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राहुल गांधी समेत 23 नेताओं के ट्विटर अकाउंट बंद, 7 पार्टी हैंडल भी 'लॉक', जानिए पूरा मामला
Deepa Sahu
12 Aug 2021 6:00 PM GMT
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कांग्रेस नेता और वायनाड से सांसद राहुल गांधी के ट्विटर अकाउंट को कुछ दिनों पहले ही अस्थायी रूप से सस्पेंड कर दिया गया था।
कांग्रेस नेता और वायनाड से सांसद राहुल गांधी के ट्विटर अकाउंट को कुछ दिनों पहले ही अस्थायी रूप से सस्पेंड कर दिया गया था। अब माइक्रो ब्लॉगिंग साइट ने नियमों के उल्लंघन का हवाला देते हुए कांग्रेस पार्टी के आधिकारिक ट्विटर हैंडल को भी ब्लॉक कर दिया है। पार्टी का दावा है कि अब तक ट्विटर इसके 23 नेताओं के अकाउंट बंद कर चुकी है और पार्टी के सात हैंडल भी बंद किए गए हैं।
देश के मुख्य विपक्षी दल ने दावा किया है कि पार्टी के मीडिया प्रमुख रणदीप सुरजेवाला सहित 23 वरिष्ठ नेताओं के ट्विटर हैंडल भी बंद कर दिए गए हैं। पार्टी की तरफ से कहा गया कि कांग्रेस महासचिव और पूर्व मंत्री अजय माकन, लोकसभा में पार्टी के व्हिप मनिकम टैगोर, असम प्रभारी और पूर्व केंद्रीय मंत्री जितेंद्र सिंह और महिला कांग्रेस अध्यक्ष सुष्मिता देव के ट्विटर अकाउंट लॉक कर दिए गए हैं।
इन पर कार्रवाई क्यों?
राहुल गांधी ने चार अगस्त को दिल्ली कैंट रेप पीड़िता के परिवार से मुलाकात की फोटो ट्वीट की थी। इस पर माइक्रोब्लॉगिंग साइट का कहना था कि यह उसके नियमों का उल्लंघन है। ट्विटर ने राहुल के उस ट्वीट को हटा दिया था। इसके बाद उनके अकाउंट को पहले अस्थायी रूप से ब्लॉक कर दिया गया और बाद में उसे लॉक कर दिया गया। कांग्रेस नेताओं को यह रास नहीं आया और उन्होंने राहुल का समर्थन करते हुए उसी आपत्तिजनक फोटो को ट्वीट किया। अब ऐसे सभी नेताओं पर कार्रवाई हो गई। कांग्रेस का आरोप है कि ट्विटर सरकार के दबाव में ऐसा कर रही है।
बाल आयोग ने दिल्ली पुलिस और ट्विटर से की थी शिकायत
राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग ने इस ट्वीट को लेकर दिल्ली पुलिस और ट्विटर से शिकायत की थी। आयोग ने पीड़िता के परिवार की तस्वीर पोस्ट करने के लिए राहुल पर कार्रवाई की मांग की थी। आयोग का कहना था कि यह जुवेनाइल जस्टिस एक्ट और प्रोटेक्शन ऑफ चिल्ड्रेन फ्रॉम सेक्सुअल ऑफेंस (पॉक्सो) एक्ट का उल्लंघन है।
ट्विटर ने कोर्ट को बताया- राहुल ने हमारी नीति का उल्लंघन किया
मामले में ट्विटर ने 11 अगस्त को हाईकोर्ट को बताया कि राहुल ने नियमों का उल्लंघन किया है। ट्विटर की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता साजन पूवैया ने कोर्ट को बताया कि हमने उस ट्वीट को हटा दिया है, क्योंकि, यह हमारी नीति के भी खिलाफ है।
एक पीड़ित बच्ची के माता पिता की फ़ोटो ट्वीट कर उनकी पहचान उजागर कर #POCSO ऐक्ट का उल्लंघन करने पर @NCPCR_ ने संज्ञान लेते हुए @TwitterIndia को नोटिस जारी कर श्री राहुल गांधी के ट्विटर हैंडल के विरुद्ध कार्यवाही करने एवं पोस्ट हटाने के लिए नोटिस जारी किया है। pic.twitter.com/cVquij6jx3
— प्रियंक कानूनगो Priyank Kanoongo (@KanoongoPriyank) August 4, 2021
दिल्ली कैंट के ओल्ड नांगल गांव का मामला
यह मामला दिल्ली कैंट के ओल्ड नांगल गांव का है। जहां श्मशान के वाटर कूलर से पानी लेने गई 9 साल की दलित बच्ची से दुष्कर्म हुआ और उसकी हत्या कर दी गई। इस मामले में श्मशान में स्थित मंदिर के पुजारी राधेश्याम समेत 4 लोग आरोपी हैं। बच्ची की मां का कहना है कि आरोपियों ने उनकी मर्जी के बिना ही बच्ची का अंतिम संस्कार भी कर दिया।
क्या है पॉक्सो एक्ट?
18 साल से कम उम्र के लड़के या लड़कियों के खिलाफ यौन शोषण जैसे घिनौने अपराध को रोकने और ऐसा करने वालों को कठोर दंड देने के उद्देश्य से केंद्र सरकार ने बाल यौन शोषण अपराध संबंधी कानून को कठोर बनाते हुए बाल यौन अपराध संरक्षण नियम- पॉक्सो (Protection of Children from Sexual Offences Rules- POCSO), 2020 बनाया। यह कानून साल 2012 में बनाया गया था, लेकिन संशोधनों के तहत बाल उत्पीड़न से संबंधित प्रावधानों को अधिक कठोर बनाया गया।
कानून के खास प्रावधान
इस कानून के तहत अलग-अलग अपराध में अलग-अलग सजा का प्रावधान है और यह भी ध्यान दिया जाता है कि इसका पालन कड़ाई से किया जा रहा है या नहीं।
इस कानून की धारा चारा में वो मामले आते हैं जिसमें बच्चे के साथ कुकर्म या फिर दुष्कर्म किया गया हो। इस अधिनियम में सात साल की सजा से लेकर उम्रकैद तक का प्रावधान है साथ ही साथ जुर्माना भी लगाया जा सकता है।
इस अधिनियम की धारा छह के अंतर्गत वो मामले आते हैं जिनमें बच्चों के साथ कुकर्म, दुष्कर्म के बाद उनको चोट पहुंचाई गई हो। इस धारा के तहत 10 साल से लेकर उम्रकैद तक की सजा का प्रावधान है साथ ही जुर्माना भी लगाया जा सकता है।
अगर धारा सात और आठ की बात की जाए तो उसमें ऐसे मामले आते हैं जिनमें बच्चों के गुप्तांग में चोट पहुंचाई जाती है। इसमें दोषियों को पांच से सात साल की सजा के साथ जुर्माना का भी प्रावधान है।
18 साल से कम किसी भी मासूम के साथ अगर दुराचार होता है तो वह पॉक्सो एक्ट के तहत आता है। इस कानून के लगने पर तुरंत गिरफ्तारी का प्रावधान है।
इसके अतिरिक्त अधिनियम की धारा 11 के साथ यौन शोषण को भी परिभाषित किया जाता है। जिसका मतलब है कि यदि कोई भी व्यक्ति अगर किसी बच्चे को गलत नीयत से छूता है या फिर उसके साथ गलत हरकतें करने का प्रयास करता है या उसे पॉर्नोग्राफी दिखाता है तो उसे धारा 11 के तहत दोषी माना जाएगा। इस धारा के लगने पर दोषी को तीन साल तक की सजा हो सकती है।
सर्वश्रेष्ठ अंतरराष्ट्रीय बाल संरक्षण मानकों के अनुरूप, इस अधिनियम में यह प्रावधान है कि यदि कोई व्यक्ति यह जनता है कि किसी बच्चे का यौन शोषण हुआ है तो उसके इसकी रिपोर्ट नजदीकी थाने में देनी चाहिए, यदि वो ऐसा नही करता है तो उसे छह महीने की कारावास और आर्थिक दंड लगाया जा सकता है।
परिजन की पहचान भी उजागर नहीं कर सकते
यह अधिनियम बाल संरक्षक की जिम्मेदारी पुलिस को सौंपता है। इसमें पुलिस को बच्चे की देखभाल और संरक्षण के लिए तत्काल व्यवस्था बनाने की जिम्मेदारी दी जाती है। जैसे बच्चे के लिए आपातकालीन चिकित्सा उपचार प्राप्त करना और बच्चे को आश्रय गृह में रखना इत्यादि।
पुलिस की यह जिम्मेदारी बनती है कि मामले को 24 घंटे के अंदर बाल कल्याण समिति (CWC) की निगरानी में लाए ताकि सीडब्ल्यूसी बच्चे की सुरक्षा और संरक्षण के लिए जरूरी कदम उठा सके।
इस अधिनियम में बच्चे की मेडिकल जांच के लिए प्रावधान भी किए गए हैं, जो कि इस तरह की हो ताकि बच्चे के लिए कम से कम पीड़ादायक हो। मेडिकल जांच बच्चे के माता-पिता या किसी अन्य व्यक्ति की उपस्थिति में किया जाना चाहिए, जिस पर बच्चे का विश्वास हो, और बच्ची की मेडिकल जांच महिला चिकित्सक द्वारा ही की जानी चाहिए।
अधिनियम में इस बात का ध्यान रखा गया है कि न्यायिक व्यवस्था के द्वारा फिर से बच्चे पर किसी भी प्रकार का दबाव न बनाया जाए। इस नियम में केस की सुनवाई एक विशेष अदालत द्वारा बंद कमरे में कैमरे के सामने दोस्ताना माहौल में किया जाने का प्रावधान है। इस दौरान बच्चे और परिजन की पहचान गुप्त रखने की कोशिश की जानी चाहिए।
विशेष न्यायालय, उस बच्चे को दिए जाने वाली मुआवजा राशि का निर्धारण कर सकता है, जिससे बच्चे के चिकित्सा उपचार और पुनर्वास की व्यवस्था की जा सके।
अधिनियम में यह कहा गया है कि बच्चे के यौन शोषण का मामला घटना घटने की तारीख से एक वर्ष के भीतर निपटाया जाना चाहिए।
इस अधिनियम में अपराधों को ऐसी स्थितियों में अधिक गंभीर माना गया है यदि अपराध किसी प्रशासनिक अधिकारी, पुलिस, सेना आदि के द्वारा किया गया हो।
अधिनियम के तहत बच्चों से जुड़े यौन अपराध के मामलों की रोकथाम के साथ ऐसे मामलों में न्यायिक प्रक्रिया में हर स्तर पर विशेष सहयोग प्रदान करने की व्यवस्था की गई है।
अधिनियम में पीड़ित को चिकित्सीय सहायता और पुनर्वास के लिए मुआवजा प्रदान करने की व्यवस्था भी की गई है।
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