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अनोखी परंपरा! इस गांव में बिना दहेज के होती है शादी, दूल्हे को खाना पड़ता है थप्पड़

jantaserishta.com
16 Feb 2021 5:54 AM GMT
अनोखी परंपरा! इस गांव में बिना दहेज के होती है शादी, दूल्हे को खाना पड़ता है थप्पड़
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पिछली बार 2019 में 14 मार्च को इस गांव में सामूहिक विवाह का आयोजन हुआ था तब 44 जोड़े प्रणय-सूत्र में बंधे थे.

आंध्र प्रदेश के श्रीकाकुलम जिले के एक गांव में वैलेन्टाइन डे पर एक खास आयोजन हुआ. यहां एक, दो नहीं, पूरे 42 जोड़े मोहब्बत के इस खास दिन पर शादी की डोर में बंध गए. नुव्वालारेवु नाम के इस गांव में उड़िया भाषी लोगों की बहुलता है. ये गांव बंगाल की खाड़ी से सटा है. इस गांव की खास पहचान ब्रिटिश हुकूमत के वक्त का बना लाइट हाउस है. गांव के अधिकतर लोग पेशे से मछुआरे हैं.

इस गांव में हर दो साल बाद सामूहिक विवाह का आयोजन होता है वो भी खास मुहूर्त में. यहां सारी शादियां बिना दहेज के लेन-देन के होती हैं. पिछली बार 2019 में 14 मार्च को इस गांव में सामूहिक विवाह का आयोजन हुआ था तब 44 जोड़े प्रणय-सूत्र में बंधे थे.
खास बात ये है कि सामूहिक विवाह वाले सारे जोड़े इसी गांव से होते हैं. लेकिन इस साल ये इसलिए भी खास रहा क्योंकि सामूहिक विवाह का शुभ मुहूर्त वैलेन्टाइन डे के दिन पड़ा. गांव के बुजुर्गों की उपस्थिति में 2.36 बजे के मुहूर्त पर 42 जोड़ों की शादी हुई. एक और अनोखी परम्परा इस सामूहिक विवाह के साथ जुड़ी है और वो है दूल्हे को थप्पड़ माराजाना.
इस परम्परा के बारे में गांव के बुजुर्ग बताते हैं कि कुछ सदी पहले ओडिशा से मछुआरों का एक ग्रुप रोजी रोटी की तलाश में नुव्वालारेवु गांव में आया था और यहीं बस गया. क्योंकि इन लोगों को आंध्र के उत्तर तटीय इलाके में अपनी जाति के परिवार नहीं मिलते थे तो ग्रुप के बुजुर्गों ने समुदाय में से ही सामूहिक विवाह आयोजित करने के रिवाज को शुरू किया.
सामूहिक विवाह वाले दिन से एक हफ्ते पहले ही इस क्षेत्र में उत्सव जैसा माहौल शुरू हो जाता है. भोंपू, ढोल की थाप के साथ यहां गाना-बजाना शुरू हो जाता है. पूरे गांव को रंगबिरंगी लाइट्स से सजाया जाता है.
ग्राम प्रधान मधुसूदन राव बेहरा के मुताबिक़ यह परम्परा नौ पीढ़ियों से जारी है. यहां सामूहिक विवाह पर होने वाले खर्च के लिए सारा सामान गांव समिति करती है. इसके लिए दूल्हा-दुल्हन के माता-पिता और आपस में पैसा इकट्ठा किया जाता है.
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