में जीत कर यह वृक्ष पृथ्वी पर लाये थे। ऐसी मान्यता है कि इस वृक्ष के नीचे जो भी सच्चे मन से मांगा जाता है उस मनोकामना की पूर्ति अवश्य होती है।
पुरानी मान्यता के अनुसार, इस वृक्ष पर 24 घंटे देवताओं का वास रहता है। हनुमान जी इसकी जड़ में वास करते हैं -पारिजात तरु मूलवासिनम। 200 वर्षों में यह वृक्ष पूरे विकास पर आता है। पूर्ण विकसित वृक्ष में एक लाख लीटर पानी हमेशा रहता है। यह वृक्ष जल संरक्षण का बहुत ही अच्छा स्त्रोत है, साथ ही यह अधिकतम ऑक्सीजन उत्पन्न करने वाले वृक्षों की श्रेणी में आता है। प्रदूषण दूर करने में यह वृक्ष सहायक होता है, इसीलिए इसे जीवन वृक्ष भी कहा जाता है। कल्पवृक्ष में पुष्प मई से अगस्त माह में आते हैं। यह पुष्प हर साल नहीं आते हैं और कम ही खिलते हैं। इन पुष्पों का आध्यात्मिक जगत में विशेष महत्व है।
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