- ललित गर्ग -
इनदिनों गुजरात में विधानसभा के चुनाव में भारतीय जनता पार्टी की ऐतिहासिक जीत को लेकर चर्चा एवं समीक्षा का बाजार गर्माया हुआ है। इस ऐतिहासिक जीत में आदिवासी क्षेत्र की महत्वपूर्ण भूमिका रही है। आदिवासी समुदाय को कांग्रेस का मजबूत वोट बैंक माना जाता रहा था, उसमें भाजपा सेंध लगाने में सफल हुई है तो इसमें प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की आदिवासी क्षेत्रों में हुई चुनावी-सभाएं एवं भाजपा की चुनावी रणनीति कारगर मानी जायेगी। भाजपा ने आदिवासी इलाके की 27 सीटों में से 23 सीटें कर कांग्रेस के इस गढ़ को ध्वस्त कर दिया हैं। जबकि 2017 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने आदिवासी इलाके की 17 सीटें जीती थी। इस बार वह उनमें ने 3 ही बरकरार रख पाई। यह आदिवासी समुदाय का भाजपा से जुड़ने का स्पष्ट संकेत भविष्य की राजनीति को नयी दिशा एवं दृष्टि देता रहेगा।
गुजरात में आदिवासी मतदाता की भूमिका महत्वपूर्ण होती है, आदिवासी समुदाय के मुद्दों की उपेक्षा एवं आदिवासी नेताओं की उदासीनता के कारण इस बार भी यह समुदाय नाराज रहा, लेकिन भाजपा ने सीटों के बटवारे के समय उचित एवं प्रभावी उम्मीदवारों का चयन करके इस नाराजगी को दूर किया। आदिवासी समुदाय ऐसा उम्मीदवार चाहता है जो उनके हितों की रक्षा करें एवं आदिवासी जीवन के उन्नत बनाये। इस दृष्टि से भाजपा ने सूझबूझ एवं परिवक्व राजनीतिक कौशल का परिचय दिया। इन चुनावों में आदिवासी संत गणि राजेन्द्र विजयजी का नाम भी उम्मीदवारों की सूची में होने की चर्चा थी लेकिन उम्मीदवार न बनकर वे एक कार्यकर्ता के रूप में सामने आये। उन्होंने अपने आदिवासी समुदाय को नरेन्द्र मोदी के द्वारा आदिवासी समुदाय की उन्नति के लिये किये गये कार्यों की प्रभावी प्रस्तुति दी, जिससे उनकी नाराजगी दूर हुई। उनके लगातार किये गये चुनाव प्रचार ने आदिवासी समुदाय के वोटों को व्यापक स्तर पर प्रभावित किया।
गणि राजेन्द्र विजयजी के नेतृत्व में वर्ष 2007 में छोटा उदयपुर के कवांट में भव्य आदिवासी सभा हुई, जिसमें करीब डेढ लाख आदिवासी सम्मिलित हुए। इसी सभा ने मोदी के राजनीतिक जीवन को एक नयी दिशा दी, वही इस आदिवासी बहुल क्षेत्र में अनेक आर्थिक उन्नति, शिक्षा, स्वास्थ्य, आदिवासी-कल्याण की योजनाएं एवं रोजगार की उस समय मोदी द्वारा शुरुआत करने से यह क्षेत्र विकास की नयी इबारत लिखने में कामयाब रहा। इसी क्षेत्र में मोदी ने सुखी परिवार फाउण्डेशन को एकलव्य मॉडल आवासीय विद्यालय संचालित करने की जिम्मेदारी दी, जिससे इस क्षेत्र में शिक्षा की अभिनव क्रांति घटित हुई। तभी से मोदी न केवल इस बल्कि समूचे गुजरात के आदिवासी समाज के कल्याण एवं उन्नति के लिये ध्यान दे रहे हैं। इन्हीं कारणों से गुजरात का आदिवासी समाज वहां की भाजपा सरकार से लगातार नाखुश होते हुए भी इस बार उसने भाजपा का साथ दिया। गुजरात में आदिवासी चुनावी मुद्दों पर गौर करें तो बेरोजगारी सबसे बड़ा मुद्दा रहा है, इसके साथ स्वास्थ्य, शिक्षा, जाति प्रमाण पत्र उपलब्ध ना हो पाना, पैसा अधिनियम आदि जैसे अहम मुद्दों हैं जिन पर चुनाव होते रहे हैं। ऐसे में भाजपा आदिवासी समाज को रोजगार देने के मुद्दे पर काम करती आयी है। साल 2018 में भाजपा सरकार ने केवडिया में स्टैच्यू ऑफ यूनिटी का निर्माण कराया, जिसे आदिवासी विकास के मॉडल के रूप में पेश किया गया।
आदिवासी समुदाय का भाजपा से जुड़ना एक चमत्कार से कम नहीं है, इस चमत्कार को घटित करने में नरेन्द्र मोदी की दूरगामी सोच एवं इस समुदाय के प्रति आत्मीयता एवं संवेदना अधिक कारगर रही। बोडेली की चुनावी सभा में मोदी ने जिस विशेष अन्दाज में कहा कि मैं वोट के लिये आपके बीच नहीं आया हूं, बल्कि आप सभी एवं आपके घरों में बैठे बुजुर्गो की कुशल क्षेम पूछने आया हूं। मैं आपके लिये प्रधानमंत्री नहीं हूं, बल्कि आपका बेटा हूं। प्रधानमंत्री तो मैं दिल्ली में हूं। ऐसे ही भावनात्मक विचारों से मोदी ने आदिवासी लोगों के बीच जगह बनायी है। इसी से कांग्रेस के मजबूत वोट बैंक में सेंध लगाने के कामयाबी मिली है। इसके अलावा भाजपा ने एक काम और किया कि उसने कांग्रेस के कई बड़े आदिवासी नेताओं को अपने पाले में कर लिया था। इसमें सबसे बड़ा नाम कांग्रेस से 10 बार विधायक रहे मोहन सिंह राठवा का था जो छोटा उदयपुर से जीते थे।
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने छोटा उदयपुर से लेकर भरूच, दक्षिण गुजरात दाहोद जैसे आदिवासी जिले में खुद जाकर रैलियां की थी, यही वह खास वजह 27 में से 23 सीटें जीत लेने की बनी है। आदिवासियों के बड़े नेता छोटु वसावा भरूच जिले की जगड़िया विधानसभा सीट से 7 बार लगतार जीतते आ रहे थे। बीजेपी ने इस बार उनको भी हरा दिया है। इस बीच कांग्रेस आदिवासी क्षेत्र की केवल तीन सीट ही जीत पाई है जिसमें बनासकांठा की दाता सीट पर कांति खराडी, खेड़ब्रह्मा से तुषार चौधरी और वासादा से अनंत पटेल जीते हैं। दरअसल, भाजपा ने इस बार चुनाव प्रचार आदिवासी सीटों को काफी ध्यान में रखकर किया गया था। भाजपा की इस जीत के अंदर आम आदमी पार्टी की भी अहम भूमिका रही है क्योंकि छोटा उदयपुर जिले पवि जेतपुर सीट से गुजरात विधानसभा के विपक्ष के नेता सुखाराम राठवा चुनाव लड़े उनके सामने बीजेपी के जयंती राठवा थे। लेकिन इसके अलावा वहां आम आदमी पार्टी की उम्मीदवार राधिका राठवा थीं जो कांग्रेस के पूर्व सांसद की लड़की है। ऐसे में उन्होंने अच्छे खासे कांग्रेस के वोट ले लिए जिसकी वजह से विपक्ष के नेता रहे सुखराम राठवा की हार हुई है। भाजपा ने आदिवासी क्षेत्रों में एक ही मंत्र अपनाया था कि जिनके सामने जीत न सको उनको अपने साथ शामिल कर लो जिससे अपनी ताकत बढ़ जाती है। इसी तरह बीजेपी ने गुजरात के अंदर सालों से बने कांग्रेस के वोट बैंक की मजबूती को तोड़ा।
गुजरात में भाजपा की ऐतिहासिक जीत की खास वजह मध्य प्रदेश से सटी गुजरात की वे सभी आदिवासी बहुल सीटें है, जिनका जीतना भाजपा के भविष्य की दृष्टि से शुभ है। पार्टी की तरफ से आदिवासी वर्ग को अपने पक्ष में करने वाला दांव सफल होना भविष्य की भाजपा की राजनीति को सुगम बनायेगी। राजनीतिक जानकारों का भी यही कहना है कि गुजरात के आदिवासियों के मन में भाजपा बस गयी है, अब पार्टी एवं उनके नेताओं को इस आदिवासी समुदाय के समग्र विकास के लिये पहल करनी चाहिए। आदिवासियों में एक बड़ी समस्या धर्मपरिवर्तन की है। गुजरात में कई आदिवासी अपने धर्म को बदलकर आदिवासी समाज से बाहर होते रहे हैं जिसमें ईसाई धर्म को सर्वाधिक स्वीकार गया है। ईसाई मिश्नरियों ने धर्मांतरण के लिये विद्यालयों एवं छात्रावासों में सफल अभियान चलाया है। ऐसे में आदिवासी की अपनी संस्कृति एवं उनका अस्तित्व खतरा में आ गया। आदिवासी अर्थात जो प्रारंभ से वनों में रहता आया है। भारत में लगभग 25 प्रतिशत वन क्षेत्र है, इसके अधिकांश हिस्से में आदिवासी समुदाय रहता है। लगभग नब्बे प्रतिशत खनिज सम्पदा, प्रमुख औषधियां एवं मूल्यवान खाद्य पदार्थ इन्हीं आदिवासी क्षेत्रों में हैं। भारत में कुल आबादी का लगभग 11 प्रतिशत आदिवासी समाज है। राजनीतिक स्वार्थ के चलते हजारों वर्षों से जंगलों और पहाड़ी इलाकों में रहने वाले आदिवासियों को हमेशा से दबाया और कुचला जाता रहा है जिससे उनकी जिन्दगी अभावग्रस्त ही रही है।
भाजपा की नयी भूपेन्द्र सरकार एवं केंद्र सरकार को आदिवासियों की उन्नत आर्थिक स्थिति एवं विकसित जीवन स्तर के सार्थक प्रयत्न करने होंगे। स्वास्थ्य सुविधाएं, शिक्षा, पीने का साफ पानी आदि मूलभूत सुविधाओं पर ध्यान देना होगा। जल, जंगल, जमीन की लड़ाई लड़ने वाले आदिवासियों को अपनी भूमि से बहुत लगाव होता है, उनकी जमीन बहुत उपजाऊ होती है, उनकी माटी एक तरह से सोना उगलती है। जनसंख्या वृद्धि के कारण भूमि की मांग में वृद्धि हुई है। इसीलिये आदिवासी क्षेत्रों के प्राकृतिक संसाधनों एवं उनकी जमीन पर बहुराष्ट्रीय कम्पनियों की नजर है। कम्पनियों ने आदिवासी क्षेत्रों में घुसपैठ की है जिससे भूमि अधिग्रहण काफी हुआ है। आदिवासियों की जमीन पर अब वे खुद मकान बना कर रह रहे हैं, बड़े कारखाने एवं उद्योग स्थापित कर रहे हैं, कृषि के साथ-साथ वे यहाँ व्यवसाय भी कर रहे हैं। भूमि हस्तांतरण एक मुख्य कारण है जिससे आज आदिवासियों की आर्थिक स्थिति दयनीय हुई है। आदिवासी क्षेत्रों में युवाओं को तरह-तरह के प्रलोभन लेकर उन्हें गुमराह करने के प्रयासों पर सरकार को रोक लगानी चाहिये, वे अपनी जड़ों से कटने को विवश न हो, उनका धर्मान्तरण न किया जा सके, तभी आदिवासी समुदाय को भाजपा अपने पक्ष में बनाये रखने में सफल हो सकेगी। गुजरात में इन स्वर्णिम स्थितियों का निर्मित होना, देश के अन्य आदिवासी इलाकों को भाजपा से जोड़ सकेगा।