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BIG BREAKING: प्रधानमंत्री को जान से मारने की धमकी दी थी, अब कोर्ट का आया ये फैसला

jantaserishta.com
5 March 2023 12:46 PM GMT
BIG BREAKING: प्रधानमंत्री को जान से मारने की धमकी दी थी, अब कोर्ट का आया ये फैसला
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न्यूज़ क्रेडिट: आजतक

कोर्ट ने कहा कि अभियोजन पक्ष किसी भी धमकी को साबित करने के लिए कोई सबूत दिखाने में ‘‘बुरी तरह नाकाम’’ रहा.
नई दिल्ली: दिल्ली की एक अदालत ने पुलिस हेल्पलाइन 100 पर फोन करके प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को जान से मारने की धमकी देने के आरोपी व्यक्ति को बरी कर दिया. कोर्ट ने कहा कि अभियोजन पक्ष किसी भी धमकी को साबित करने के लिए कोई सबूत दिखाने में ‘‘बुरी तरह नाकाम’’ रहा.
आनंद परबत पुलिस ने जनवरी 2019 में प्रधानमंत्री के खिलाफ हेल्पलाइन पर कॉल करने और अपमानजनक भाषा और जान से मारने की धमकी देने के आरोप में मोहम्मद मुख्तार अली के खिलाफ आईपीसी की धारा 506 (II) के तहत आरोप पत्र दायर किया था. धारा 506 आपराधिक धमकी से संबंधित है और इसका दूसरा भाग उन लोगों के खिलाफ लगाया जाता है जो मौत या गंभीर चोट पहुंचाने की धमकी देते हैं. मेट्रोपॉलिटन मजिस्ट्रेट शुभम देवदिया ने पिछले महीने पारित आदेश में कहा था कि अली के खिलाफ आरोप को साबित करने के लिए जरूरी साक्ष्य थे.
उन्होंने कहा कि संबंधित सहायक उप-निरीक्षक (एएसआई) की ओर से पीसीआर फॉर्म न लेने के संबंध में कोई स्पष्टीकरण नहीं दिया गया, जो कथित तारीख पर कॉल करने वाले व्यक्ति द्वारा की गई सटीक बातचीत या बयान को साबित करने के लिए जरूरी था.
साथ ही जिस नंबर से कथित कॉल की गई थी वह सुरद अली के नाम से जारी था. अदालत ने कहा कि इस व्यक्ति की भूमिका की जांच नहीं की गई और एएसआई ने केवल यह कहा कि वह उस व्यक्ति को नहीं ढूंढ सका.
मजिस्ट्रेट देवदिया ने पिछले महीने पारित एक आदेश में कहा, अदालत ने पाया है कि अभियोजन पक्ष किसी भी सबूत को रिकॉर्ड पर लाने में बुरी तरह विफल रहा है, जो किसी को जान से मारने की धमकी के रूप में किसी भी बयान को दिखा या साबित कर सकता था.
उन्होंने कहा, अभियोजन सभी उचित संदेह से परे अभियुक्तों के अपराध को साबित करने में विफल रहा है और अभियुक्त को आरोप से बरी किया जाता है.
अदालत ने यह भी कहा कि जब्ती मेमो में आरोपियों से किसी भी सिम कार्ड की बरामदगी नहीं दिखाई गई और सार्वजनिक गवाहों को मामले में शामिल करने के लिए कोई गंभीर प्रयास नहीं किए गए. अदालत ने कहा कि उनकी जिरह के दौरान, एएसआई और एक हेड कांस्टेबल ने स्वीकार किया कि उन्होंने कभी भी किसी सार्वजनिक व्यक्ति को जांच में शामिल होने के लिए कोई नोटिस नहीं दिया.
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