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इस गांव में डेढ़ महीने तक बंद रहेगा टीवी, रेडियो और मोबाइल...जानिए क्या है वजह

Admin2
15 Jan 2021 3:13 PM GMT
इस गांव में डेढ़ महीने तक बंद रहेगा टीवी, रेडियो और मोबाइल...जानिए क्या है वजह
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कुल्लू। हिमाचल प्रदेश के प्राचीन मंदिर, उनसे जुड़ा इतिहास और वहां की संस्कृति हमेशा से ही पयटकों को अपनी और आकर्षित करते हैं. हिमाचल प्रदेश के जिला कुल्लू के पर्यटन नगरी मनाली में कुछ गांव आज भी ऐसे हैं जहां प्राचीन संस्कृति संजो कर रखी गई है. एक परंपरा यहां ऐसी भी है कि गांववासी डेढ़ महीने तक टीवी नहीं देखते हैं, मंदिर में पूजा नहीं करते हैं, फोन की घंटियां बजने नहीं देते और नहीं खेतों में काम करते हैं. शायद ये बातें सुनकर आप हैराने होंगे, लेकिन यह बिल्कुल सच है. आज भी यहां इस परंपरा का पालन देवी-देवताओं का आदेशों मानकर किया जाता है.

हिमाचल प्रदेश का जिला कुल्लू मनाली देश-विदेश में अपनी देव संस्कृति के लिए जाना जाता है. यहां आज भी लोग सारे काम देव आदेशों पर ही करते हैं और देव आदेशों को ही सर्वोपरि माना जाता है. इन्हीं में से एक है पर्यटन नगरी मनाली के साथ लगता गौशाल गांव. वहां इसके साथ लगते 8 गांव हैं, जहां देव आदेशों के बाद अब अगले डेढ़ महीने तक न तो किसी तरह का शोर सुनाई देगा और न ही टीवी, मोबाइल या मन्दिर की घंटियां सुनाई देंगी. और तो और यहां आने वाले सैलानियों को भी इन नियमों का पालन करना होगा.

मनाली की उझी घाटी के नौ गांव कई हजार सालों से चली आ रही इस देव परंपरा का आज भी पालन कर रहे हैं. ऐतिहासिक गांव गौशाल में एक बार फिर टीवी बंद कर दी गई है और मोबाइल साइलेंट मोड पर कर दिए गए हैं. यहां कोई व्यक्ति अब ऊंची आवाज में बात नहीं कर सकता है. न ही अगले डेढ़ महीनों तक खेतों में काम होगा. इसके अलावा मंदिर में पूजा भी नहीं होगी. मन्दिरों की घंटियां बांध दी गई हैं, ताकि किसी तरह की कोई आवाज न हो. और न कोई देव आदेशों का उल्लंघन कर सके.

ये आदेश यहां के अराध्य देवता गौतम ऋषि, ब्यास ऋषि व नाग देवता की ओर से हुए हैं और अगले डेढ़ महीनों तक इन गांवों में लागू हो गए हैं. मान्यता है कि मकर संक्राति के बाद गांव के अराध्य देवी-देवता अपनी तपस्या में लीन हो जाते हैं और देवी-देवताओं को तपस्या के दौरान शांत वातावरण मिले इसके लिए टीवी, रेडियो, मोबाइल बंद कर दिए जाते हैं. मनाली के ये 9 गांव गौशाल, कोठी, सोलंग, पलचान, रूआड़, कुलंग, शनाग, बुरुआ और मझाच हैं. यहां आज भी देव परंपरा बखूबी निभाई जाती है और आज की युवा पीढ़ी भी सदियों से चली आ रही परम्परा का पालन कर रही है.


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