मारपीट के मामले में पीड़ितों के साथ हुए समझौते के आधार पर दिल्ली हाईकोर्ट ने मुकदमा तो बंद कर दिया, लेकिन बदले में दो आरोपियों को अस्पताल में एक माह तक सामुदायिक सेवा करने का आदेश दिया है। हाईकोर्ट ने आरोपियों को सामुदायिक सेवा करने का आदेश देते हुए कहा है कि मारपीट के मामले में भले ही दो पक्ष प्रभावित होते हैं, लेकिन समाज पर इसका गंभीर प्रभाव देखने को मिलता है।
जस्टिस एस. प्रसाद ने आरोपियों और पीड़ित पक्षों के बीच हुए समझौते के आधार पर दर्ज मुकदमें को बंद कर दिया। उन्होंने आरोपियों के उम्र क्रमशः 21 साल और 25 साल को देखते हुए यह फैसला दिया है। उन्होंने कहा कि आरोपियों और पीड़ितों में आपसी सुलह हो गई है, ऐसे में उनकी उम्र को देखते हुए मुकदमे को बंद किया जाता है। हाईकोर्ट ने आरोपी महेंद्र सिंह उर्फ सन्नी और उसके दोस्त को एक माह तक राम मनोहर लोहिया (RML) अस्पताल में सामुदायिक सेवा करने का आदेश दिया है। कोर्ट ने आरोपियों को अस्पताल के चिकित्सा अधीक्षक द्वारा बताए गए सामुदायिक कार्य करने होंगे। यह सामुदायिक काम आरोपी सन्नी और उसके दोस्त को 28 मार्च से लेकर 28 अप्रैल, 2021 तक यानी एक महीने तक करने होंगे। हाईकोर्ट ने अपने फैसले में राम मनोहर लोहिया अस्पताल के चिकित्सा अधीक्षक से कहा है कि यदि आरोपी उनके द्वारा बताए गए काम को नहीं करते हैं तो इसकी जानकारी संबंधित थाना प्रभारी को दें। आदेश का पालन नहीं होने पर आरोपियों के खिलाफ मुकदमा फिर से शुरू हो जाएगा।
हाईकोर्ट ने दोनों आरोपियों पर सामुदायिक सेवा के अलावा 25-25 हजार रुपये जुर्माना भी लगाया है। जुर्माने की रकम आर्मी वेलफेयर फंड वेटल कैज्युलिटी में जमा करना का आदेश दिया है।
यह है मामला
हाईकोर्ट में पेश मामले के अनुसार, शिकायतकर्ता ने पुलिस को बताया था कि वह 26 जनवरी 2018 को वह अपने दोस्त धीरज के साथ कोचिंग सेंटर से मोटर साइकिल पर रात करीब सवा 8 बजे घर वापस जा रहा था। जब वे सोना पब्लिक स्कूल के पास पहुंचे तभी आरोपी महेंद्र उर्फ सन्नी और उसके दोस्त ने उनका रास्ता रोक लिया और लात मारकर गाड़ी को गिरा दिया। साथ ही कहा गया था कि आरोपी महेंद्र उसके दोस्त धीरज को पीटने लगा। विरोध करने पर उसके साथ भी गाली-गलौज की और डंडे से मारने-पीटने लगा। इस मामले में पुलिस ने आरोपियों के खिलाफ गैर इरादतन हत्या प्रयास का मुकदमा दर्ज किया था। अब दोनों पक्ष ने आपस में हुए समझौते के आधार पर दर्ज मुकदमा रद्द करने के लिए हाईकोर्ट में याचिका दाखिल की थी।