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यूपी चुनाव: चौथे चरण में नौ जिले और बड़े मुकाबले, पढ़े सब कुछ

Nilmani Pal
23 Feb 2022 2:10 AM GMT
यूपी चुनाव: चौथे चरण में नौ जिले और बड़े मुकाबले, पढ़े सब कुछ
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यूपी। उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव के चौथे चरण के लिए आज वोटिंग है. इस फेज में 9 जिले की 59 सीटों पर 624 प्रत्याशी मैदान में हैं. चौथे चरण में उम्मीदवारों के साथ-साथ कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी से लेकर केंद्रीय रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह और केंद्रीय गृह राज्यमंत्री अजय मिश्र टेनी जैसे दिग्गज नेताओं के लिए भी किसी इम्तेहान से कम नहीं है. सोनिया के सामने अपने गढ़ रायबरेली को बचाए रखने की चुनौती है तो लखनऊ में राजनाथ सिंह की प्रतिष्ठा दांव पर लगी है. ऐसे में देखना है कि चौथे चरण में किसका किला बचता है और किसके दुर्ग में लगती है सेंधचौथे चरण में जिन 9 जिलों की 59 सीटों पर चुनाव हैं, उसमें से बीजेपी का 50 सीटों पर कब्जा है. बीजेपी की सहयोगी अपना दल (एस) को एक सीट मिली थी. इसके अलावा सपा को 4, बसपा व कांग्रेस को 2-2 सीटें मिली थीं. 2022 के चुनाव में चौथे फेज की 59 सीटों में से सपा 57 सीट पर चुनावी मैदान में है, जबकि 2 सीटों पर ओम प्रकाश राजभर की सुभासपा चुनावी मैदान में है. बसपा और कांग्रेस 59-59 सीटों पर चुनाव लड़ रही तो बीजेपी ने 57 और उसकी सहयोगी अपना दल (एस) ने 2 सीटों पर अपना प्रत्याशी उतारे हैं.

कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी के संसदीय क्षेत्र रायबरेली की पांच विधानसभा सीटों पर चुनाव है, जहां कांग्रेस की साख दांव पर लगी है. रायबरेली सदर, हरचंदपुर, ऊंचाहार, सरेनी और बछरावां सीट है. 2017 के चुनाव में बीजेपी और कांग्रेस दो-दो पर जीत दर्ज की थी जबकि एक सीट सपा को मिली थी. हालांकि, कांग्रेस से विधायक बने राकेश प्रताप सिंह और अदिति सिंह बीजेपी से चुनावी मैदान में है. सपा, बसपा, कांग्रेस ने पांचों सीट पर अपने प्रत्याशी उतारा है तो बीजेपी ने चार सीटों पर चुनाव लड़ रही और एक सीट पर उसके सहयोगी अपना दल (एस) चुनाव लड़ रही. रायबरेली की पांचों सीट पर कांटे का टक्कर है.

कांग्रेस ने इस बार अपने गढ़ को बचाने के लिए बीजेपी और सपा से आए नेताओं को उतारकर मुकाबले को दिलचस्प बना दिया है. प्रियंका गांधी ने दो दिन रायबरेली में कैंप कर कांग्रेस प्रत्याशी के पक्ष में चुनाव प्रचार किया तो सोनिया गांधी ने भी वीडियो जारी करके कांग्रेस उम्मीदवारों को जिताने की अपील जारी है. वही, कांग्रेस के दुर्ग में सेंधमारी के लिए बीजेपी और सपा ने पूरी ताकत झोंक दी है. सीएम योगी, अमित शाह से लेकर केशव मौर्य और राजनाथ तक ने बीजेपी उम्मीदवारों के लिए प्रचार किया तो सपा प्रमुख अखिलेश यादव, स्वामी प्रसाद मौर्य सहित तमाम पार्टी नेता चुनावी प्रचार करते नजर आए हैं. ऐसे में देखना है कि कांग्रेस अपने किले को बचा पाती हैं कि नहीं?

उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ बीजेपी का मजबूत गढ़ माना जाता है. लखनऊ की दोनों संसदीय सीट बीजेपी के पास है और केंद्र की मोदी सरकार में राजनाथ सिंह और कौशल किशोर मंत्री हैं. विधानसभा की 9 में से 8 सीटों तक पर बीजेपी का कब्जा तो एक सीट सपा के पास है. लखनऊ में योगी सरकार के दो मंत्रियों के लिए अग्रिपरीक्षा तो राजनाथ और कौशल किशोर की साख दांव पर लगी है. ऐसे में बीजेपी लखनऊ में जीत का परचम फहराने के लिए पूरी ताकत झोंक रखी तो सपा, बसपा और कांग्रेस ने जबरदस्त चक्रव्यूह रचा है.

लखनऊ पूर्व, लखनऊ पश्चिम, लखनऊ मध्य, लखनऊ कैंट, लखनऊ उत्तर, बख्शी का तालाब, सरोजनीनगर, महिलाबाद और मोहनलालगंज विधानसभा सीट है. इस बार के बदले हुए सियासी माहौल में बीजेपी के लिए लखनऊ में अपने पुराने प्रदर्शन दोहराने की चुनौती है तो विपक्षी दल सेंधमारी के लिए बेताब हैं. ऐसे में बीजेपी के लिए अपने मजबूत सियासी दुर्ग को बचाए रखने की चुनौती खड़ी हो गई है तो राजनाथ सिंह और कौशल किशोर की साख भी दांव पर है.

लखीमपुर खीरी जिले की सभी आठ सीटों पर चुनाव हो रहा है, जहां केंद्रीय गृहमंत्री अजय मिश्र टेनी के इम्तेहान होगा. टेनी की साख सिर्फ इसलिए दांव पर नहीं है कि उनके क्षेत्र में चुनाव हो रहा है, बल्कि इसलिए भी है क्योंकि किसानों के आंदोलन को लेकर दिल्ली बार्डर के बाद प्रदेश के जिस इलाके में ज्यादा हंगामा हुआ, वह लखीमपुर खीरी ही है. इसमें किसानों पर गाड़ी चढ़ाकर उनकी हत्या करने के आरोप में उनके पुत्र आशीष की गिरफ्तारी भी हुई. आशीष हाल में ही जमानत पर छूटे हैं.

2017 क चुनाव में लखीमपुर खीरी जिले की आठों सीटों पर बीजेपी ने कब्जा जमाया था जबकि बीजेपी, सपा और कांग्रेस खाता नहीं खोल सकी थी. लखीमपुर हिंसा के बाद सियासी समीकरण बदले हैं, जिससे बीजेपी के लिए सियासी चुनौतियां बढ़ी है तो अजय मिश्रा के साख का भी सवाल है. ऐसे में चौथे चरण में उस घटना के हवा के रुख की परीक्षा होनी है मतदान के रुझान व परिणाम से पता चलेगा कि लखीमपुर हिंसा की नाराजगी क्या रंग दिखाती है। इसका कोई असर पड़ता है या नहीं.

हरदोई जिले की 8 विधानसभा सीटों पर चुनाव हो रहे हैं. हरदोई की सियासत में पूर्व मंत्री नरेश अग्रवाल बड़े नाम है, जिनके इर्द-गिर्द जिले की राजनीति सिमटी हुई है. नरेश अग्रवाल भी अब बीजेपी के साथ खड़े हैं और उनके बेटे सदर सीट से चुनाव लड़ रहे हैं. बीजेपी ने 2017 में हरदोई की 8 में 7 सीटों पर जीत हासिल की थी तो 2012 में सपा 6 सीटें जीती थी. हरदोई में नरेश अग्रवाल की साख दांव पर लगी है. हरदोई के किसी सीट पर त्रिकोणीय तो किसी सीट पर बीजेपी और सपा के बीच सीधा मुकाबाल है. ऐसे में देखना है कि हरदोई में कमल का कमाल बरकरार रहता है या फिर नरेश अग्रवाल के बिना साइकिल की रफ्तार पकड़ेगी.

केंद्रीय मंत्री साध्वी निरंजन ज्योति की अग्निपरीक्षा भी इसी चरण में होनी है. उनके संसदीय क्षेत्र फतेहपुर की 6 विधानसभा सीटों पर चुनाव हैं. 2017 के चुनाव में जिले की सभी 6 सीटों पर बीजेपी-अपना दल (एस) गठबंधन ने जीती थी, जिनमें पांच बीजेपी और एक अपना दल (एस) के खाते में गई थी. वहीं, 2012 के चुनाव में फतेहपुर में बसपा ने तीन, सपा ने दो और बीजेपी ने एक सीट जीती थी. ऐसे में योगी सरकार के दो मंत्री जैकी सिंह जय और धुन्नी सिंह जहां फिर से मैदान में है तो सपा और बसपा ने मजबूत प्रत्याशी उतारकर मुकाबले को रोचक बना दिया है. योगी के मंत्री के साथ केंद्रीय मंत्री साध्वी निरंजन ज्योति की प्रतिष्ठा दांव पर है. ऐसे में देखना है कि बीजेपी पिछली बार की तरह करिश्मा दोहरा पाती है कि नहीं?

पीलीभीत की चारों सीटों पर बीजेपी का कब्जा है और इस बार के चुनाव में पार्टी के सामने उसके बरकरार रखने की चुनौती खड़ी है. पीलीभीत से बीजेपी सांसद वरुण गांधी लगातार मोदी और योगी सरकार पर सवाल खड़े कर रहे हैं, लेकिन चुनाव में खामोशी अख्तियार किए हुए हैं. बीजेपी ने जिले की दो मौजूदा विधायकों की जगह नए चेहरे उतारे हैं तो दो सीटों पर पुराने चेहरे के साथ उतरी है तो सपा ने सियासी समीकरण को देखते हुए उम्मीदवार उतारे हैं. वहीं, बसपा ने भी जातीय समीकरण का पूरा ख्याल रखा है. ऐसे में पीलीभीत की चारों सीटों पर कांटे की टक्कर देखने को मिल रही है. देखना है कि वरुण गांधी की खामोशी के बीच बीजेपी क्या करिश्मा दोहराएगी या 2012 की तरह सपा का पल्ला भारी रहेगा.

सीतापुर जिले की 9 सीटों पर चुनाव हो रहे हैं, जहां बीजेपी, सपा, बसपा और कांग्रेस के बीच कांटे की लड़ाई है. 2017 के चुनाव में बीजेपी ने 9 में से 7 सीटों पर जीत दर्ज की थी जबकि एक सीट सपा और एक सीट बसपा को मिली थी. सीतापुर और महमूदाबाद सीट पर सभी की निगाहें लगी है. सीतीपुर सीट से बीजेपी विधायक ने ही बगावत का झंडा उठाया था और फिर तमाम नेताओं ने पार्टी छोड़कर सपा का दामन थाम लिया था. इसके चलते इस बार समीकरण इतने उलझे हुए दिख रहे हैं.

बुंदेलखंड इलाके के बांदा जिले की चार सीटों पर चुनाव है, जहां बीजेपी ने 2017 में सभी सीटों पर कब्जा जमाया था. इससे पहले बीजेपी बांदा में सियासी वनवास झेल रही थी. 2012 में बांदा की सीटों पर सपा, बसपा और कांग्रेस का कब्जा था. ऐसे में बांदा में इस बार बीजेपी के लिए सियासी चुनौती खड़ी है तो सपा और बसपा अपने खोए हुए सियासी जनाधार को हासिल कर दोबारा से जीत का परचम फहराना चाहती है. ऐसे में देखना है कि बांदा में सपा, बसपा, बीजेपी और कांग्रेस कौन चुनाव में अपना झंडा बुलंद करता है?

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