यूपी में विधान परिषद में निर्वाचित कोटे की दो सीटें खाली हैं. समाजवादी पार्टी के वरिष्ठ नेता अहमद हसन के निधन से एक सीट रिक्त हुई है तो वहीं बीजेपी के ठाकुर जयवीर सिंह के इस्तीफ़ा देने से दूसरी सीट खाली हुई है. जयवीर सिंह को पार्टी ने विधानसभा चुनाव लड़ाया था. अब जय वीर सिंह विधायक हैं और योगी सरकार में मंत्री हैं. इन्हीं दो खाली सीटों पर उपचुनाव होना है. उपचुनाव में विधायक वोट डालेंगे. ऐसे में सदस्य संख्या के हिसाब से बीजेपी का दोनों सीटों पर जीतना तय है. नामांकन के समय उप मुख्यमंत्री बृजेश पाठक ने कहा कि 'समाजवादी पार्टी हारने के लिए चुनाव लड़ रही है.'
उपचुनाव सिर्फ दो सीटों पर है, ऐसे में ये चर्चा है कि इसका वर्तमान सियासी माहौल पर क्या असर पड़ेगा. वो भी ऐसे में जब इन दोनों सीटों पर जीत हार तय है. दरअसल इन दोनों सीटों पर प्रत्याशियों के घोषित नामों को देखते हुए ये तय है कि सत्तारूढ़ बीजेपी ने जहां अपने संगठन में जातीय समीकरण को मजबूत करने की कोशिश की है वहीं अपने पुराने कैडर के कार्यकर्ताओं को मौका दिया है. वहीं समाजवादी पार्टी ने कोई प्रत्यक्ष कारण न होने के बावजूद कीर्ति कोल जैसी कार्यकर्ता को चुनाव में उतारकर दलित और खास तौर पर कोल जैसी अनुसूचित जनजाति को मौका देकर दलित और आदिवासी वर्ग को संदेश दिया कि पार्टी इन वर्गों के साथ है. यानि जीत हार के इस खेल में जातियों का साथ पाने की पूरी कोशिश नजर आ रही है.
विधान परिषद की इन दो सीटों पर बीजेपी की जीत तय है. सीटों के लिए बैठकों में ही तय हो गया था कि पार्टी संगठन के क्षेत्रीय अध्यक्षों में से किसी चेहरे को मौका दे सकती है. पार्टी ने गोरक्ष क्षेत्र के क्षेत्रीय अध्यक्ष डॉ. धर्मेंद्र सिंह सैंथवार को मौका दिया है. लंबे समय से ये उम्मीद जतायी जा रही थी कि पार्टी धर्मेंद्र सिंह को उच्च सदन में भेज सकती है. गोरखपुर मुख्यमंत्री का क्षेत्र है और ऐसा माना जा रहा है कि धर्मेंद्र सिंह सैंथवार को उनकी पसंद के तौर पर भी मौका मिला है.
साथ ही संगठन के मूल कार्यकर्ता धर्मेंद्र सिंह विद्यार्थी परिषद से लेकर बीजेपी में कई जिम्मेदारी निभा चुके हैं. 2024 में इस क्षेत्र में प्रदर्शन में डॉ. धर्मेंद्र सिंह सैंथवार की अहम भूमिका रहने वाली है. डॉ. धर्मेंद्र सिंह सैंथवार के बहाने पार्टी ने ओबीसी वर्ग को भी संदेश दिया है कि पार्टी ओबीसी को उनके संख्या के हिसाब से प्रतिनिधित्व देती है. सैंथवार कुर्मी की उप जाति है. पिछले कुछ समय से बीजेपी कुर्मी वोट बैंक को जोड़ने की कोशिश लगातार करती रही है.
बीजेपी ने कुर्मी स्वतंत्र देव सिंह को प्रदेश अध्यक्ष बनाकर पार्टी में विधानसभा चुनाव में सफलता हासिल की हो वहीं गठबंधन के सहयोगी अपना दल को भी कुर्मी के पटेल वोट बैंक पर पकड़ की वजह से उन क्षेत्रों में बीजेपी की राह आसान हुई है. पार्टी ने चुनाव से पहले शामिल हुए राकेश सचान को न सिर्फ टिकट देकर बल्कि जीतने के बाद कैबिनेट मंत्री बनवाकर भी ओबीसी को संदेश दिया. जाहिर जहां पार्टी क़रीब 11 प्रतिशत कुर्मी जाति को अपने पाले में रखना चाहती थी, वहीं पूर्वांचल में अपने कैडर के कार्यकर्ता को भी समायोजित करना चाहती थी.