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नरेन्द्र मोदी के राम एवं राष्ट्र को समझें

25 Jan 2024 5:38 AM GMT
नरेन्द्र मोदी के राम एवं राष्ट्र को समझें
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-ः ललित गर्ग:- केंद्रीय मंत्रिमंडल ने अयोध्याधाम में प्रभु श्रीराम मंदिर के सफल प्राण प्रतिष्ठा समारोह के लिए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की सराहना की और एक धन्यवाद प्रस्ताव में कहा कि लोगों द्वारा उनके प्रति दिखाए गए प्यार और स्नेह ने उन्हें ‘जननायक’ के रूप में स्थापित किया है। रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह द्वारा पढ़े …

-ः ललित गर्ग:-

केंद्रीय मंत्रिमंडल ने अयोध्याधाम में प्रभु श्रीराम मंदिर के सफल प्राण प्रतिष्ठा समारोह के लिए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की सराहना की और एक धन्यवाद प्रस्ताव में कहा कि लोगों द्वारा उनके प्रति दिखाए गए प्यार और स्नेह ने उन्हें ‘जननायक’ के रूप में स्थापित किया है। रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह द्वारा पढ़े गए इस प्रस्ताव में मोदी को एक नए युग का अग्रदूत बताया गया। क्योंकि उन्हीं की अगुवाई में सोमवार को अयोध्या में संपन्न कार्यक्रम में नवनिर्मित श्रीराम जन्मभूमि मंदिर के गर्भगृह में श्री रामलला के नवीन विग्रह की प्राण प्रतिष्ठा की गई। प्रस्ताव में यह भी कहा गया, हम कह सकते हैं कि 1947 में इस देश का शरीर स्वतंत्र हुआ था और अब इसमें आत्मा की प्राण-प्रतिष्ठा हुई है। निश्चित ही मोदी अब इस नए युग के प्रवर्तन के बाद, नवयुग प्रवर्तक के रूप में भी सामने आए हैं। श्रीरामलला के नूतन विग्रह में प्राण-प्रतिष्ठा की अपूर्व एवं अलौकिक घटना भारत के लिये युगांतरकारी है। हम एक नये युग में पदार्पण कर रहे हैं। यह नवयुग एवं नया दौर आशा और विश्वास के साथ ही जिम्मेदारियों से भरा है।

नरेन्द्र मोदी के महान एवं ऊर्जस्वल व्यक्तित्व को एक राजनीतिक दल के सर्वोच्च नेता के सीमित दायरे में बांधना उनके व्यक्तित्व को सीमित करने का प्रयत्न है। उन्हें नए राष्ट्र का निर्माता कहा जा सकता है। मोदी जैसे व्यक्ति दो-चार नहीं, अद्वितीय होते हैं। उनका गहन चिन्तन राष्ट्र के आधार पर नहीं, वरन् उनके चिन्तन में राष्ट्र अपने को खोजता है। उन्होंने राष्ट्र निर्माण के माध्यम से स्वस्थ मूल्यों को स्थापित करके राष्ट्र को सजीव एवं शक्तिसम्पन्न बनाने का प्रयत्न किया है। राष्ट्र-निर्माण की कितनी नयी-नयी कल्पनाएं उनके मस्तिष्क में तरंगित होती रहती हैं। अयोध्या में भगवान श्रीराम के ‘भव्य, दिव्य मंदिर’ की प्राण-प्रतिष्ठा उनके ही संकल्पों की निष्पत्ति है। इसके साथ ही प्राण-प्रतिष्ठा की यह तारीख आने वाले हजारों वर्षों के लिये एक उजाला एवं संकल्प बनते हुए नये इतिहास का सृजन करने वाली शुभ एवं श्रेयस्कर गति है। जैसा कि नरेन्द्र मोदी ने कहा है, ‘यह नये इतिहास-चक्र की भी शुरुआत’ है। इस अवसर पर दिये गये संबोधन में मोदी ने अपने संकल्प ‘सबका साथ, सबका विकास और सबके विश्वास’ को एक नया आयाम भी दिया है। नरेन्द्र मेादी केवल व्यक्तियों के समूह को राष्ट्र मानने को तैयार नहीं हैं। उनकी दृष्टि में राष्ट्र के सदस्यों में निम्न विशेषताओं का होना आवश्यक है जिस राष्ट्र के सदस्यों में इस्पात सी दृढ़ता, संगठन में निष्ठा, चारित्रिक उज्ज्वलता, कठिन काम करने का साहस और उद्देश्य पूति के लिए स्वयं को झोंकने का मनोभाव होता है, वह राष्ट्र अपने निर्धारित लक्ष्य तक बहुत कम समय में पहुंच जाता है। कहा जा सकता है कि नरेन्द्र मोदी के राष्ट्र-ंिचंतन में जो क्रांतिकारिता, परिवर्तन एवं नये दिशाबोध हैं, वे राष्ट्र के चिंतकों को भी चिंतन की नयी खुराक देने में समर्थ हैं।

अयोध्या में मोदी ने अपने संबोधन में कहा है, ‘राम विवाद नहीं, समाधान है’। उनके इस कथन को व्यापक परिप्रेक्ष्य में समझा और स्वीकारा जाना चाहिए। यह भी समझा जाना चाहिए कि प्रधानमंत्री का यह कथन देश में संभावनाओं के नये आयाम भी खोल रहा है। राम और राष्ट्र के बीच की दूरी को पाटने का एक स्पष्ट संकेत भी प्रधानमंत्री ने दिया है। इस बात को भी समझने की ईमानदार कोशिश होनी चाहिए कि श्रीराम की महत्ता हिंदू समाज के आराध्य होने में ही नहीं है, बल्कि उन्हें सुशासन का प्रतीक पुरुष एवं शासक समझने में भी है। तभी हमारा राष्ट्र राजनीतिक विसंगतियों से मुक्त होकर सुशासन का आधार बन सकता है। जिसमें हर नागरिक को, चाहे वह किसी भी धर्म, जाति, वर्ण, वर्ग का हो, प्रगति करने का समान और पर्याप्त अवसर मिलना चाहिए।

प्रभु श्रीराम के मन्दिर की प्राण-प्रतिष्ठा इस सोच और संकल्प के साथ आयोजित हुआ है कि हमें कुछ नया करना है, नया बनना है, नये पदचिह्न स्थापित करने हैं। बीते वर्षों की कमियों पर नजर रखते हुए उन्हें दोहराने की भूल न करने का संकल्प लेना है। हमें यह संकल्प करना और शपथ लेनी है कि आने वाले वर्षों में हम ऐसा कुछ नहीं करेंगे जो हमारे उद्देश्यों, उम्मीदों, उमंगों और आदर्शों पर प्रश्नचिह्न टांग दे। अपनी उपलब्धियों का अंकन एवं कमियों की समीक्षा कर इस अवसर पर हर व्यक्ति अपनी विवेक चेतना को जगाकर अपने भाग्य की रेखाओं में राष्ट्रीयता और जिजीविषा के रंग भरें, सामंजस्य एवं सहिष्णुता को जीवन के व्यवहार में उतारने का अभ्यास करें। केवल अपनी भावनाओं को ऊंचा स्थान दे, वह स्वार्थी होता है। स्वार्थी होने की कीमत चुकानी ही पड़ती है। दूसरों की भावना के प्रति उदार बनें। उदार होने का मतलब है आप किसी के कहे बिना भी उनकी भावनाओं को समझें। उसके बारे में सोचें, विचारें। इससे आपके जीने का अंदाज बदल जायेगा। यही जीने की आदर्श शैली का प्रशिक्षण प्राण-प्रतिष्ठा महा-महोत्सव का हार्द है।

समूचा देश ‘राममय’ हो रहा है, इस ऐतिहासिक एवं अविस्मरणीय अवसर पर अपने-पराये का भेद मिटाने की आवश्यकता को भी समझना ज़रूरी है। धर्म के नाम पर, जाति के नाम पर, अर्थ के नाम पर, भाषा के नाम पर होने वाला कोई भी विभाजन ‘राम-राज्य’ में स्वीकार्य नहीं हो सकता। सांस्कृतिक अथवा धार्मिक राष्ट्रवाद के नाम पर किसी को कम या अधिक भारतीय आंकना भी राम-राज्य की भावना के प्रतिकूल है। इसमें कोई संदेह नहीं है कि अयोध्या में नया मंदिर बनने के बाद हिंदू समाज में एक नया उत्साह है, जो स्वाभाविक भी है। पर हमें इस भाव की सीमाओं को भी समझना होगा। नदी जब किनारा छोड़ती है तो बाढ़ आ जाती है। सरसंघचालक मोहन भागवत ने प्राण-प्रतिष्ठा के अवसर पर कहा भी था ‘जोश के माहौल में होश की बात’ करनी ज़रूरी है। यह होश ही वे किनारे हैं जो नदी को संयमित रखते हैं। जीवन का पड़ाव चाहे संसार हो या संन्यास, सीमा, संयम एवं मर्यादा जरूरी है। मर्यादा जीवन का पर्याय है। धरती, अंबर, समन्दर, सूरज, चांद-सितारें, व्यक्ति, धर्म एवं समाज सब अपनी-अपनी सीमाओं में बंधे हैं। जब भी उनकी मर्यादा एवं सीमा टूटती है, प्रकृति प्रलय एवं समाज अराजकता में परिवर्तित हो जाता है।

प्रभु श्रीराम के जीवन का कण-कण हमें मर्यादा की बात सिखा रहा है। अपेक्षा है, मानव अनुशासन और संयम को अपनाकर जीवन को संवारे। प्रभु श्रीराम के मन्दिर की प्राण-प्रतिष्ठा का यह पावन अवसर सबको यही संदेश देता है कि संयम, सहिष्णुता एवं समानता से ही समस्याओं का निपटारा संभव है। पथभ्रान्त पथिक के लिये मर्यादा ही सच्चा पथदर्शन बनेगी। युग की उफनती समस्याओं की नदी मर्यादा की मजबूत नाव से ही पार की जा सकेगी। मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम की इस भूमि पर मर्यादा को स्थापित करने और उसे गौरवान्वित करने की इस विलक्षण एवं अनूठी घटना से हम सभी प्रेरित हो, विनाश का ग्रास बनती इस ऊर्वरा भारत-भू को विकास के शिखर पर चढ़ाएं। सहिष्णुता यानि सहनशीलता। दूसरे के अस्तित्त्व को स्वीकारना, सबके साथ रहने की योग्यता एवं दूसरे के विचार सुनना- यही शांतिप्रिय एवं सभ्य समाज रचना एवं रामराज्य का आधारसूत्र है और इसी आधारसूत्र को नये भारत का संकल्पसूत्र बनाना है। परिवार, गांव, समाज जैसी संस्थाएं टूट रही हैं। रिश्ते समाप्त हो रहे हैं। आत्मीयता समाप्त हो रही है। तथाकथित विकास के रास्ते पर जो हम चल रहे हैं वह केवल बाहरी/भौतिक है, जो सहिष्णुता के आसपास पनपने वाले सभी गुणों से हमें बहुत दूर ले जा रहा है। आधुनिक संचार माध्यमों के कारण जहां दुनिया छोटी होती जा रही है, वहीं मनुष्य ने अपने चारों तरफ अहम् की दीवारें बना ली हैं, जिसमें सहिष्णुता के लिए कोई गुंजाइश नहीं है। राष्ट्र की वर्तमान परिस्थितियों में फैलता वैचारिक एवं अनैतिक प्रदूषण, आर्थिक अपराधीकरण, रीति-रिवाजों में अपसंस्कृति का अनुसरण, धार्मिक संस्कारों से कटती युवापीढ़ी का रवैया, समाज-राष्ट्र में बढ़ता सत्ता, प्रतिष्ठा और धन का अन्धाधुन्ध आकर्षण जैसे जीवन-सन्दर्भों के साथ किसी भी कीमत पर समझौता न कर हम समझ के साथ प्रभु श्रीराम के जीवन-आदर्शों को बहुमान दें। तभी रामराज्य की बुनियाद पर समाज एवं राष्ट्र को नई प्रतिष्ठा एवं नई दिशा मिल सकेगी।

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