बंगाल। पश्चिम बंगाल के सुंदरबन, ओडिशा के पड़ोसी जिले और तमिलनाडु के रामनाथपुरम, पुदुक्कोट्टई और तंजावुर जिले भारत की उन जगहों में शामिल हैं, जहां जलवायु संकट (Climate Crisis) का खतरा मंडरा रहा है. केंद्र ने इस बात की जानकारी एटलस (Atlas) जारी करके दी है. इसके मुताबिक, इन राज्यों में 8.5 मीटर से लेकर 13.7 मीटर तक का तेज तूफान (High Storm) आ सकता है. वैज्ञानिकों ने कहा कि एटलस की मदद से आपदा तैयारियों में मदद मिलेगी, क्योंकि जलवायु संकट के मद्देनजर मौसम की घटनाएं काफी बढ़ जाती हैं. एटलस में तूफान की अधिकतम ऊंचाई भारत के सभी तटीय जिलों के लिए डेटा प्रदान करती है.
पिछले सप्ताह जारी एटलस में कहा गया है कि आंध्र प्रदेश के प्रकाशम, गुंटूर और कृष्णा जिले, गुजरात के कच्छ और भावनगर के सभी तटीय क्षेत्र भी तूफान की चपेट में हैं, लेकिन यहां 4 से 6 मीटर तक का ही तूफान आने की संभावना जताई जा रही है. प्रकाशम के पूर्वी तट, पूर्वी गोदावरी, कृष्णा, पश्चिम गोदावरी और पश्चिमी तट पर रत्नागिरी, सिंधुदुर्ग, दक्षिण गोवा और उत्तर कन्नड़ में 50 से 60 सेंटीमीटर की रेंज में बारिश होने की संभावना जताई जा रही है. इसके अलावा झारखंड, पश्चिम बंगाल, तेलंगाना और तमिलनाडु के कई जिले में 35 से 50 सेंटीमीटर की बारिश होने की संभावना हैं, जो चक्रवात अपने साथ लाते हैं. तमिलनाडु के कुड्डालोर से लेकर पश्चिम बंगाल के दक्षिण 24 परगना तक लगभग पूरे पूर्वी तट पर हर दो से चार साल में गंभीर चक्रवात आते हैं. केरल में कन्नूर, कोझीकोड, त्रिशूर और एर्नाकुलम जिले, उत्तर और दक्षिण गोवा, और गुजरात में कच्छ, देवभूमि, जूनागढ़ और पोरबंदर में हर चार से 10 साल में गंभीर चक्रवात आते हैं.
पुणे में भारत मौसम विज्ञान डिपार्टमेंट के प्रमुख डीएस पाई ने कहा, 'पिछले एक दशक में हमने खतरनाक क्षेत्रों में बदलाव होते हुए देखा है. उदाहरण के लिए मध्य भारत के कम दबाव वाले क्षेत्रों में खतरनाक बारिश की घटनाओं को देखा गया है. पहले ऐसा नहीं होता था.' उन्होंने कहा, 'पश्चिमी तट को प्रभावित करने वाले चक्रवातों की संख्या में कोई बदलाव नहीं हुआ है, लेकिन अरब सागर के ऊपर विकसित हो रहे चक्रवातों की गंभीरता बढ़ गई है.' उन्होंने बताया कि एटलस की मदद से 13 सबसे खतरनाक मौसम संबंधी घटनाओं के प्रभावों को कम करने की उम्मीद है. इसमें शीत लहर, गर्मी की लहर, गरज, बाढ़, सूखा, कोहरा, हवा का खतरा, धूल भरी आंधी, बर्फबारी, ओलावृष्टि, बिजली, अत्यधिक वर्षा और चक्रवात शामिल हैं. मौसम ब्यूरो ने पुणे में जलवायु अनुसंधान और सेवा कार्यालय के कार्यालय में भौगोलिक सूचना प्रणाली उपकरणों का उपयोग किया है.
मौसम विभाग के महानिदेशक एम महापात्रा ने कहा, 'लोग यह समझने के लिए एटलस देख सकते हैं कि उनके क्षेत्र में मौसम की घटनाओं का क्या प्रभाव पड़ता है, साथ ही इसका उपयोग जलवायु के बुनियादी ढांचे की योजना बनाने के लिए किया जा सकता है. उदाहरण के लिए, यदि कोई निर्माण तटीय क्षेत्र में हो रहा है, तो एटलस महत्वपूर्ण जानकारी दे सकता है कि उस क्षेत्र में किस प्रकार की संभावित आपदाएं हैं.