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पति के प्रताड़ना से तंग आकर पत्नी ने बेटी समेत की थी आत्महत्या, 29 साल बाद आया ये फैसला
jantaserishta.com
25 Dec 2021 2:54 AM GMT
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जानिए पूरा मामला।
मुंबई: पति की प्रताड़ना से तंग पत्नी ने नाबालिग बेटी के साथ करीब 29 साल पहले सुसाइड कर लिया था. मामले में बॉम्बे हाईकोर्ट ने आरोपी पति को जेल भेज दिया है. दरअसल, मृतका के भाई ने रामदास ढोंडू कलातकर और एक महिला भारती के खिलाफ प्रताड़ना और आत्महत्या के लिए उकसाने का मामला दर्ज कराया था. मामले में पुणे सत्र न्यायाधीश ने आरोपियों को दोषी ठहराया. कलातकर को तीन साल की कठोर कारावास जबकि भारती को छह महीने के साधारण कारावास की सजा सुनाई थी. इस फैसले के खिलाफ कलातकर ने हाईकोर्ट मे याचिका दाखिल की थी.
दरअसल, जनाबाई की शादी रामदास ढोंडू कलातकर के साथ हुई थी. शादी के बाद दोनों की दो बेटियां हुईं. पहली बेटी की अकास्मिक मौत हो गई. पीड़ित पक्ष का आरोप था कि दूसरी बेटी के जन्म के बाद जनाबाई के माता-पिता कुछ दिन के लिए उसे अपने घर ले आए. यहां से जनाबाई जब अपने ससुराल लौटी तो पता चला कि उसका पति कलातकर एक भारती नाम की महिला के साथ रह रहा है. जनाबाई ने कुछ दिन रहने के बाद अपने माता-पिता को बताया कि उसका पति, सास-ससुर और भारती उसे प्रताड़ित करते हैं. इसके बाद जनाबाई के माता-पिता और भाई ने हस्तक्षेप किया लेकिन कुछ नहीं बदला.
आरोप है कि 9 अक्टूबर 1992 को जनाबाई ने अपनी बेटी के साथ कुएं में कूदकर आत्महत्या कर ली. जानकारी मिलने के बाद जनाबाई के भाई भानुदास दरेकर ने कलातकर, उसकी मां नखुबाई और भारती के खिलाफ प्रताड़ना और आत्महत्या के लिए मजबूर करने का मामला दर्ज कराया. पुलिस की कार्रवाई के बाद मामला जब कोर्ट में गया तो तीनों आरोपियों ने खुद को बेकसूर बताया. हालांकि मामला चलने के दौरान ही कलातकर की मां नखुबाई की मौत हो गई. इसके बाद पीड़ित पक्ष की ओर से कोर्ट में 6 लोगों की गवाही कराई गई. पुणे सेशन कोर्ट ने गवाहों के बयान और सबूतों के आधार पर कलातकर और भारती को दोषी ठहराया. कलातकर को तीन साल कठोर जबकि भारती को 6 महीने जेल की सजा सुनाई.
दोनों आरोपियों ने सेशन कोर्ट के फैसले के खिलाफ बॉम्बे हाईकोर्ट में याचिका दाखिल की. याचिका पर सुनवाई के दौरान भारती की मौत हो गई. निचली अदालत के फैसले, सभी सबूतों और गवाहों के बयान के आधार पर बॉम्बे हाईकोर्ट की जस्टिस अनुजा प्रभुदेसाई ने कहा कि रिकॉर्ड पर मौजूद सबूतों से साबित होता है कि कलातकर ने जनाबाई के साथ शारीरिक और मानसिक क्रूरता की थी. यह छोटा अपराध नहीं था बल्कि आरोपी ने लगातार दुर्व्यवहार और अपमान किया था. जनाबाई के भाइयों की गवाही के मुताबिक, आत्महत्या से एक महीने पहले उसने अपने परिवार को बताया था कि प्रताड़ना के चलते उसका जीवन कठिन हो गया है. उसके पास अब केवल ये रास्ता बचा है कि उसके माता-पिता आकर घर ले जाएं.
कोर्ट ने टिप्पणी
इस मामले में सजा सुनाते हुए कोर्ट ने टिप्पणी की कि समाज की सोच होती है कि महिला पराया धन है, उसका वास्तिवक जीवन ससुराल में है. महिला को ससुराल में हर स्थिति में समायोजित होने की उम्मीद की जाती है, भले ही उसे कई कठिनाईयों का सामना करना पड़े. जनाबाई के पास बिना किसी वित्तीय स्वतंत्रता और समर्थन के ससुराल में रहने के अलावा कोई और विकल्प नहीं था. जनाबाई ने गुस्से में आकर आत्महत्या नहीं की है बल्कि बेटी को जन्म देने के लिए उसके साथ लगातार अमानवीय व्यवहार के कारण आत्महत्या की है. अमानवीय व्यवहार से बचने और बेटी का कोई भविष्य न देखकर जनाबाई ने न केवल अपनी जिंदगी बल्कि नाबालिग बेटी की जिंदगी को भी खत्म करने जैसा कदम उठाया. यह खुद ही आरोपी के क्रूरता का संकेत है. कहा जा सकता है कि कलातकर ने अपने व्यवहार से ऐसी स्थितियां पैदा कर दी कि जनाबाई के पास आत्महत्या के अलावा और कोई विकल्प नहीं बचा था.
सुनवाई के दौरान कलातकर के वकील पवन माली की ओर से अपील की गई कि कारावास की सजा को कम कर दिया जाए. इस पर कोर्ट ने कहा कि आरोपी के कृत्यों के चलते दो लोगों की जिंदगी खत्म हो गई, निश्चित रूप से यह आरोपी के खिलाफ नरम रूख अपनाने या फिर कारावास की सजा को कम करने का आधार नहीं हो सकता है.
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