ज़ाकिर घुरसेना- राजनीतिक संपादक
जनता से रिश्ता वेबडेस्क। दिल्ली हाई कोर्ट के एक जज ने अपने फैसले में लिखा था कि हजार गुनहगार छूट जाये तो परवाह नहीं लेकिन एक बेगुनाह को सजा नहीं मिलनी चाहिए अक्सर ये तब कहा जाता है जब न्यायिक सिद्धांत की बात का अवसर आता है। वतर्मान में देश में यूपी की हालात ही कुछ ऐसी है यूपी की सरकार अपने प्रशासनिक नाकामियों पर पर्दा डालने के लिए ऐन केन प्रकरण बनाकर लोकतंत्र के सामाजिक ढांचे को तहस नहस कर रही है। यूपी सरकार हाथरस की सच्चाई को सामने लाने के बजाय रातो रात गोपनीय रिपोर्ट को आधार मानकर पूरे प्रदेश में दंगे करने की साजिश को ऐसा बोलकर उजागर किया कि अगर यूपी सरकार दलित की बेटी के शव को रातो रात नहीं जलाती तो पूरे यूपी में सुबह दंगे की शुरुआत हो जाती और रातो रात अपराधियों को पकडऩे के लिए अभियान चलाकर एक ही रात में अपराधी और साजिश कर्ता दोनों को पकड़ लिए जाते हैं, कमाल की बात है। कमाल तो तब और हो जाता है जब उनके पास से दंगे भड़काने का साजो सामान भी जप्त कर लिया जाता है। हैरान करने वाली बात ये भी है कि जब हाथरस कांड के ऊपर एक वेब साईट का निर्माण भी उसी रात हो जाता है, यूपी सरकार ना तो अपने एफिडेबिट में और ना ही मीडिया के सामने खुलासा करती है कि यह वेब साईट कौन से आईटी एड्रेस से बनी है और कौन से शहर में डिज़ाइन और ग्राफिक्स बनाई गई है। अगर भारत में नहीं बनी तो कौन से देश में बनी है, इसको फंडिंग कहां से हो रही है इसका खुलासा यूपी सरकार को करना चाहिए। यूपी सरकार को सारे तथ्यों को सामने रखना चाहिए ऐसा लग रहा है कि देश यूपी में एवं अन्य राज्यों में चुनाव होने वाला है इसलिए हाथरस मामले को लोगो के ध्यान से भटकाना चाह रहे है अब सवाल यह उठता है कि योगी सरकार को दलित और सवर्णों के लड़ाई में आग में घी डालने का काम नहीं करना है तो ईमानदारी पूर्वक सम्पूर्ण जांच सीबीआई के अधिकारियों को करने दें तथा माननीय उच्च न्यायालय को अवगत कराकर उनकी निगरानी में जांच हो लेकिन ऐसा लगता है दुर्भाग्य है यूपी का, वहां की जनता का, या दुर्भाग्य कह सकते है हमारे इस लोकतंत्र का, सच्चाई जाने बगैर गहन जांच कराये बिना एक ही समुदाय को बार-बार टारगेट कर पूरे भारत में उसको बदनाम करने की घिनौनी साजिश की जा रही है ताकि आगामी चुनाव में ध्रुवीकरण कर इसका फायदा उठाया जा सके। यूपी सरकार द्वारा माननीय कोर्ट को बताया गया कि बाबरी मस्जिद फैसले के बाद हाथरस कांड होने के बाद दंगा फसाद होने का अंदेशा था जबकि सच्चाई ये है कि बाबरी मस्जिद के फैसले को काफी दिन हो गए हैं लेकिन उत्तर प्रदेश सहित पूरे देश में कही दंगा फसाद नहीं हुआ। वर्तमान परिस्थिति को देखते हुए हाथरस धरना से उस समाज को क्या लेना देना हो सकता है क्योंकि पीडि़त परिवार दलित है और आरोपी परिवार स्वर्ण समुदाय से है। अन्य समाज को इन दोनों समाजों से इस धरना को लेकर कोई सरोकार नहीं था और ना आगे सरोकार हो सकता है लेकिन दुर्भावना से ग्रस्त उत्तर प्रदेश सरकार अपने नाकामी को छुपाते हुए अपने प्रशासनिक कमजोरियों पर पर्दा डालने की नाकाम कोशिश कर रही है। अक्सर ये देखा गया है कि जब भी देश में कही किसान आंदोलन करते है तो वो वाम पंथियों की साजिश कही जाती है। जब सेना के पूर्व जवान अपनी मांगों को लेकर जंतर मंतर पर धरना देते है तब वो गद्दार कहे जाते हैं, यूपी की बिगड़ी कानून व्यस्था पर विपक्ष का हाथ होता है। ऑक्सीजन की कमी से मरे बच्चों के लिए अगस्त महीने को दोष दिया जाता है। हाथरस के रेप कांड के बाद जाति दंगों की साजिश बताई जाती है हाथरस में 144 धारा लागु होने के बावजूद किसकी शह पर सवर्ण पंचायत द्वारा लगातार हुंकार ललकार की जा रही है इसमें जातियता क्यों नहीं दिखती ? निर्दोषों को कैदखाना भेजने से क्या मनीषा बिटिया की आत्मा को शांति मिल जाएगी ? क्या मनीषा के परिवार वालो को न्याय मिल जाएगा ? हाथरस कांड पर राजनीति की पराकाष्ठा हो गई है। यूपी सरकार को चाहिए कि पूरी जांच निष्पक्ष करवाकर वहां के कानून व्यस्था पर गंभीरता से ध्यान रखकर सही कार्य कर सरकार अपने ऊपर लगे बदनामी को धोने की कोशिश करे।