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AIMIM विधायक के राष्ट्रगीत नहीं गाने पर उपेंद्र कुशवाहा, बोले-देशभक्त होने के लिए राष्ट्रगीत गाना आवश्यक नहीं

Rani Sahu
4 Dec 2021 5:19 PM GMT
AIMIM विधायक के राष्ट्रगीत नहीं गाने पर उपेंद्र कुशवाहा, बोले-देशभक्त होने के लिए राष्ट्रगीत गाना आवश्यक नहीं
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जदयू विधान पार्षद उपेन्द्र कुशवाहा ने कहा है

जदयू विधान पार्षद उपेन्द्र कुशवाहा ने कहा है कि राष्ट्रगीत गाने से ही कोई देशभक्त नहीं हो सकता। बिहार के ग्रामीण इलाकों में पढ़े-लिखे लोगों को छोड़ दें तो अधिकतर लोगों को राष्ट्रगीत मालूम नहीं हैं, तो क्या वे देशभक्त नहीं हैं। देशभक्ति के लिए गीत गाना जरुरी नहीं है। इसलिए इस गीत को सब गाए, यह ठीक नहीं है।

शनिवार को पत्रकारों से अनौपचारिक बातचीत में उपेन्द्र कुशवाहा ने कहा कि विधानसभा में राष्ट्रगीत का होना अध्यक्ष का विशेषाधिकार है। इस पर हमें कोई टिप्पणी नहीं करना। लेकिन अगर कोई राष्ट्रगीत नहीं गाना चाहता तो उससे जबरदस्ती नहीं की जा सकती। राष्ट्रगान हरेक के लिए जरुरी है।
राष्ट्रीय गीत से परहेज क्यों : प्रेम कुमार
भाजपा नेता व पूर्व मंत्री डॉ. प्रेम कुमार ने कहा है कि बिहार विधानमंडल के शीतकालीन सत्र के आखिरी दिन राष्ट्रगीत पर ओवैसी की पार्टी एआईएमआईएम के विधायक अख्तरुल ईमान ने आपत्ति जताई, यह कहीं से न्यायोचित नहीं है। देश के प्रत्येक नागरिकों को राष्ट्रगान और राष्ट्रगीत का सम्मान करना मौलिक कर्तव्य है। प्रेम कुमार ने कहा कि पहले राष्ट्रगीत के अनुवाद को देख लें- मैं आपके सामने नतमस्तक होता हूं, माता। पानी से सींची, फलों से भरी दक्षिण की वायु के साथ शांत, कटाई की फसलों के साथ गहरी माता। उनकी रातें चांदनी की गरिमा में प्रफुल्लित हो रही हैं, उसकी जमीन खिलते फूलों वाले वृक्षों से बहुत सुंदर ढकी हुई हैं, हंसी की मिठास, वाणी की मिठास, माता। वरदान देने वाली, आनंद देने वाली, माता। ....इसमें क्या आपत्ति वाली बात है।
अख्तरुल ने राष्ट्र का भी अपमान किया : BJP
भाजपा के प्रदेश प्रवक्ता पूर्व विधायक मनोज शर्मा ने कहा है कि अख्तरुल ईमान ने राष्ट्रगीत का ही अपमान नहीं किया है, बल्कि इन्होंने भारत जैसे विशाल राष्ट्र का भी अपमान किया है। ऐसे लोग खाते तो भारत का है लेकिन गाते पाकिस्तान के हैं। अख्तरुल ईमान को लगता है कि वह राष्ट्रगीत नहीं गा सकते हैं, तो उस देश में चले जाएं वहां उन्हें स्वतंत्रता मिलती हो। श्री शर्मा ने कहा कि यह भाषा अख्तरुल ईमान की नहीं है, यह ओवैसी की है। तुष्टीकरण की राजनीति के सहारे लोकसभा- विधानसभा में पहुंचने वाले यह लोग भारत के लोकतंत्र का मजाक उड़ा रहे हैं।
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